________________ सामाइय 726 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 7 सामाइय ति, एस ण्दी मत्तवारणकरोरु ! एते य णदीरुवखा, अह र पादेसुते पडिओ // 1 // '' सा भणति-- "सुभगा होतु णदीओ, विरच जीदतु जे ! णदीरुक्खा। सुण्हात पुच्छगाण य, घत्तीहाभो पियं का तत्ता सो तीए घर वा दारं वा आयषन्तो चिन्तेति.."अन्नपाने हरेवाला, यौवनस्थां विभूषया। वेश्या स्त्रीमुपधारेण, वृद्धा कर्क-संपया / / 1!!" तीसे बिज्जियाणि चेडरूवाणि रुक्खे पलोएताण अति. तेण तेसि पुप्फाणि फलाणि य दाऊण पुच्छिताणिका एमा? ताण भांति.. अमुगस्स मुम्हा, ताहं न चिंतेति--कण उवारा एची। सभ सम सारयोग भवजा? तो गेण चरिका दाण-माणसंगहीता कामा ललिता तीए सगास / ताए गंतू सा भणिता-जधा अमुगो ते पुच्छति, ती रुझाए पन्द्रलगापि धोवतए मसिलित्तेण हत्थेण पिट्ठीए आहापंचगुलीओ नाताओ, आधारेण य णिच्छूढा / सानता साहति-पाम पिसहनि।। तेण णातं जहा- कालपक्खा चमीए, ताहेमा गुणगोखि पोसजाणणानिमिर्ग। ताहे सलज्जाए आणि असोगणियाः छिडियाए निढ / सा गतः साहति -पान तपमान पदेसो, तेगावद्दारोग अइगयो, असागवावा सुत्ताति, जाव ससुर दिट्ठा। तेण णात,जधा--- मम पुताति, पच्छा सपादाता उर गहित, चेतितं च तोए, भाणताय णाएणास ला. सहायकिंच करेज्जासि / इतरी गंतण भत्तार भणति-इत्य धम्मा, लामो असोगणिय, गलाण.. असोगवगियाए पसुत्ताणि, ताई माचार उहवेत्ता भणति-तुज्म एत कुलाणुरूना ? जं मम पादातो ससुरो उर गेहात : स. मति.. लभिहिरिपभाते। थेरग सिटुं, सो स्ट्टो भणति-विवरीता-ऽसि यस? सा भणति- या दिहा गणों, ताहे विवाटे सा भणति- अह अप्पा साहेमिल करेह, राहाता, ताह चक्खधर अइगता, जी काारे सा लगति दी ह जधाप अतरण बोलंतओ, अकारिमुच्चति, सा पधाविता, ताहे सो टि डो पिसायरूवं काऊण सागतएणं गेहति। ताहे लत्थ गतूण जक्ख भण् ति जो मम पितिदिण्ण-ओ तं च पिसायं मोत्तूण जइ अण्णं जागामि तो में तुम जाणासि चि जक्खा विलक्खी बितात- पाइ करिस.णि मंतेति? अहं पिबंचिता पाए. गस्थि सतितणं पुत्तीए, जाद चिंतति ताव णिप्पि-डिता ताई साथेरो रावण लोग हीलिता, तस्स ताए अधितीए निहा नहा, ताहे राणे तं कण्ण गते / रायाणएण अंतेउरकारो कता, आभिषिकेच निधाया मा सररस हेड यह अच्छते। दी. य इति मेंठे आसतिया नवरं नि ! पसारिता, सा पासायाओ आयारिया, पुणनिभा पलता, एवं बच्चति काला / अग्ला चिर ला लि हस्थिमटण स्थिसंकलाए हता, सा भागति-सा पुरिसो तारिणो ण सुति, मा रूसह / तं थरो पेच्छति, सोचिंतेति-जति एलाआ विशसिआ, किनु ता यो भदियाउ नि सुती, भाते सव्वा लोगो उहिता, सो न उदिता सथा भणति-सुधउ सनमे दिवसे उहिला र इण पुचि-नेण कहितं जहेगा देवीण याणामि ! कतर त्ति,ताहे राइणा भेंडमओ हत्थी कारितो, सव्वाओ अंतेपुरिया गणियाओ-एयरस अच्चणिय करेत्ता ओलंडेह / रावाहि भोलडितो, साणेच्छति, भणति-अहं वीहेमि। ताहे राइणा उप्पलणलण आता जाम्य मुचिठता पडिया। ततो से उवगतं-जधेसा कारि ति, भगिताभागामारुहतीए, भेंडमयस्स गयस्स भयतिए / इह मुछित उप्पलाहता, नत्थन मुच्छित संकलाहता।।