________________ सोमलेस्स 1161 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 7 सोमवसु सोमलेस्स त्रि० (सोमलेश्य) अनुपतापकारिपरिणामे, स्था० 6 ठा० ३उ०। सोमवदण त्रि० (सोमवदन) सोम-सश्रीकं वदनं येषां ते सोमवदनाः। सश्रीकास्ये, जं०२ वक्ष०। सोमवसुपुं० (सोमवसु) कौशाम्बीनगरीवास्तव्ये जन्मदरिद्रे विप्रे,ध००। तत्कथा चैवम्'कोसंबी अत्थिपुरी, पभूयपव्वा सुउच्छुलट्ठि व्य। आजम्म अइदरिद्दो, सोमवसूतत्थ वरविप्पो॥१॥ जज करेइ कम्म, तं तं सयलं पि होइ से विहलं। ता उदिवम्गो धणियं, जाओ धम्मुम्मुहो किंचि // 2 // सोधम्मसत्थपाढे-ण धम्मसालाइ अन्नदियहमि। सिस्साण कहिजंतं, धम्मफलं इय निसामेइ॥३॥ गिरिसिहरतुरंगा दंतिणो भूरिदाणा, जियजलहितरंगा वाउवेगा तुरंगा। रहवरभडकोडीलच्छिविच्छड्डुसारा, नगरनिगममाई हुंति धम्मा जियाणं // 4 // अमरनियरपुजं वासवत्तं पवित्तं, सयलभरहरलं भूरिभोगेहि सजं / / हलहरनिवइत्तं जं इह केसवतं, कयभुवणचमकं धम्मलीलाइयं तं // 5 // रहसवसनमंतुद्दाम देविंदविंद पणयमसमसुक्खं जंच तित्थाहिवत्त। अवरमविपसत्थं पाणिणो जं लहते, तमिह फलयसेसं धम्मकप्पद्रुमस्स!॥६॥ तं सोउ जंपइ दिओ, सचमिणं किंतु कहसुपसिऊण। कस्स सयासे एसो, धम्मो भे गिण्हियव्यु त्ति // 7 // सो पडिभेणेइ मिटुं. मुंजेयव्वं सुहं च सोयध्वं / लोयप्पिओय अप्पा, कायव्वो इय पए तिन्नि॥ 8 // जो सम्मं अवबुज्झइ, अणुचिट्ठइतस्सपायमूलम्भि। गिहिज्ज तुमं धम्मं, भद्दपयं भद्द! लहु लहिसि // 6 // को पुण एसिं अत्थु , ति पुच्छिओ कहइधम्मपाढी वि। भो भव ! विमलभइणो, परमत्थं एस बुज्झंति॥ 10 // अह सुद्धधम्महेउं. दंसणिणो बहुविहे विपुच्छंतो। एगम्मि सन्निवेसे, समागओ भिक्खवेलाए॥११॥ ओयरिओ मढियाए, एगस्स व्वत्तलिंगधारिस्स। होसु अतिहि तितं ठवि-य अप्पणा सो गओ भिक्खं // 12 // गहिउँ खणेण भिक्खं, सो पत्तो तो हुवे वि ते भुत्ता। समयंमि धम्मतत्तं, दिएण पुट्ठो कहइ लिंगी॥ 13 // भद्द! इह सोमगुरुणो, अम्हे जससुजसनामया सीसा। उवइट्टणे तत्तं, मिट्ठ भुत्तव्वमिच्चाइ॥१४॥ नय अत्थो परिकहिओ, अचिरेण गओ गुरूय परलोयं। णो हं नियबुद्धीए, इय आराहेमि गुरुवयणं / / 15 / / मंतोसहमाईहिं, विहिजे मे लोगवल्लहो अप्पा। पावेमि मिट्ठमन्नं, इह मढियाए सुवेमि सुहं।। 16 // अह चिंतइ सोवमसू, अहो इमो गुरुवइद्रुतत्तस्स। समइवयइ जं गुरुणो, भिप्पाओ संभवइ नेवं / / 17 // तथाहि मंतोसहिपमुहेहि,जायइ जीवाण घायणं नूणं / तो लोगपिओ अप्पा, कह परमत्थेण इह होइ॥