________________ संजय 64 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 7 संजय हारविसुद्धियस्य / सुहमसंपराइयसंजयस्स पुच्छा ? गोयमा! संजयस्स य एएसि णं उक्कोसगा चरित्तपज्जवा दोण्ह वि तुल्ला असंखेज्जा अंतोमुहुत्तिया संजमट्ठाणा पण्णत्ता। अहक्खायसं- अनंतगुणा, सुहुमसंपरायसंजयस्स जहन्नगा चरित्तपञ्जवा जयस्स पुच्छा, गोयमा! एगे अजहन्नमणुकोसए संजमट्ठाणे, अणंतगुणा, तस्स चेव उक्कोसगा चरित्तपज्जवा अणंतगुणा, एएसिणं भंते ! सामाइयछेदोवट्ठावणियपरिहारविसुद्धियसुहु- अहक्खायसंजयस्स अजहन्नमणुक्कोसगा चरित्तपज्जवा अणंतमसंपरायअहवायसंजयाणं संजमट्ठाणाणं कयरे कयरे०जाव गुणा / / 15|| सामाइयसंजएणं भंते ! किं सजोगी होज्जा, अजोगी विसेसाहिया वा? गोयमा ! सव्वत्थोवे अहक्खायसंजयस्स एगे होजा? गोयमा! सजोगी, जहा पुलाए, एवं जाव सुहुमसंपरायअजहन्नमणुक्कोसए संजमट्ठाणे सुहुमसंपरायसंजयस्स अंतो- संजए, अहक्खाए जहा सिणाए।।१६।। सामाइयसंजएणं भंते! मुहुत्तिया संजमट्ठाणा असंखेज्जगुणा परिहारविसुद्धियसंजयस्स किं सागारोवउत्ते होजा अणागारोवउत्ते होजा ? गोयमा ! संजमट्ठाणा असंखेज्जगुणा, सासाइयसंजयस्स छेदोवट्ठावणिय- सागारोवउत्ते जहा पुलाए एवंजाव अहक्खाए, नवरं सुहुमसंजयस्स य एएसिणं संजमट्ठाणा दोण्ह वितुल्ला असंखेजगुणा संपराए सागारोवउत्ते होज्जा, नो अणागारोवउत्ते होज्जा // 17 // / / 14 / / (सू०७६१) सामाइयसंजयस्स णं भंते ! केवइया चरित्त- सामाइयसंजए णं भंते ! किं सकसायी होजा अकसायी होजा? पज्जवा पण्णता ? गोयमा ! अणंता चरित्तपज्जवा पण्णत्ता, एवं गोयमा! सकसायी होज्जा; नो अकसायी होजा, जहा कसायजाव अहक्खाय-संजयस्स। सामाझ्यसंजए णं भंते ! सामा- कुसीले। एवं छेदोवट्ठावणिए वि। परिहारविसुद्धिए जहा पुलाए। इयसंजयस्स सट्ठाण-सन्निगासे णं चरित्तपज्जवेहिं किं हीणे तुल्ले सुहुमसंपरागसंजए पुच्छा, गोयमा ! सकसायी होज्जा नो अकअब्भहिए ? गोयमा ! सिय हीणे छट्ठाणवडिए। सामाइयसंजए सायी होज्जा, जइ सकसायी होज्जा से णं भंते ! कतिसु कसायेसु णं भंते ! छेदोवट्ठावणियसंजयस्स परट्ठाणसन्निगासेणं चरित्त- होजा? गोयमा! एगम्मि संजलणलोभे होज्जा, अहक्खायसंजए पज्जवेहिं पुच्छा, गोयमा! सिय हीणे छट्ठाणवडिए,एवं परिहार- जहा नियंठे॥