________________ सुरिन्ददत्त 1005 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 7 सुरिन्ददत्त निट्ठवियअट्ठकम्मा, परमपयं जंति अचिरेण // 176 / / अह तुट्ठो भणइ निवो, भयवं! अहमवि वयस्स किं उचिओ? वागरइ गुरू नरवर!, अन्नो को नाम उचिउ त्ति // 180|| तो रन्ना नियपुरिसा, वुत्ता भो भो कहेह मंतीणं / जह देवाणुपिएहिं, कुममो रज्जे मिसित्तव्यो / / 181 / / नय कायव्वो खेओ, गहेमि दिक्खं सुदत्तगुरुपासे। तेहि वि तहेव कहियं, गंतूणं मंतिपमुहाण // 12 // ते संभंता सव्वे, अंतेउरिआउ कुमरकुमरीओ। सेसो परियणलेलो, तत्थ, ऽऽरामे लहुं पत्तो / / 183 // मेइणितलासणत्थं, विच्छड्डियछत्तचामराडोवं। कहकहवि निवं नाउं, सगरगयं ते भणंति इमं // 184|| गयडाढुव्व भुयगो, वारीछूढ व्व मत्तमायंगो। सीहो व्व पंचरगओ, किं झायसि रज्जभठ्ठ व्व।।१८५॥ तो रन्ना सव्वेसिं, मुणिवयणं साहियं निग्वसेसं। तं सुणिय जाइसरणं, संजायं कुमरकुमरीणं॥१८६|| संवेगभाविएहिं, भवउव्विग्गेहि तेहि उल्लवियं। ताय ! अलं अम्हाणं, भोगेहिं भोगिभीमेहिं॥१८७! गिहिस्सामो अम्हे, वितायपाएहि सह समणभावं। पडिभणियं नरवइणा, मा पडिबंधं कुणइ वच्छ!||१८८|| तो विजयवम्मनियभा-इणिज्ज कुमरे ठवित्तु रजभरं। जिणनाहचेइएसुं, काउं अट्ठाहियामहिमं / / 186|| कइवयअंतेउरपु-तपुत्तिसामंतमंतिमाइजुआ। गिण्हइ सुदत्तगुरुणो, पासे गुणहरनिवो दिक्खं / / 160 / / कारुन्नसुपुन्नेणं, विन्नत्तो कुमर साहुणा सूरी। नयणावलिं पि भयवं!, नित्थारसु भवसमुद्दाओ।।१६१।। भणइ गुरू करुणायर!, सा संपइ कुट्टवाहिविहुरतणू। अच्छिन्नमच्छिया जा-ल परिगया लोयपरिभूया / / 192 // पइखणफुरंतरुद्द-ज्झाणवसा बद्धतइयनरगाऊ। अइदीहरसंसारा, धम्मस्सुचिया न थेवं पि||१९३|| तो गुरूवेरग्गगओ, चरणं पालित्तु अभयरुइसाहू। तह अभवमई समणी, जाया देवा सहस्सारे॥१६४|| इत्थेव भरहखित्ते, खित्ते इव करिसएहि कयसोहे। संकेयनिकेयं वर, सिरीइ पुरमत्थि सायं / / 165|| विणयंधरोधरो इव, सुपइट्ठो सफलओ निवो तत्थ। लच्छिमई तस्स पिया, पियामहस्सेव सावित्ती॥१६६|| अह सो भयरुइजीवो, तत्तो चविऊण तीइ उयरंमि। मुत्तामणि व्व सुत्ती, पुडसु चित्तो समुप्पन्नो / / 167 / / पडिपुन्नेसु दिणेसु, सुसुमिण पिसुणियसुपुन्नपब्भारं। सा पसवइ मलयमहि, व्व चंदणं नंदणं परमं / / 168 / / नाऊण इमं राया, पियंवयादासचेडिवयणाओ। कारेइ हट्टतुट्ठ, नयरे वद्धावणं एवं / / 166 / / तथाहिमुचंति झत्ति पुरगुत्तियाई, दाणाइँ महंति पवत्तियाई। निरुवम किज्जह हट्टसोहं, नचंति पउर पाउल अखोहं।।