१८॥ पाएण मिट्ठमन्नं, जणेइ जीवाण गाढरसगिद्धिं / तत्तो भवपरिवुड्डी, ता परमत्थेण कडुयमिणं / / 16 / / हिमधामधामनिम्मल-सीलाण रिसीण विजियकरणाणं / एगंतवासबद्धा, नणु सुहसिज्जा विपडिसिद्धा // 20 // तथा चोक्तम्सुखशय्यासनं वस्त्रं,ताम्बूलं स्नानमण्डनम्। दन्तकाष्ठं सुगन्धं च, ब्रह्मचर्यस्य दूषणम्॥२१॥ इय चिंतिऊण तेणं, पुट्ठो लिंगी कहेसु भद्द! तुहं। गुरुभाया कत्थस आह, अमुगग्गामंमि निवसेइ / / 22 // बीयदिणे सोमवसू, तत्थेव गओ ठिओ य सुजसमढे। भुत्ता दुवे वि गेहे, इक्कस्स महिड्डिसिद्गुस्स / / 23 / / पुट्ठोयतेण तत्तं, सुजसो कहिऊण पुव्ववुत्तत्तं / भणइ इगंतर मह यं, जिमेमि मह होइ तो मिट्ठ // 24 // झाणज्झयणपसंतो, जत्थ व तत्थ व सुहं सुवामि ति। लोयप्पिओ निरीहु, त्ति एव पकरेमि गुरुवयणं / / 25 / / तं मुणिय दिओ चिंतेइ, चारुतरोएस किंतु गुरुवयणं। अइगंभीरं को नणु, जाणइ गुरुयाणऽभिप्यायं / / 26 // कहवि वईइ इमीए, सुद्धं अत्थं अहं मुणिस्सामि। इय चिंतासंतत्तो, संपत्तो पाडलिपुरम्मि / / 27 // सत्थपरमत्थवित्था-र वेइणो जइण समयकुसलस्स। विबुहस्स तिलोयण ना--मगस्स गिहमेस संपत्तो॥२८॥ पविसंतोय निरुद्धो, जा अणवसरु त्तिदारवालेणं। पंतवणकुसुमहत्थो, ता एगो किंकरो पत्तो॥ 26 // मग्गिजंतो वि अदा-उदंतवणमाइ सो गओ मज्झे। निस्सरिय खणेण अम-ग्गिओ वितं दाउमारद्धो // 30 // एस न दितो पुट्विं, किंमिण्हि देइ त्ति सोमवसुपुट्ठो। पभणइ वित्ती पढम,पहुणो दिन्ने हवइ भत्ती॥ 31 // इहराऽवन्ना तस्स उ, उद्धरियं सेसयाण सेसे व। इत्तो व दोहि पुरिसेहि, मग्गियं तत्थ आयमणं // 32 // एगाएतरुणीए, दिन्नं तं वालुगाइ एगस्स। बीयस्स दीहदंडग, उल्लंकेणं दिएण तओ॥३३॥ पुट्ठो भणइ दुवारी, भो भद्द! इमीऍ पढमओ भत्ता। . बीओ उण परपुरिसो, ता एवं चेव उचियं ति॥३४॥ इत्थंतरम्मि बहुभ-दृचट्टपयडिजमाणमइविहवा। वरसिवियं आरूढा, तत्थेगा आगया तरुणी॥ 35 // का एसा कि एवं, समेइइय पुच्छिए पुणो तेणं। दोवारिएण भणियं, पंडियधूया इमा भद्द ! // 36 // रायउलम्मि समस्सा-पयपूरणपत्तगरुयसम्माणा। सगिहं समेइ एवं, सरस्सई नाम विक्खाया।॥३७॥ कह पूरियं इमीए, पयं ति दियपुच्छिओ भणइ वित्ती। "तेन शुद्धेन शुध्यति" अवलंबियं पयमिम, रन्ना इया पूरियमिमीए॥३८॥ तद्यथायत्सर्वव्यापकं चित्तं, मलिनं दोषरेणुभि सद्विवेकाम्बुसंपर्कात्, तेन शुद्धेन शुद्ध्यति॥३६॥