________________ संसार 252 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 7 संसार सुरअन्नुन्नुद्दीरिय-साहावियवेयणासमभिभूए। नरयभवम्मि जियाणं, निमेसमित्तं पि नत्थि सुहं / / 3 / / छिंदणभिंदणबंधण-दुव्वहभरवहणमसुहदुक्खेहि। सययं संतत्ताणं, तिरियाणं नाम किं सुक्खं / / 4 / / खंडियआखंडलवा-वचंचलं जीवियं इह नराणं / दुल्लहजणसंजोगो महल्लकल्लोललोलतरो / / 5 / / ताव भरकंतसकुं-तपोयगलचंचलं च तरुणतं। इह संपयाउ संपा-संपायसमाउ सयकालं॥६।। इय इट्टाणिट्ठविओ-गजोगबहुरोगसोगपमुहेहिं। निच्चमभिद्दमियाणं, मणुयाणं न सुहगधो वि॥७॥ असरिसअमरिसईसा-विसायरोसाइमइलियमणेसु। अमरेसु वि अइफारो, दुहसंभारो वियंभेइ / / 8 / / ता चउगइसंसारे, जियाण नूण न अस्थि इत्थ सुह। सयलसुहहेउदुहजल-हिसेउ जिणधम्ममुक्काणं / / 6 / / इय चिंतिय सिरिदत्तो, गिण्हइ दिक्खं कमेण संजाओ। मीयत्थो पडिवजइ, एगल्लविहारवरपडिम / / 10 / / कस्स य गामस्स बहि. पेयवणे अत्रया निसाइ इमो। अणमिसनयणो वीरा-सणेण चिट्ठइ सुहज्झाणो।।११।। इत्तो हरी पसंसइ, सिरिदत्तमुणी इमो सुरेहिं पि। झाणाउ न चालिज्जइ, खरपवणेहिं व अमरगिरी / / 12 / / तं गिरमसद्दहतो, एगो अमरो समागओ तत्थ। काउं रक्खसरूवं, तं मुणिमुवसग्गए गाढं // 13 // चंदणतरूंववेदिय-सव्वंगंडसइ विसहरो हो। सुमुणिं तह अवि हत्थो, गलहत्थइ हत्थिरूवेणं / / 14 / / जालइ जडालजाला-कलावकलियं चउद्दिसिं जलणं, खरपवणेहिं पडि-तु भामए अक्कतूल व // 15 // करहयकंठकडारे-ण पंसुपूरेण पिहइ सव्वत्तो। विसमविसपसरचिंचइ-य विछुए मुंचए तत्तो॥१६|| अह मुणिणोऽभिप्पाय, अमरो जानियइ ओहिनाणेण / ता चिंतइ साहू सा-हसिक्कमल्लो मणम्मि इमं / / 17 / / सहियउवसग्गवट्टो, तुज्झइमो जीवसत्तकसवट्टो। सत्थावत्थाइ वयं, पायं पालेइ सव्वो वि।।१८।। इत्तो अणंलगुणिया, सहिया वियणा तए परवसेण / रेजिय ! इह भवगहणे, न उण गुणो को विसंजाओ।।१६।। ता धरिय धीरिमगुणं, खणं इमं वेयणं सहसु सम्म। जेण लहु भवजलहि, तरिउ पाविसि सिवं जीव ! // 20 // खामेसु सयलजीवे, तुम पितेसिं खमेसु रे जीव ! / सव्वत्थ कुणसु मित्ति, इमम्मि अमरे विसेसेण / / 21 / / जो य तुमं कड्डिय भव-कारागाराउ खिवइ किर अप्पं। सी एस सुरो तुह जिय, परमसुही परमबंधूय॥२२।। किं तु इमो उवरसग्गो, जइ मह हरिसा य भवहरतेण। तह णतभवनिबंधण-मिमस्स इय दूमइ मणम्मि।।२३।। इय सुहभावणधणसा-रवासिय मुणिमण मुणे वि सुरो। गयमिच्छत्तो पयडिय-नियरूवो नमिय इय थुणइ // 24 // जय जयद! धम्मधुरी-ण ! रीण भवगहणओ मुणिसुधीर ! / धीरिमनिजियमंदर ! धरविसहरनियरवरगरुड!।