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________________ ववहारकप्प 926 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 6 ववहारकप्प दारं-कुणती पाडिच्छो वितु, वेयावचं तु असणमादीहिं। बच्चइ वइमाणेणं कालेणं रोयती जाव / / गेण्हइ वा जाव सुतं, ता कुणती सव्वमेव पाडिच्छो। एत्तो दवे पुच्छं,जं आभवती तु पाडिच्छे / / जं होति णाणबद्धं, अभिसंधारे तगं तगं एति। संदेसदिण्हगं वा, णामे विवे य काले य॥ वल्ली अणंतरसंतर-अणंतरा छज्जणा इमे होति / माया पिया य माता, भगिणी पुत्तो य धूया य॥ मातुम्माया य पिता, भाता भगिणी य एव पितुणो वि। भाओ भगिणीणवचा, धूता पुत्ताण वि तहेव // परंपरवल्लि एसा, जदि वारेति पडिच्छगस्सेव। अहणो अभिवारेंति, सुतगुरुणो तो उ आभव्वा / / संगारो पुव्वकओ,पच्छापाडिच्छओ तु सो जाओ। तेण निवेदेयव्वं, उवहिता पुटव सेहा मे // एवतिएहि दिणेहि, तुज्झसगासं अवस्स एहामो। संगारो एव कतो, बिंबाणि य चेसि चिंचे।।। कालेण य बिंबेहि य, अविसंवादीहिं तस्स गुरुनिहरा। कालम्मि विसंवदिए, सुच्छिञ्जति किण्ह आओसि॥ सिंगारयदिवसेहिं, यदि गेलण्हादी वयि तु तो तु। तस्सेव अह तु भावो, विपरिणतो पच्छ पुणों जातो।। तो होति गुरुस्सेव तु, एवं सुतसंपदाए भणितं तु / दारं-सुहदुक्खुवसंपण्हे, एत्तो लाभ पवजामि। वट्टसु मम सुहदुक्खे, अहमवि तुब्मं तु एवमुपसंपे। पुरपच्छसंथुयाउ, सो लभती जे य बावीसं // दारं-सुहदुक्खसंपदेसा, एत्तो खेत्तोवसंपदं वोच्छं। खेत्तोग्गहो सकोसं, वाघाए वा अकोसं तु॥ पत्ते उग्गहसारण, वासावासे तहेव उडुबद्ध। सव्वदिसासु सकोसं, णिव्वाघातेण पत्ते उ॥ अडविजलतेणसावद-वाघाते एगदुगतिचउसुंवा। होज्जा अकोसों उग्गहों, अहुणा साहारणं वोच्छं। साहारणे होजाही, पडिलेहणपुथ्वपच्छणिगमेणं। पुव्वा पच्छा य परे, आयरिए वसह अजासु॥ दुगमादी गच्छाणं, पडिलेहगणिग्गताण समगं तु। पत्ता खेत्तं एसो, पढमगभंगो मुणेयव्यो॥ समगं णिग्गयएक्के, पच्छा पत्ता य बितियओ भंगो। पच्छा णिग्गयपुटवं, पविट्ठ पच्छा य दुण्णे वि।। पढमगभंगे जो खलु, पुटिव तु अणुण्हवेति ते खेत्ती। समगं पुणों ऽणुण्हविए, सामण्हं होति दोण्हं पि॥ बितीयभंगे दप्पेण, पुटिव पत्ता उ जदिणऽणुण्हवते। इयरेसिं असढाण य, अणुण्हवंताण खेत्तं तु॥ पुरणिग्गता कहं पुण, पच्छा पत्ता उते हवेचाहि। गेलण्हखमग पारण, वाघातो अंतर हवेला।। गेलण्हें वाउलाणं तु, खेत्तमन्नस्स णोदए। णिसिद्धो खमओ चेव, तेण तस्स ण लग्मती॥ अंतर वाधाएणं, पच्छा पत्ताण पुचि जे पत्ता। असोहि अणुण्हवितं, पुटिव पत्ता ण तं खेत्तं / / अह समगमणुण्हविए, कातु पमादं पि तो उ साहारं / एवं तु बितियभंगो, अहुणा तइयम्मि वोच्छामि। पच्छा विपत्थियाणं, सभावसिग्धगतिणो भवे खेत्तं / एमेव य आसण्णे, दूरद्धाणं व एयाणं / / भंगे चउत्थभंगी, पुव्वाणुहाएँ असदभावाणं / पढमगभंगसरिच्छा, आभवणा तत्थ णायवा।। पुष्वगहिओ वि उग्गहों, होति गिलाणहताए जहियव्यो। अह होज्जा संथरणं, कालक्खेवो दुपक्खे वि॥ पुष्वद्वितकेत्तीणं, जदि आगच्छे गिलाणइत्तऽहे। जदि दोण्ह असंथरणं, ते णिग्गमो खेतियाणं तु // अह दोण्हें वि संथरणं, दोण्ह वि अच्छंति जा गिलाणो उ। एते य दोण्हि पक्खा, अहवा समणा य समणीओ।। गेलण्ण उवहि किया, भत्तोवहिलद्धिता विहिग्गहितं / पेलंती परखेतं,साहम्मियतेणिया तिविहा॥ उवही नियडी माया, गिलाणणिस्साए विजमाणे वि। छडेतु एंति खेत्ते, भत्तोवहिलुद्धताए उ॥ लब्भंति सुंदराई, गिलाणणियडिऍ एंति तो तत्थ। इतरे वि गिलाणो त्तिय, काउ तओणे ति खेत्ताओ। तेसिं तु णिग्गएK, सचित्तादी उतिविह जंगण्हे। तं तेसि होति तेण्ड, पच्छित्तं चेव तिविहं तु॥ जे पुण असंथरंता, एंति तहिं तेसिमा भवे मेरा। आयरिऍ वसभअजा-मचे वोच्छं समासेणं / अच्छंति संथरे सवे, वसभाणीति ऽसंथरे। जत्थ तुल्ला भवे दो वि, तत्थिमा होति मग्गणा / / णिप्पण्हा तरुणे सेहे,मुंगितपादच्छिणासकरकण्हा। एते व संजतीणं, णवरं वुड्डीसुणाणत्तं // परिवारअणिप्फण्हो, अच्छति णिप्फण्हतो तु णिग्गच्छे। अच्छंति बुडतरुणा, य णिति सेहे असेहिण्डोणीति॥ अच्छंति जुंगिया तु, गिति अरे तुह व जुंगिता दोऽवि / तत्थऽऽइला अच्छे, अच्छे समणीण तरुणीओ।
SR No.016148
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri
PublisherRajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan
Publication Year2014
Total Pages1492
LanguageHindi
ClassificationDictionary
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