१।।' पुट्ठी से जोइया. जाव सकलपहार: दिडा, ताहे राइणा हत्यिौठो सा य ागामि वितरित हस्थिम्मि विलग्गातिऊण छाणकडए विलइताणि। भणिती मिठा-एe! अप्पततोओ गिरिप्पवात दोहे, हत्थिस्स दोहि वि पासेहि बेलुग्गाहः ठविता, जाव हत्थिणा एगो पादो आगासे कतो / लोगो भणति-कि तिरिओ जाणति? एताणि मारेतव्वाणि, तहावि राया रोसं ण मुयति / ततो दो पादा आगासे ततियवारए तिन्नि पादा आगासे एोण पादेश ठितो, लोगेण अमंदो कतो-किं एत हस्थिर-यणं विणारोहि? रण) चित्तं ओआलितं, मातो-रारसि णियने? भगति-जति भयं देह, दिया, तण णियनिता अकुसण जहा भमित्ताथले ठितो, ताहे उत्तारेता णिव्विराताणि कयाणि / एगत्थ पचंतगामे सुन्नघरे ठिताणि, तत्थ य गामेल्लय-पारदा वारीत सुन्नघरं अतिगतो, ते भणंति-वेढतुं अच्छामा, मा कोवि पविसउ, गोरी घच्छामो / सोऽवि चोरो लुट्ठतो किहवि तीये दुक्को, तीसे 'फासो वदितो. सा दुक्का भणति-कोऽसि तुम? सो भणति.. चोरोऽहं, तीए भणिय-तुमं मम पती होहि / जा एतं साहामा जहा एर चोरो त्ति नहिं कलं पभाए मेंलो गृहिओ ! लाहे ओविदा सूलार भिvoi'. गोरेण सम सावधति ! जावंतराणदी, सा तेण भणिता--लधा त्य सरा जा सह एताणि दयाभर--गाणि उत्तारेमि. सागता, उनिगमा ! ! ! भणति- 'पुण्णा णदी दीसइ कागजा सच्च पियाभंडग तुज्झ हत्थ : जधा तुम पारमतीतुकामो, धुवं तुम भंड गहीउकामा / / 1 / / '' सा भणति-"चि(र) संथुतो बालि ! असथएण. मल्हे पिया ताव धुओऽधुवेणं / जाणेमि तुज्झ प्पयइस्सभाय, अण्णो गरा का तुह विरससेखार 1 // सा भणति-किं जाहि? रंग भणतिजहा ते सा मारावितो एवं मम पि कहंचि मारेहिसि / इतरा वित विद्धो उदग मग्गति तथेगो सड्डो, सो भणति-जति नमोकार करारो तो दमि सो उदास्त अहा गतो, जाव तरिम एरे चेद सो जमाकार करतो व कालगलो वाणमंतरो जातो / सड्ढों वि आरविखरपुरिसेहि पहिलो, देवा आहिपयुजति,गच्छति सरीरगं सर्दुध बढ़ाना इसा सिलं विचि मोएति, तं च पेच्छंति सरथंभे णिलुक्क, ताहे से घिणा उप्पणणा, रिशालरूवं विउविता मसपेसीए गहियाए उदगतीरण दालति / जावणदीता मच्छो उच्छलिऊण तडे पडितो, ततो सा भंसपेरिस मारा मच्छरस पधादिता,सा पाणिए पडिता,मंसपेसीदि रोमण गहिता, ताहे सियालो झायति / ताए भण्णति- 'मंसपेसी परिचव, मच्छ पग्छसि जबुआ! चुक्का मसं च मच्छंच,कलणं झायसि