________________ सुरिन्ददत्त 1004 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 7 सुरिन्ददत्त अइतिक्खदंतदाढा, उग्गाढा हरिणपवणजइणगई। लल्लकमाणजीहा, ते पत्ता मुणिसमीवंति // 135 / / जलिरजलणं व तवसा, दित्तं तं दठ्ठ निप्पहा जाया। साणा ओसहिभरभ-गउग्गरला विसहरु य्व // 136 / / काउं पयाहिणतियं, अणप्पमाहप्पओ मुणिवरस्स। चरणे पडियं महियल-मिलंतमउलिं सुणयवंदं॥१३७।। तं दठु विलयचित्तो, चिंतइ राया वरं इमे सुणया। न उण अहं जो अकुसल-कारी एयस्स वि मुणिस्स॥१३८|| अह निवइबालमित्तो, सिट्ठिसुओ नामओ अरिहमित्तो। जिणमुणिपवयणभत्तो, मुणिनमणत्थं तहिं पत्तो / / 136 / / नाओ य तेण मुणिवर, उवसग्गपरो निवस्सऽभिप्पाओ। भणियं च देव! किमिणं, सविसायं आह राया वि॥१४०|| भो मित्त ! अलाहि ममं, चरिएणं पुरिससारमेयस्स। इयरो वि भणइ मा दे-व! एरिसं वयणमुल्लवसु॥१४१॥ सहु ओयरसु तुरंगा, भववंत वंदिभो सुदत्तमुणिं! भुवणच्छरियं चरियं, इमस्स किं देव ! न सुयं ते॥१४२।। अह संभंतेण निवे-ण पभणियं कहसु कहसु भो मित्त !! सुपुरिस कहाविजापा-व तिमिरहणणिक्कसूरपहा।।१४३।। जंपेइ अरिहमित्तो, कलिंगपहुअमरदत्तनरवइणो। पुत्तो आसि सुदतो, राया नापावदायमई॥१४४॥ तस्स य कयावि चोरो, उवगीओ तलवरेण भणियं च। देव! इमो वढनरं, वावाइय मुसिय अमुगगिह / / 145 // मणिकणगरयणधणजाय माइ बहु गिहिउंच गच्छंतो। अम्हेहि अज्ज पत्तो, संपइ देवो पमाणं ति॥१४६|| तो धम्मसत्थपाठी, अवराहं कहियं पुच्छिया रना। एयस्स को णु दंडो, तेहि वि एवं समुल्लवियं // 147 // करचरणसवणप्पण, पुव्यमिमो अरिहए वह चेव। तं सोउ चिंतइ निवो, धिरत्थु एयस्स रजस्स॥१४८|| जीववह–अलियभासण-अदिन्नगिण्हण-अबंभचेराइ। आसबदारा दारा, व कुगइणो जत्थ वट्टति।।१४६|| रज्जे तओ सुदत्तो, ठविउं आणंद नामजामेयं / पासे सुहम्मगुरुणो, दिक्खं गिण्हइ इमो साहू॥१५०॥ अह उत्तरियं तुरियं, तुरयाओ हरिसिओ महीनाहो। नमइ मुणिंदं तेणवि, दिन्नो से धम्मलाभुत्ति / / 151 / / तंदठु साहुरूवं तब्वयणं सवणसुहयरं सुणिउं। लज्जाभरोणयमुहो, अणुतावा चिंतइ नरिंदो।।१५।। कहकहमि नत्थि सुद्धी, रिसिधायणववसियस्स इह मज्झं। इमिणा असिणा ता लहु, लुणामि कमलं व नियमउलि // 153|| इय झायंतो वुत्तो, मुणिणा मणनाणिणा महाराया। चिंताइ अलभिणीए, जं आयवहो वि पडिसिद्धो।।१५४|| आहचभावियजिणवयणाणं, ममत्तरहियाण नत्थि उ विसेसो। अप्पाणंमि परंमि य, तो वज्जे पीडमुभओ वि।।१५५।। नय अन्नं पावकलं-क पंकपक्खालणक्खमं राय! जिणवरपणीयपवयण-वयणाणुट्ठाणवारि विणा / / 156 / / अह हिययगयाभिप्पा-य कहणओ रंजिओ भिसं राया। हरिसंसुपुन्ननयणो, नमिउं विन्नवइ मुणिपवरं / / 157 / / भयवं! किं पच्छित्तं इमस्सपावस्स घायणसमत्थं। मुणि आह नियामविव-जणेणं पडिवक्खआसेवा।।