२०।। आवंतिबहुयजण अक्खवत्त, गायंति कुलबहू कमलनित्त। तहि पडहिं नगारिय भट्ट चट्टदीसंति ठाणडाणमिनट्ट॥२०१।। बज्झति हुघरिघरितोरणाइं, सोहिजइ वररत्थामुहाई। उज्झिज्जइ जूबहमुलसलसहस्स, ठाविज्ञहि कंचणपुत्र कलस // 202 / / एवं भूमिप्पहु जम्म महामहु. कारिय दस दिवसइ नयरि। तउ कुमर मणोहरु नामु, जसोहरू संठावइ अइहरिसभरि।।२०३।। सो वहृतो नवनव, कलाहि नवससहरु व्व पइदिवसं। जाओ य जुव्वणत्थो, जसधवलियसयलदिसिवलओ॥२०४।। अह अत्थि कुसुमनयरे, ईसाणो इव तिसत्तिपरिकलिओ। ईसाणसेण राया, विजया नामेण से देवी।।२०५॥ सो अभयमई जीवो, सग्गाओ चविय तीइ उयरंमि। वरधुया संजाया, विणयवई नाम विक्खाया // 206 / / पत्ता च तयणभावं, सयंवरा पेसिया नरिंदेण। बहुभडचडगरसहिया, कुमरस्सजसोहरस्स इमं॥२०७।। विणयंधरस्स रन्नो,य बहुमएनयरबाहिरुज्जाणे। आवासिया य एसा, विवाहदिवसे य अह पत्ते! 208!| लच्छिवई पमुहेहि, कुमरो मणिरयणकणयकलसेहि। मज्जाविओ विलेवण, वत्थाहरणेहि लंकरिओ // 206 // आरोविओ गइंदे, वीरजंतोय चारुचमरेहिं। सिरधरियधवलछत्तो, धुव्वंतो मागहजणेण // 210 / / सिंधुरखंधगएणं, अणुगम्मतो निवाइलो एणं। पइदिसि वि सद्दरह तुरि-य घट्टकलिओ य जा जाइ॥२११।। ता फुरियरुइरदाहिण-नयणेण जसोहरेण कुमरेण। कल्लाणसिद्धिभवणे, कल्लाणगिई मुणी दिट्ठो॥२१२॥ मन्ने एरिसरूवं, कत्थ वि मे दिट्ठपुव्वयं ति इमो। ईहापोहगयमणो, समुच्छिओ हत्थिखंधमि॥२१३|| धरिओय निवडमाणो, पासट्ठियरामभद्दसिष्टेण। किं किं ति जंपमाणा, निवाइणो वि य तर्हि पत्ता / / 214 // चंदनजलपडुपवण-प्पयाण पउणीकओकुमारवरो। सुमरियजाई पुट्ठो, रन्ना ! किं वच्छ ! एयं ति।।२१५|| कुमारःताय अइगहिर संसा-रविलसियंदारुणं इमं एवं / राजाको इत्थ अवसरो भव-विलसियचिंताइ ते वच्छ!|२१६|| कुमारःएसा कहा महंती, ता ताय! कर्हि पिएगदेसंमि। उवविसह जेण एवं, कहेमि सयलं निययचरियं, // 217 // रन्नावि तहेव कए, कुमरो साहइ सुरिंददत्तभवा। आरभ पिट्ठकुकुड-वहजणियकिलेसभरविरसं।२१८॥ नियवुत्ततं जाइ, सुमरणपजंतयं तयं सुणिउ। भणइ निवाइजणो कह, विरसो जियवहविगप्पो वि॥२१६।। तो कयअंजलिबंधो, कुमरो जंपइ पसीय मह ताय ! / अणुमन्नसुचारित्तं, तरेमि जेणं भवसमुदं / / 220|| पुत्त ! अइनेहमोहिय-मई नरिंदो कहिं पिजा कुमरं। न विसज्जइ ता इमिणी, महुरसरं विन्नवियमेयं / / 221 / / संसारो दुहहेउ,दुक्खफलो दुसह दुक्खरूवोय। नेहनियलेहि बद्धा, न चयंति तहावितं जीवा, // 22 // जह न तरइ आरुहिउं, पंके खुत्तो करी थलं कह वि। तह नेहपंकखुत्तो, जीवो नारुहइ धम्मथलं / / 223|| छिजं सोसं मलणं, बंधं निप्पीलणंच लोयंमि।