१८|| सामाइयसंजए णं भंते ! किं सलेस्से होज्जा विसुद्धियस्स वि। सामाइयसंजएणं भंते ! सुहमसंपरागसंज- अलेस्से होजा ? गोयमा! सलेस्से होजा जहा कसायकुसीले। यस्स परट्ठाणसन्निगासे णं चरित्तपज्जवे पुच्छा, गोयमा ! हीणे एवं छेदोवट्ठावणिए वि। परिहारविसुद्धिए जहा पुलाए / सुहुमनो तुल्ले नो अब्भहिए अणंतगुणहीणे, एवं अहक्खायसंजयस्स संपराए जहा नियंठे / अहक्खाए जहा सिणाए / नवरं जई वि। एवं छेदोवट्ठावणिए वि, हेहिलेसु तिसु वि समं छट्ठाणवडिए सलेस्से होज्जा एगाए सुक्कलेस्साए होज्जा।।१६।। (सू०-७९२) उवरिल्लेसु दोसुतहेव हीणे, जहा छेदोवट्ठाणवणिए तहा परिहार- ‘एवं छेओवट्ठावणिए वि' त्ति, अनेन बकुशसमानः कालतश्छेदोविसुद्धिए वि। सुहुमसंपरागसंजए णं भंते ! सामाइयसं-जयस्स पस्थापनीयसंयत उक्तः। तत्र च बकुशस्य उत्सपिण्यवसप्पिणीव्यपरट्ठाणे पुच्छा, गोयमा! नो हीणे नो तुल्ले अब्भहिए अणंतगुण- तिरिक्तकाले जन्मतः सद्भावतश्च सुषमसुषमादिप्रतिभागत्रये निषेधोऽमन्भहिए एवं छे ओवट्ठावणियपरिहारविसुद्धिएसु वि समं सट्ठाणे भिहितः, दुष्षमसुषमाप्रतिभागे च विधिः / छेदोपस्थापनीय-संयतस्य सिय हीणे नो तुल्ले सिय अब्भहिए, जइ हीणे अणंतगुणहीणे तु तत्राऽपि निषेधार्थमाह- 'नवर' मित्यादि। संयमस्थानद्वारे - 'सुहमअह अब्भहिए अणंतगुणमब्भहिए, सुहमसंपर / य संजयस्स संपराये' त्यादौ 'असंखेज्जा अंतोमुहुत्तिया संजमहाण' त्ति अन्तर्मुहूर्ते अहक्खायसंजयस्स परहाणे पुच्छा, गोयमा ! हीणे नो तुल्ले नो भवानि आन्तर्मुहूर्तिकानि, अन्तर्मुहूर्तप्रमाणा हि तदद्धा, तस्याश्च अब्भहिए अणंतगुणहीणे, अहक्खाए हेट्ठिल्लाणं चउण्ह वि नो प्रतिसमयं चरणविशुद्धिविशेषभावदसंख्येयानि तानि भवन्ति, हीणे नो तुल्ले अब्भहिए अणंतगुणमब्भहिए सट्ठाणे नो हीणे तुल्ले यथाख्याते त्वेकमेव, तददायाश्चरणविशुद्धेर्निर्विशेषत्वादिति / संयमनो अब्भहिए एएसिणं भंते ! सामाइयछेदोवट्ठावणियपरिहार- स्थानाल्पबहुत्वचिन्तायां तु किलासद्भावस्थापनया समस्तानि विसुद्धियसुहमसंपरायअहक्खायसंजयाणं जहन्नुकोसगाणं संयमस्थानान्येकविंशतिः, तत्रैकमुपरितनं यथाख्यातस्य, ततोचरित्तपज्जवाणं कयरे कयरे०जाव विसेसाहिया वा? गोयमा ! ऽधस्तनानि चत्वारि सूक्ष्मसंपरायस्य तानि च तस्मादसंख्येयगुणानि सामाइयसंजयस्स छेओवट्ठावणियसंजयस्स य एएसिणं जहन्नगा दृश्यानि, तेभ्योऽधश्चत्वारि परिहत्यान्यान्यष्टौ परिहारिकस्य, चरित्तपज्जवा दोण्ह वितुल्ला सव्वत्थोवा परिहारविसुद्धियसंज- तानि च पूर्वेभ्योऽसंख्येयगुणानि दृश्यानि / ततः परिहतानि यानि यस्स जहन्नगा चरित्तपञवा अणंतगुणा तस्स चेव उक्कोसगा / चत्वार्यष्टौ च पूर्वोक्तानि तेभ्योऽन्यानि चत्वारीत्येवं तानि षोडश चरित्तपञ्जवा अनंतगुणा सामाइयसंजयस्स छेदोक्ट्ठावणिय- | सामायिकच्छंदोपस्थापनीयसंयतयोः, पूर्वेभ्यश्चैतान्यसंख्यातगु