________________ सुरिन्ददत्त 1003 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 7 सुरिन्ददत्त तद्दिवसं चेव मया, धन्नउरे कुक्कुरे जाओ।।८६| सोविजयपवणवेगो, तप्पुरपहुणा य गुणहरस्सेव। कोसल्लियं ति पहिओ, पत्ता ते समगमुवनिवई॥८७|| वरहिणसुणपालाणं, समप्पिया निवइणा पहिडेण। रन्नो अईव इट्ठ-त्ति तेवि पालंति जत्तेण / / 5 / / कालक्कमेण मरिउं, ते दो वि हु दुप्पवेसनामवणे। जाया पसयभुयंगा, अन्नुन्नं भक्खिऊण मया / / 6 / / ते मीणसुंसुमारा, जाया सिप्पा नईइ मज्झमि। पविसिय नईएँ केणवि, कयावि मंसासिणा निहया // 6 // तो उज्जेणिपुरिए, मेसो छगले य ते समुप्पन्ना। पारद्धिपसत्तेणं, गुणहररन्ना कयावि हया // 61|| तत्थेव पुणो जाया, मेसो महिसोय गुणहरनिवेण। अइमंसलोलुएणं, किच्छेण हणविया कइया / / 12 / / भवियव्ययावसेणं, पुणरवितत्थेवते विसालाए। मायंगपाडयमी, उववन्ना कुक्कुडीगढभे६३|| तीए कुक्कुडियाए, दुट्ठविरालेण खज्जमाणीए। भीयाइ अंडगदुर्ग, परिगलियंकयवरस्सुवरि / / 64|| इत्तोय तेसिमुवरिं, डुवीए कजओ परिदुविओ। तस्सुन्हाए कमसो, कुक्कुडपोया दुवे जाया ||5|| तेसि पिच्छाइ चंद-चंदिमा धवलयाई जायाई। चूला य समुभूया, सुयमुहगुंजद्धरागसमा॥६६॥ कइयावि कालनाम-णंतलवरेण इमे निए*णं। उवणीया खिल्लणयं, ति काउगुणहरननिंदस्स / / 67 // भणियं निवेण तलधर, जत्थ अहं जामि तत्थ तुमए वि। एए सह आणेया, इमो वि पचाइ एवं ति||८|| महुसमयंमि, पयट्टे, अंतेउरसंजुओ निवो पत्तो। कुसुमायरआरामे, कुक्कुडऍ गहियकालो वि||६|| तत्थ य कयलीहरम-ज्झ माहवीमंडरे ठिओ राया। कालो असोयविही-इ तत्थ पिच्छेइ मुणिपवरं / / 100|| सो तेण भावसहियं, ति वंदिओ तस्स मुणिवरेणावि। दिन्नो य धम्मलाभो, संपाडियसयलसहलाभो॥१०१।। तंदंठ्ठ पगइउवसं-तकंतरूवं पसन्नसहवयणं। हिट्ठो भणइ तलारो, भयवं ! को तुज्झ धम्मु त्ति / / 102|| साइह मुणी महायस, असेससत्ताण रक्खणं सययं। इक्कुचिय इह धम्मो, ओहेण विभागओ उइमो // 103 / / तथाहिजीवदय सचवयणं, परधणपरिवञ्जणं सया बंभ। सयलपरिग्गहचाओ, विवजणं रयणिभत्तस्स // 104 / / बायालीसेसणदो-ससुद्धपिंडस्स भोयणं विहिणा। अप्पडिबद्ध बिहारो, सारो धम्मो इय जईणं, // 10 // जंपेइ तलवरो पुण, निहत्थधम्मो कहेसु मे भयवं!। परउवयारिक्कमणो, मुणीविजंपइ तओ एवं / / 106 // अरिहं देवो गुरुणो, सुसाहुणो जिणमयं मह पमाणं / इय सम्मत्तपुरस्सर-मिमा. बारस वयाइँ इह, / / 107 / / संकप्पनिवराहा, दुहा तिहा तस जिया न हंतव्वा / कन्नालिआइ पमुह,थूलमलीयं न वत्तव्वं, // 108|| खत्तखणणाइचोरं, कारकरमन्नियं न घेत्तव्वं / परदारपरीहारो, अहवावि सदारसंतोसो॥१०६॥ धणधन्नाइपरिग्गह- परिमाणं माणवेहिँ कायव्वं / किच्चो सयलदिसासु, अवही अवहीरिउं लोह, // 110 / / महुमंसाईचाया, कायव्वा विगइपमुहपरिसंखा। जहसत्तिऽणत्थदंडो, व यव्यो अइपयंडो॥१११॥ समभावो सामइयं, खणिएणं तं सयावि कायव्वं / देसावगासियं पुण, सयलवयाणं पि संखिवणं॥११२॥ देसे सव्ये यदुहा, ससत्ति, पोसहवयं विहेयव्वं / साहूण सुद्धदाणं, भत्तीए संविभागवयं // 113 / / एयं दुवालसबिह, गिहिधम्म पाणिणो विहियविहिण्णा। कमसो विसोहियं क मकयवरं जंति परमपयं, / / 114 // तं सोउ भणइ कालो, भयवं ! एयं करेमि गिहिधम्म। किंतु कमागयमेयं, हिंसं सक्केमि नो चइउं॥११५|| वागरइतओ साहू, जइएवं नो चएसि भो भद्द!! इय कुकुड मिहुणं पिव, तो लहिसि भवे अणत्थभर।।११६॥ सो आह कहमिमेहिं, जीववहं अचइउंदुह पत्तं / तो मूलाओ कहिया, मुणिणा तेसिं भवा एवं // 117|| सुयजणणी सिहिसाणा, पसयअही मीणसुंसुमाराय। मेसछगली य मेसय-महिसा कुक्कुडजुगं जाव।।११८॥ तेसिं निसुणिय अगणिय, दुहदंदोलिं विसुद्ध संवेगो। पभणइ भत्तीए दं-डपासिओ वासिओ हियए।।११।। भयवं ! म नित्थारसु, इमाउ भवमीमकूवकुहराओ। गिहिधम्मवरत्ताए, निप्पन्नाए गुणगणेहिं / / 120 / / तो साहुणा तलवरो, सावयधम्मस्स भायणं विहिओ। पञ्चपरमिट्ठिमंतं, निभंतं तहय सिक्खविओ।।१२१॥ अह तेहि कुकुडेहि वि, तं मुणिवयणं फुडं सुणतेहिं। पत्तं जाईसरणं, तहेव गिहिधम्मवररयणं / / 122 / / अइनिव्वेयपरेहिं, संविग्गमणेहि हरिसविवसेहि। महया महया सद्दे-ण कूइयं तं सुयं रना॥१२३॥ उअमह सरवेहितं, जयावलिं निययदेविमिय भणिउं। नरवइणा इगइ सुणा, ते दोवि हया गया निहणं॥१२४॥ गब्भे जयावलीए, पुत्तत्ताए सुरिंददत्तजिओ। तेसुववन्नो एगो, वीओ पुण पुत्तिभावेण / / 12 / / गन्भणुभावा देवी, हिंसापरिणामविरहिया सुहिया। जिणपवयणसवणमई,संजाया अभयदाणरुई॥१२६|| नीसेसजीव अभय-प्पणपउणो य डोहलो तीसे। नयरे पयडेउ अमा-रिघोसणं पूरिओ रन्ना // 127 // कालक्कमेण देवी, पसवेइ जुगलिणि व्वं मरजुगलं। तो कारवियं नयरे, निवेण वद्धावणं गरुयं // 128 // अह बारसंमि दिवसे, ठवियं कुमरस्स अभयरुइनाम। कुमरीए अभयमइ, त्ति दोवि वर्ध्वाति सुहसुहओ / / 126 / / निम्मलकलाकलावा, कमेण जुव्वणमणुतरं पत्ता। ता हट्ठतुट्ठचित्ते-ण राइणा चिंतियं एवं / / 130 // सामंताइसमक्खं, जुवरज्जपए ठवेमि कुमरमहं। कुमरीइ रूवविजिया-उमरीइ कारेमि वीवाहं / / 131 // इय चिंतिऊण पत्तो, पारद्धिकए भिराममाराम====! छिको य सुरहिपवणे-णं पिच्छए संयलदिसिचक्कं / / 132 // ता तत्थ तिलयतरुवर-तलंमि कंचणगिरि व्व निक्कंपो। नासगनिहियनयणो, सुदत्तनामा मुणी दिह्रो // 133 // हा अवसउणु ति पयं-पिऊण कुविएण भूमिनाहेण। मुणिवरकयत्थणत्थं, छुच्छुक्कियमंडला मुक्का // 134!!