१५८।। इत्थ नियाणं मिच्छ-त्तसंगयं पावहेउ अन्नाणं / तं चन्नहा ठियाणं, भावाणं, अन्नहा गहणं / / 156 / / तुमए विचिंतियं निव! अवसउणं समणओ इमो दिट्ठो। अवसउणत्ते य इम, निमित्तमज्झवसियं भद्द !!|160 // जह किर एसो चिक्कण, मलमइलतणू सिणाणपरिवजी। सोयायारविमुक्को, परघरभिक्खोवजीवि त्ति // 161 / / ता मज्झत्थे होउं,खणमेगं मालवेस! निसुणेसु। मलमलिणत्तं मइल-त कारणं नो जओ भणियं // 162 / / ध००। किंचआत्मा नदी संयमतोयपूर्णा, सत्यावहा शीलतटा दयोर्मिः। तत्राभिषेकं कुरुपाण्डुपुत्र!, न वारिणा शुध्यति चान्तरात्मा!!* अक्खंडियवयनियमा, गुत्ता गुतिंदिया जियकसाया। अइ सुद्ध बंभचेरा, सुइणो इसिणो सया नेया॥१६३।। ध००। सत्यं शौचंतषः शौचं, शौचमिन्द्रियनिग्रहः। सर्वभूतदया शौचं,जलशौचं च पञ्चमम्॥१६४|| आरंभनियंतस्स य, अप्पडिबद्धस्स उभयलोए वि। भिक्खोवजीविगत्तं, पसंसियं सव्वसत्थेसु॥१६॥ उक्तंचअवधूतांच पूतां च, मूर्खाद्यैः परिनिन्दिताम्। चरेन्माधुकरी वृत्ति, सर्वपापप्रणाशिनीम्॥१६६।। चरेन्माधुकरी वृत्ति-मपि प्रान्तकुलादपि। एकान्तं नैव भुञ्जीत, बृहस्पतिसमादपि // 167 / / एवं च गुणग्धविधं, तियसाणं वि मंगलं समगुरूवं। गुणहर नरनाह ! कहं, अवसउणत्तेण ते गहियं // 168 / / एमाइ सुणिय राया, अइहिट्ठो नट्ठदुमिच्छत्तो। मुणिनाह पयलग्गो, खमावइ निययमवराहं // 16 // भणइ मुग्गी वि नरेसर, इद्दहमित्तेण संभमेण कयं। नणु खमियं चेव मए,खंति चिय जं समणधम्मो // 170|| नत्थिहु मुणिवरनाण-स्स अविसओ इय विचिंतिउं रन्ना। तायस्स अज्जियाए, गईविसेसं मुणी पुट्ठो!|१७१॥ मुणिणा वि पिट्ठकुक्कुड, बहमूलो तेसि सयलबुत्तंतो। कहिओजयावलीग-भ संभवावचपेरंतो॥१७२।। तो चिंतियं निवइणा, अहह अहो महिलियाण कूरत्तं / ही मोहस्स गुरुत्तं, भवस्स धि कुछुणीयत्तं // 173|| जइ संति निमित्तं पिहु, विहिओ पिट्मयकुक्कुडवहो वि। तायज्जियाण जाओ, एवंविहदारुणविवागो।।१७४|| हा अहयं किह होइं, निरत्थयं जेण जियसिया बहिया। अइकोहलोहमोहा, ऽभिभूयचित्तेण निचं पि / / 175|| तानूणं गंतव्वं, सरसरलेणं पहेण नरयंमि। नत्थि हु इत्थ उवाओ, अहवा पुच्छामि भयवंतं // 176 / / अह मुणि निवहिययं, आह मुणी सुणसुनरवर ! उवायं। मणवयणतणुविसुद्धा, जिणिंदसद्धम्मपडियत्ती / / 177 / / मित्ती पमोय करुणा, मज्झत्थं सव्वयावि कायव्वं / नीसेसजियगुणाहिय, किलिस्समाणा विणीएसु / / 178|| एव काउ सम्म, परिपालियनिरइयारवयनियमा।