________________ सुरिन्ददत्त १००२-अभिधानराजेन्द्रः - भाग 7 सुरिन्ददत्त तं चेव सुमिणयं तह, कहेमि पडिधायहेउ जह तस्स। तो हाहारव मुहला-इतीइ धरिओ भुयादंडो॥६३।। भन्नइ मह मुणिवेसं, पव्वइओ चियतओ अहयं / / 45|| भणिओ य पइविदन्ने, वच्छ! अहं किं नु जीविहं पच्छा। इय सामत्थिय कहिओ, सुमिणो जणणीइ ! अंब! जह अज्ज। माइवहो चेव इमो, ता तुमए ववसिआ इत्थ॥६४।। गुणहरकुमरस्स अहं, रजंदाऊण पव्वइओ॥४६॥ इत्तो य कुक्कुडणं, कुइयं सुणिओ य तीइ तस्सदो। धवलहराउ निबडिओ, इचइ सुणित्तु तीइ भीयाए। भणियं य वच्छ ! निहणसु, एयं जं अत्थि इह कप्पो॥६५॥ थुत्थुक्कियं च वाम-कमेण अक्कमियमहिवलयं / / 47|| एरिसकले पगए, जस्ससरोसुम्मएतयं हणिउं। यशोधरा प्राह ..तप्पडिबिंब अहवा, करिज ससमीहियं पुरिसो॥६६।। एयस्स विघायकए, दाउं कुमरस्स रनमित्तरियं / राजागिण्हेइ समणलिग, (राजा) एवं ज आणवइ अंबा।।४८|| हे भाय ! कायमणवइ, जोगेहि हणे न जावमन्नमहं / यशोधरा यशोधरानिवडणनिमित्तयं पुण, जलथलखेयरजिए बहुं हणिउं। जइएवं पिट्ठमयं, पि कुक्कुडं हणसुता वच्छ!॥६७।। कुलदवयचणेणं, करेहितं संतिकम्मं ति॥४६|| तो माइनेहमोहिय-मणेण सछन्ननाणनयणेण / राजा जणणीवयणं रुन्ना, पडिवन्ने गयविवेएण॥६८|| जियघाया यण संती, हहा कहं अंब! ते समाइट्ठा। यद्वाजं धम्मेणं संती, सो पुण धम्मो दयामूलो !॥५०॥(ध०२०) बहुयं पिहु विन्नाणं, नाइसय होइ निययकजंमि। (अभयदानकथनम्-'अभयदाण' शब्दे प्रथमभागे७०६ पृष्ठे द्रष्टव्यम्।) / सुटु वि दूरालोयं, न पिच्छए अप्पयं लच्छी॥६६॥ तं अंब ! संतिकम्म,तं चिय सव्वत्थ साहणसमत्थ। नरनाहवयणपरिपे-रिएहिँ सिप्पीहिँ झत्ति निम्मविओ। जं अइथेवं पिपर-स्स नेव चिंतिज्जए पाव।।५१।। पिट्ठमय तंवचूडो, जसोहराए समुवणीओ॥७०|| सा वि तओ निवसहिया, गंतु कुलदेवया पुरो भणई। यशोधरा इय कुक्कुण तूसिय, मह सुयकुसुमिणहरा होसु॥७१।। पुत्तय ! परिणामवसा, पुन्नं पावंच होइ अहवावि। अह तीइ पेरिएणं, निवेण असिणा स कुक्कुडो बहिओ। देहारुग्गनिमित्तं, पावं पिहु कीरए इत्थ // 52 // भक्खसु एवं मंस, ति जंपिए तेण पडिभणियं / / 72|| यत उक्तम वरमंब! विसं भुत्तं, नउमंसं नरयदुसहदुहहेळं। पावं पिहु कायव्यं,बुद्धिमया कारणं गणंतेणं। तसजीववहुप्पन्न, दुग्गंधं असुइवीभत्थं // 73 // तह होइ किं पिकजं, विसं पिजह ओसहं होइ॥५३॥ तत्तो जसोधराए, जसोहराए य पत्थिओ वाद। राजा पिट्ठमयतम्बचूड-स्स नरबरो भुंजए संसं // 74|| जइ वि परिणामवसओ, पुन्नं पावं हवेइ जीवाणं। अह वीयदिणे कुमरं, रज्जे संठविय जाव पव्वइही। तह वि य जयंति सन्तो, परिणामविसोहिमिच्छंता // 54 // ता देवीए भणिओ, पडिवालसुदेव! अज्ज दिणं // 75 / / जो पुण हिंसाययणे-सु बट्टई तस्स नणु परीणामो। पव्वहइमहं पिसुए. अणुहविउं अज्ज ! पुत्तरजसुहं। दुट्ठो न यतं लिंग, होइ विसुद्धस्स जोगस्स।।५५|| चिंतइ निवो इमीए किमिण पुव्वावरविरुद्धं // 76|| किंच अहवा चयइ जियंतं, सयं पि अणुमरइ कावि भत्तारं। पुन्नमिवं पावं चिय, सेवंतोतं फलं न पावेइ,। विसहरगई व वंक, को जागइ चरियमित्थीए।७७|| हालाहलविसभोई, न जीवई अमयबुद्धी वि / / 56|| ता पिच्छामि किमेसा, करेइ तो भणइ देवि! इय होउ। नय तिहुयणे वि पावं, अन्नं पाणाइवायओ गरुयं / सा चिंतेइ जइन इमं, जणुपव्वइहं तओ मज्झ॥७८|| जं सव्व विय जीवा, सुहेसिणो दुक्खभीरू य॥५७|| होही महं कलंको, कहमवि वावाइए पुण निबंमि। देहारुग्गकए विहु, जीवदया चेव अंब! कायव्वा। वालसुयपालणकए, अणणुमरंती इ वि न दोसो।।७।। आरुागमाइ सव्वं,जंजीवदयाफलं नूणं / / 58|| इय चिंतिय सा रन्नो, नहसुत्तीसठिय विसं देइ। तथाहि भुंजंतस्स तओ सो, जाओ विहलं घलो झत्ति / / 8 / / जं आरुग्णमुदग्गमप्पडिहयं आणेसरत्तं फुडं,। नाओ विसप्पओगो, आहूया विसविघायगा विजा। रूवं अप्पडिरूवमुञ्जलतरा कित्ती धणं जुव्वणं। विज्जाहवणं नहु सुं-दरं ति चिंतित्तु अह देवी॥८१|| दीहं आउ अवंचणो परियणो पुत्ता सुभत्ता सया, सोयभरकंता इव, धस त्ति निवडेइ नरवरस्सुवरिं। तं सव्वं सचराचरंमि वि,जए नूणं दयाए फलं॥५६॥ गलअंगुठ्ठपओगे-ण हणइ निययं पई पावा।।२।। वयणकलहेण इमिणा, अलं ममं चिय करेसुतं वयणं। अह अट्टज्झाणपरो, काया मरिउं सिबंधसेलमि! इय जंपिरो नरवई, जसोहरा धरइ बाहाए॥६०॥ जाओ मऊरपोओ, गहिओ चयनामवाहेण // 53 // तत्तो निवो वि चिंतइ, एगत्तो अंबयावयणलोवो। नंदावाडयगामे, चंडतलारस्स दिन्नओ तेणं। अन्नत्तो जीववहो, इत्थ मए किं तु कायव्वं // 61|| सत्तुयगपत्थएणं, सोतं सिक्खवइ नट्टकलं॥८४।। अहवा वि अइदुरतो, गुरुवयणविलोवओ विवयभंगो। बहुविहरयणा मेलय, सच्छइ बहुपिच्छभाररमणीओ। ता अत्ताणं पि हणिय, रक्खियो पाणिणो इहि // 62|| सो पाहुडं ति तेणं, पट्टविओ गुणहरनिवस्स॥८५|| इय चिंतिउंनिवइणा, पकड्डियं मंडलग्गमइउग्ग। इत्तो जसोहरा वि हुँ, सुयमरणुप्पन्नअटुझाणपरा।