________________ वंदण वंदण 773 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 6 एए अट्ठा तिविहा, सविरइ वि करेइ आवस्सं / पूआ निसीहि एगा, भणिआ किर साहुअहिगारे / / 8 / / अबा उ अचित्ताणं, मणुएगत्तं पुणो वि जिणदिहे। . अंजलिमत्थे तिन्नि, उ, साहुणो अहिगमा नेआ॥६॥ पूयणनिमित्तै वजं, सावजं सावओ विजयणाए। उत्तरसंगं बीअं, तिन्नि य सेसाणि साहु व्व / / 10 // अकसिणपवत्तगाणं, दय्वत्थं सविहि पुटवमक्खायं / तेणेह सचित्ताणं, अचाओ अत्थि लाहस्स॥११॥ तंबोलभत्तपाण-सयणउवाणहजुयं च निट्ठिवणं। मेहुणमुत्तुबारं, वजइ जिणगेहसीमासु / / 12 // काऊण पयाहीणं, भूमि पमज्जइ सुहेण जोएण। भणई इरियाविहिअं, उस्सग्गो जाव लोगस्स / / 13 / / दो जाणू दोण्णि करा, पंचमगं होइ उत्तमंगं तु / पणिवाओ पंचंगो, भणिओ सुत्तट्ठदिट्ठीहिं॥१४॥ पणामत्तियं किचा, भणई सुत्तत्थ संथवणं / दाहिणजाणुणि तओ, ठवेइ भूभागदेसम्मि / / 15 / / सजलनयणो य पडिमा, पिक्खइ इग(गा)दाहिणे पासे। भाव विसुद्धीइ भणइ, सक्कथयं जोगमुद्दासु // 16 // अण्णोण्णंतरि अंगुलि, कोसागारेहिं दोहिं हत्थेहिं। पिट्टोवरि कोप्पर सं-ठिएहिँजह जोगमुद्दति // 17 // महुरझुणिमक्खलिअं, संपत्तं मुक्ख जाव जे अ जिणा। ठवणावंदणहेऊ, भावविसुद्धीसुइह(राओ)याओ।। 18 // काऊण उड्डकायं, अरिहंतचेइअदंडयं पढई। वंदणयाइफलट्टे, उस्सग्गो (पुण) होइ जिणमुद्दा / / 16 / / चत्तारि अंगुलाई, याउ पुरो हीणपच्छिमो जत्थ। वित्थारे जिणमुद्दा, उवओगटुं अणुट्ठाणं / / 20 // उगणीसदोसवजं, झाणट्टरुद्दविमुक्कसज्झाणं। विग्गोसग्गे ठिचा, अट्टस्सासा जहन्नेणं // 21 // पूरइ णमुयारेणं, एगो सुद्धक्खरेण संथुत्ति। एगसिलोगिय अहवा, वटुंति य मूलणाहस्स / / 22 / / निउणोवमाइ कित्ति, सब्भूअगुणासु जे अलंयारा। ललियक्खरेण पएणं, सरेण वड्डेण सा थुत्ति // 23 / / अन्ने सुणंति सव्वे, एगग्गमणा उसग्गमज्झम्मि। झायंति धम्मसुकं, तस्सट्ट धरंति वा एगे / / 24 / / नामत्थयं च पच्छा, कट्टइ समग्गसुवन्नअक्खलिओ। सव्वं लोए अरिहं-तचेइयाणं समग्गं वि।। 25 / / (वंद०) मुत्तासुत्तियमुद्दा, धरेइ सुहजोगसंपन्ना / / 26 // दो वि हत्था उ सुसमा, उन्नयसुत्तीव संठिया मज्झे। मुत्तासुत्तियमुद्दा, ललाडदेसेसु सा किच्चा / / 30 // १-स्तुतिवक्तव्यता थुइ' शब्दे चतुर्थभागे 2414 पृष्ठे गता दो पणिहाणा थवणं, सुसरेण सुहोवमाइसंजुत्तं / जयवीयरायपाढो, मुद्दापुट्वं च सव्वं वि॥३१॥ मुणिवसहाय निरीहा, इच्छा जेसिं वि नत्थि मुक्खस्स। कम्मा जायण तेसिं, पुणरत्तदोसो कहं नत्थि / / 32 // नत्थि पुणरुत्तदोसो, भत्तियरागेण भासमाणस्स। जिणजायणविवहारो, करेइ तहा वि ण सो दुट्ठो॥३३॥ उक्कोसा विहि एसा, नवयारेण च जहन्नसंकहिया। मज्झिमअणेगभेया, णेया सुत्ताणुसारेणं // 34 // उमओ कालजिणहरे, उक्कोसा वंदणा य णायव्वा। जहन्नों कारणवसओ, पणवारं मज्झिमा दिवसे / / 35 / / चेइयवंदणविहिणा, करंति जेसिंच णिज्जराविउला। अविहिकए पच्छित्तं, उवहाणविणा विनिद्दिढें // 36 // चेइयहरे न गच्छंति, पमायजोएण साहु सड्डो वा। तस्सम्मत्तं मलिणं, उवएसो तित्थणाहस्स।।३७।। चेइयवंदणभणियं, अह गुरुवंदण समासओ वुच्छं। तिविहा फिदा थोभ, दुबालसावत्तओ णेयं / / 38 // सिरनमणाइसु पढम, खमासमणदुन्नि दाणओ वीयं / वंदणदुगेण तइयं, पडिवत्ती गुणवओ एसा / / 39 / / मूलं विणय धम्मस्स, पढमा सचेसु कारणे हवइ / तह वि ह विसिट्ठकजे, बीया रयणाधिके तइया / / 40 // पञ्चण्हं कायव्वा, पासत्थाणं च नत्थि पंचण्हं। वंदणववहारो वि य, णिज्जरहेऊ जिणो दिसति।। 11 // गुणनिहिगुरू अभावे, ठवणा ठावंति सुद्धअक्खाणं / सम्भावमसम्भावं, दुविहाऽऽवकहा य इत्तरिया / / 42 // रत्ते अक्खे नीला-रहे साणीलकंठणामाणं। बहु सुह विज्जा आउ, वट्टइ ठवणा न संदेहो। 43 / / मोहणयादिसु रत्ता, अद्धरत्ताद्धयीय साठवणा। कुटुं फेडइ अत्थि, दुहनासणीय अइरम्मा / / 44 / / सुक्का य सव्ववाहि, Vलरोगहरा मुणेयव्वा। नीली हलिह तिलया, विसहरणी सुहा सुधयवनी / / 15 // इगदुतियण यावत्ता, गुआइरोगा विसं भयं हंति। चउआवत्ता णिहा, संता वत्ता सुहाणेया॥४६॥ मंतक्खरेण वासो, किच्चा ठवणा य याव कहिया वा। पुव्वुत्तरासु दिसासु, ठाइत्ता उग्गहो जाव॥४७॥ आसायणपरिहारो, विणयविउत्तं सुहेण जोएण। इरियाविहियं पुवं, करेइ संविग्गचित्तेण / / 48|| पडिलेहइ मुहपोत्तिं, वंदण अणुजाणहाइ सध्वं पि। गोसे पचक्खाणं, वंदणचउ थोभसिज्झायं // 4 // सेसे दिवसे विपुणो, वंदित्ता चरिमवंदणा सव्वं / खमावइत्ता जीव-रासिं समभावनासहिओ।। 50 //