२५।। तस्स तुह चरणकमलं, कमलसरं सारस व्व अणुसरिमो। जस्स सय देविंदो, वंदि व्व पसंसइ गुणोहं।२६।। इय थुणिऊण मुणिदं, सुरलोय सुरवरो गओ अहवा। गुणिथुणणा ओसगं, जंति जिया किमिह अच्छरियं / / 27 / / सिरिदत्तमुणिवरो वि हु, परियायं पालिऊण चिरकालं / अणसणविहिणा मरिउ, जाओ अमरो महासुक्के॥२८॥ तो चविउ साएए. पुरम्मि सिरितिलयनयरसिट्ठिस्स। दइयाइ जसवईए. उयरे पुत्तो समुप्पन्नो // 26 // सो अट्टममासे जिण-धम्म जणणीइ निसुणमाणीए। गब्भदुहं अमरसुह, निसामिउं संभरइ जाई॥३०॥ तो भवविरत्तचित्तो, अभिग्गह लेइजह मए समए। दिक्ख चिय गहियव्वा, नियमो पुण गेहवासस्स // 31 / / कमसो जाओ कयपउ-मनामओ तरुणभावमणुपत्तो। चउनाणिगुरुसमीवे, गिहिय दिक्खं गओ मुक्ख // 32 / / श्रीदत्तचेष्टितमिति स्फुटफुल्लमलीवल्लीवितानविशदं विनिशम्य सम्यक् / निःसंख्यदुःखनिकरप्रभवे भवेऽस्मिन्नित्यं विरक्तमनसो भविनो भवन्तु // 33 // ध० 202 अधि०३ लक्ष०। जइ उप्पज्जइ दुक्खं, दट्ठव्वो सहावओ नवरं / किं किं मए न पत्तं, संसारं संसरंतेणं // 62 / / संसारचक्कवाले, सव्वे वि य पुग्गला मए बहुसो। आहारिया य परिणा-मिया य न पहं गओ तत्तिं / / 63 / / आतु०। णाणस्स दंसणस्स य, सम्मत्तस्स य चरित्तजुत्तस्स। जो काही उवओगं, संसाराओ विमुचिहिति।।८।। आतु०। निक्कसायस्स दंतस्स, सूरस्स वदसाइणो। संसारपरिभीयस्स, पञ्चक्खाणं सुहं भवे / / 2 / / आतु० संसारमावण्णपरस्स अट्ठा, साहारणं जंच करेइ कम्म। कम्मस्स ते तस्स उ वेयकालो, नबंधवा बंधवयं उर्वति।।४। उत्त० 4 अ०। णत्थि चाउरंते संसारे,णेवं सन्नं निवेसए। अस्थि चाउरंते संसारे, एवं सन्नं निवेसए।।२३|| सूत्र०२ श्रु०६अ01'अस्थिवाय शब्देप्रथमभागे 521 पृष्ठे व्याख्यातेषा गाथा।) (यथा यथा रागद्वेषास्तथा तथा संसारवृद्धिरिति 'किरियावाई' शब्दे तृतीयभागे 55 पृष्ठे उपपादितम् 1) (संसारे कथं न बंधम्यादिति'संसय' शब्देऽस्मिन्नेव भागे अनुपदमेवोक्तम्।) अथेहापि किशित्प्रतिपाद्यते, द्वाभ्या स्थानाभ्यां संपन्नोयुक्तो नास्यागारगेहमस्तीत्यनगार:-- साधुः, नास्त्यादिरस्येत्यनादिकंतत् अवदापर्यन्तस्तन्नास्ति यस्यसामान्यजीवापेक्षया तदनवदा तत् दीर्घा अद्धा कालो यस्य तद् दीर्घावं तत्। मकार आगमिकः, दीर्घो वाऽध्वामार्गो यस्मिंस्तद्दी_ध्वं तच्च-तुरन्तं-चतुर्विभाग नरकादिगतिविभागेन, दीर्घत्वं प्रकटादित्वादिति, संसारकान्नारंभवारण्य