________________ रोहिणी 584 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 6 रोहिणी यातेन वसुदेवेन राजसूनुना पाणविकाकारं विभ्रता-"मुग्धमृगनयनयुगले!, शीघ्रमिहागच्छ मैव चिरयस्व / कुलविक्रमगुणशालिनि !, त्वदर्थमहमागतो यदिह॥१॥" इत्यक्षरानुकारिध्वनौ प्रवादिते पणवे समुत्फुल्ललोचना सञ्जातानुरागा सरभसमुपश्रुत्य स्वहस्तेन वसुदेवस्य गले मालामवलम्बितवती / ततस्ते राजान ईशिल्यवितुद्यमानमानसा वसुदेवेन सार्द्ध संग्रामायोपतस्थुः तेन च रणागरसिकेन सर्वान् विनिर्जित्य रोहिणी परिणीता,जातश्च तस्या रामाभिधानोबलदेवः सुनुरिति / प्रश्न०४ आश्र0 द्वार / स्वनामख्यातायां महाविद्यायाम, कल्प०१ अधि०७क्षण। स्था०।आ० चूल आव० स० चित्रकवल्ल्याम, ल० प्र०ा रोहितकपरेस्वनाम-ख्यातायां गणिकायाम, आ० क०५ अ01 आव०। आ० चू०। वासुपूज्यजिनपौत्र्याम्, ती०३४ कल्प। (अस्या वृत्तम् 'चम्पा' शब्दे तृतीयभागे 1068 पृष्ठे गतम्) कुण्डिनपुरे सुभद्रश्रेष्ठिपुत्र्याम्, ध०२०। रोहिणीज्ञातमिदम्इह कुंडिणि त्ति पवरा, नयरी नयरीइराइया अस्थि तत्थ निवो जियसत्तू, जो सत्तू दुजणजणस्स॥१॥ पायं विगहविरत्तो, सक्कह गुणरयण-रोहणसमाणो। सिट्ठी सुभहनामा, मनोरमा भारिया तस्स // 2 // पुत्तीय बालविहवा, नामेणं रोहिणी अहीणगुणा। जिनसमएलद्धट्ठा,गहियट्ठा पुच्छियट्ठाय॥३॥ पूयइ जिणे तिसंझं, अबंझमज्झयणमाइ आयरइ। आवस्सयाइ किच्चं, निचं निचिंतिया कुणइ / / 4 || धम्म संचइ नहु कं, पिवंचए अंचए गुरूण पए। नियनाम व वियारइ, कम्मप्पयडीपमुहगंथे॥५॥ दाणं देइ पहाणं, सुरसरिसलिलुजलंधरइ सीलं। जहसत्ति तवेइ तवं, भावइ सुहभावणा सुमणा // 6 // इय निम्मलगिहिधम्मा, अचलियसम्मा दढं वलियमोहा। अवितहजिणमयपयडण-पंडिया सागमइ दिवसे।। 7 // अह चित्तवित्तिअडवीइ-भुवणअक्कमणअइसयपयंडो। मोहो नाम नरिंदो, पालइ निक्कंटयं रखं / / 8 // कइयावि नियमदोसु-ग्घट्टण पवणं तुरोहिणिं सुणिउं। वरवयणाओ मोहो,विचिंतए धणियमुव्विग्गो / / 6 / / अइ सढ ! हियय ! सदागम-वासियचित्ताइ पिच्छह इमीए। कित्तियमित्तं अम्हा-ण दोसगहणे रसापसरो।। 10 // जह कह वि इमा एमे-व चिट्ठिही कित्तियं धुवं कालं। तामे निस्सत्ताणं, कोवि न पिच्छिहिइ धूलिं पि॥११॥ इय चितंतस्स इम-स्स आगओ रायकेसरी तणओ। पणमंतो वि न नाओ, तो एसो भणइ अइदुहिओ।१२।। इत्तियमित्ता चिंता, किं कज्जइ ताय ! तायपायाणं / जंति जए विन अन्नं, समंच विसमं च पिच्छामि॥१३॥ तो से कहेइ मोहो, जहट्ठियं रोहिणीइ वुत्तंतं। तं सोउ सिरे वजा-हउ व्व जाओ इमो विमणो। 14 / / अह सयलं पि हु सिन्न, सुविसन्नं मुक्ककुसुमतंबोलं। जाय मथक्के थक्कवि-य नट्टगीयाइ-वावारं // 15 // इत्थंतरम्मिसिसुणा, एगेण इत्थियाएँ एक्काए। अट्टहाससई, हसियं सुणियं च मोहेन।।१६।। ततो चिंतइ गुरुम-त्रु, पसर परिमुक्कदीहनीसासो। के मह दुहिए एवं, अइसुहिया नणु पकीलंति / / 17 / / अह कुवियस्साऽऽकूयं, नाऊणं नियवसामिसालस्स। दुट्ठाभिसंधिमंती, गयभंती विन्नवइएवं / / 18 / / देव ! निवजुवइजणवय-भत्तकहाकरणचउमुहाएसा। भुवणजणमोहिणी जो-इणि व्व विग्गह त्ति मह भज्जा / / 16 / / एस सिसू अइइट्ठो, पमायनामा ममेव वरपुत्तो। जं पुण हसिय मयग्गे, तं पुच्छेमो इमे चेव / / 20 // तो हकारिय रन्ना, ते पुट्ठा भो तुमेहि किह हसियं / वज्जरइ तत्थ इत्थी, पुजा सम्म निसामंतु।।२१।। सिसुमित्तसज्जकज्जे, किं ताओ इत्तिअंवहइ चिंतं / इय विम्हयववसाए, मए सपुत्ताइ हसियं तु॥२२॥ जंताप पसाया रोहिणिं इमं धम्मओ खणघेण। पाडेउ महं पिखमा, अहवा केयं वराई मे।। 23 / / जे उवसंता मणना-णिणो य मे सुयजुयाइचरणाओ। भंसियपुव्वा तेसिं, संखं पिन कोऽवि जाणेइ॥२४॥ जे पूण मए चउद्दस, पूव्वधराखडहडाविया धम्मा। अज्ज विधूलि व्य रुलं-ति तायपायाण परओ ते॥२५॥ तंसोउ चिंतइ निवो, धन्नो हं जस्स मज्झ सिन्नम्मि! भुवणजणजणणमंसल, वलाउ अवलाउ वि इमाओ॥ 26 // इय सामत्थियरन्ना, सातणुअंगी तणूरुहसमग्गा। सयहत्थदिन्नवीडा, सहरिसजिंघियसरोदेसा।। 27 // तुह संतु सिवा मग्गा, पिट्ठीइ चिय बलं पि आगमिही। इय लह विसज्जिया रो-हिणीइ पासम्मि सा पत्ता / / 28 // अह तीइ जोइणीए, अहिट्ठियासा सा गया जिणहरेऽवि। अन्नन्नसावियाहिं, समं कुणइ विविहविगहाओ।। 26 // नय पूएइ जिणिंदे, देवे वि वंदए पसन्नमणा। बहुहासबोलबहुला, कुणइ विघायं परेसिं पि॥३०॥ नय कोऽवि किं पिपभणइ, महिड्डिधूय त्ति तो अइपसंगा। सज्झायझाणरहिया, भणिया एगेण सड्डेणं / / 31 / / किं भइणि अइपमत्ता, धम्मट्ठाणे वि कुणसि इय वत्ता। जं भवियाण जिणेहिं, सया निसिद्धाउ विगहाओ // 32 // तथा चोक्तम्सा तन्वी सुभगा मनोहररुचिः कान्तेक्षणा भोगिनी, तस्या हारिनितम्बबिम्बमथवा विप्रेक्षितं सुभुवः। धिक्तामुष्ट्रगतिं मलीमसतर्नु काकस्वरां दुर्भगामित्थं स्त्रीजनवर्णनिन्दनकथा दूरेऽस्तु धर्मार्थिनाम्।। 33 // (अहो-) क्षीरस्यान्नं मधुरमधुगावाज्यखण्डान्वितं चेत्, (रसः) श्रेष्ठदध्नो मुखसुखकरं व्यञ्जनेभ्यः किमन्यत्। अन्नादन्यद्रमयति मनःस्वादु ताम्बूलमेकं, त्याज्या प्राहरशनविषया सर्वदैवेति वार्ता // 34 // रम्यो मालवकः सुधान्यकनकः काश्यास्तु किं वर्ण्यता, दुर्गा गुर्जरभूमिरुद्भटभटा लाटाः किराटोपमाः। कश्मीरे वरमुष्यतां सुखनिधौ स्वर्गोपमाः कुन्तलाः, वा दुर्जनसङ्गवच्छुभधिया देशी कथैवंविधा / / 35 / / राजाऽयं रिपुवारदारणसहः क्षेमङ्करश्चौरहा, युद्धं भीममभूत्तयोः प्रतिकृतं साध्वस्यते नाधुना। दुष्टोऽयं मियतां करोतु सुचिरं राज्यं ममाप्यायुषा, भूयो बन्धनिबन्धनं बुधजनै राज्ञां कथा हीयताम् // 36 // सिंगाररसुत्ति इया, मोहमई हासकेलिसंजणगा। परदोसकहणपवणा, सा विकहा नेव कहियव्वा / / 37 // ता जिणगणहरमुणिमा-इसकहा असिलयाइ छिंदिता।