________________ मुहवण्ण 335- अभिधानराजेन्द्रः - भाग 6 मुहुत्त सरिसधम्मेहिं पसंसति-अम्ह वि तुम्हा वि सव्वे वया, अम्हे वि तुम्हे वि गाहाअहिंसा, अम्ह वितुम्ह वि अदिन्नादाणं वजं, अम्ह वि तुम्ह विअस्थियया, वितियपदमणप्पज्झे, करिज अवि कोविओ व अप्पज्झे / दव्वत्तेण वा जहा तुम्हं नियो, तहा अम्ह वि निचो, जहा अम्ह वि आता जाणंते वावि पुणो,सण्णा सागारमादीसु॥११७।। सुहासुहं कम्मं करेति, तहा तुम्ह वि। अणप्पज्झो करतेति अविकोवितो वा सेहो करेति, दिया गतो वा अदाणे गाहा गिलाणऽट्ठा सण्णासदं करेति, भावसागरियपडिवद्धाए वा वसहीए सद एवं ता सव्वाऽऽदी, भणेज्ज वेतूलिके सिमं बूया। करेति जहा तं सुणेति। अम्ह विण सवभावा, इतरेतरभावतो सव्वे 77 / / जे भिक्खू दंतवीणियं करेइ करंतं वा साइज्जइ // 36 // सत्-शोभनो, वादी-सद्वादी, आत्मास्तित्ववादीत्यर्थः / जे पुण जे भिक्खू उट्ठवीणियं करेइ करतं वा साइजइ / / 40|| वेतुलियातीसुइमं ब्रूताविगयं तुल्लभावे वेतुलिया नास्तित्ववादिन इत्यर्थः, जे भिक्खू णासावीणियं करेइ करतं वा साइजइ // 41 // सव्वभावा इतरतेरभावतो। णत्थि त्ति नित्यत्वं अनित्यत्वे नास्ति, एवं जे भिक्खू कक्खवीणियं करेइ करतं वा साइजइ॥४२॥ आत्मा, अनात्मां कर्तृत्वमकर्तृत्वं, मूर्त्तत्वममूर्तत्वं, सर्वगतत्वमसर्वगत जे भिक्खू हत्थवीणियं करेइ करतं वा साइजइ // 43|| त्वम्, घटत्वं पटत्वं, परमाणुत्वं द्विप्रदेसिकत्वं, कृष्णत्वं नीलत्वं, गोत्वम जे भिक्खू नक्खवीणियं करेइ करतं वा साइजइ // 4 // श्वत्वं च एवमादि। नि०चू०११ उ०। जे मिक्खू पत्तवीणियं करेइ करतं वा साइजइ॥४५॥ मुहवास-पुं०(मुखवास) कर्पूरादिभिर्मुखस्य सौरभ्यापादने, बृ०१ उ०३ जे भिक्खू पुप्फवीणियं करेइ करतं वा साइजइ / / 46|| प्रका "तयाणंतरं च णं मुहवासविहिपरिमाणं करेइ, णण्णत्थ पंच सोगंधिएणं / तंवोलेणं अवसेसं मुहवासविहिं पञ्चक्खामि'' एलालव जे मिक्खू फलवीणियं करेइ करतं वा साइजह // 47|| गकर्पूरकक्कोलजातीफललक्षणैः सुगन्धिभिर्द्रव्यैः अभिसंस्कृतं पञ्चसौग जे भिक्खू वीयवीणियं करेइ करतं वा साइज्जइ॥४८|| न्धिकम्। उपा०१० जे भिक्खू हरियवीणियं करेइ करतं वा साइजइ // 46 // मुहवीणिया-स्त्री०(मुखवीणिका) मुखशब्दकरणे, नि० चूल। जे भिक्खू मुहवीणियं वाएइ वायंतं वा साइज्जइ / / 10 / / जे मिक्खू मुहवीणियं करेइ करतं वा साहज्जइ // 36 // जे भिक्खू दंतवीणियं वाएइ वायंतं वा साइज्जइ / / 51 / / मुहवीणियातिहिं वादित्रशब्दकरणं, वितियसुत्ते मुहवीणियं करेंतो मोहा जे भिक्खू उट्ठवीणियं वाएइ वायंतं वा साइजइ।।५।। दिक्खे सद्दे करेति, अन्नतरग्रहणात् संयोगमवेक्खति, तंपगारमावण्णाणि जे भिक्खू णासावीणियं वाएइ वायंतं वा साइजइ / / 13 / / तहप्पगाराणि ततविततप्रकारमित्यर्थः / जे भिक्खू कक्खवीणियं वाएइ वायंतं वा साइज्जइ॥४॥ गाहा जे भिक्खू हत्थवीणियं वाएइ वायंतं वा साइजइ / / 5 / / मुहगादिवीणिया खलु, जत्तियमेत्ता य आहिया सुत्ते। जे भिक्खू णहवीणियं वाएइ वायंतं वा साइजइ / / 56|| सद्दे अणुदिपणे वा उदीरए तम्मि आणादी॥११४|| जे भिक्खू पत्तवीणियं वाएइ वायंतं वा साइजह // 57 / / अणुदिण्णे जो मोहं जणति उवसंतं वा उदीरति। जे भिक्खू पुप्फवीणियं वाएइ वायंतं वा साइजइ // 58|| गाहा जे मिक्खू फलवीणियं वाएइ वायंतं वा साइज।।५।। सविकारअसामत्थ-मोहस्स उदीरणा य उभयो वि। जे मिक्खू वीयवीणियं वाएइ वायंतं वा साइज्जइ।।५९l पुणरावत्ती दोसा, य वीणिगाओ य सद्देसु॥११५।। जे भिक्खू हरियवीणियं वाएइ वायंतं वा साइज्जइ॥६०॥ सविगारता भवति, लोगो य भणति अहो इमो सविकारो पचतितो, जे भिक्खू एवं अण्णयराणि तहप्पगाराणि वा अणुदिपणेइ मज्झत्थो रागदोसविजुत्तो सो पुण अमज्झत्थो अप्पणो परस्स य सद्दाइं उदीरेइ उदीरंतं वा साइज्जइ॥६१।। नि० चू०५उ०। मोहमुईरति पुणरावत्तीणाम-कोई भुत्तभोगी पवतितो, सो चिंतेति अम्ह मुहा-अव्य०(मुधा) व्यर्थे, "एमेय मुहा मुहिआ" पाइ० ना० 166 गाथा। वि महिलाओ एवं करेति, तस्स पुणरावत्ती भवति, अण्णेसिं वा साहूणं मुहिअ-(देशी) एवमेव करणे,देना०६ वर्ग 134 गाथा। सुणेत्ता पडिगमणादयो दोसा भवंति, वीणियासु वीणियासद्देसु य एते मुहिआ-अव्य०(मुधिका) व्यर्थे, “एमेय मुहा मुहिआ' पाइ० ना० 166 दोसा भवंति। गाथा। गाहा मुहिया-स्त्री०(मुधिका) अवज्ञायाम्, जी०३ प्रति०१ अधि०२ उ०। इत्थि परियारसद्दे, रागे दोसे तहेव कंदप्पे। मुहु-अव्य०(मुहुर) वारंवारमित्यर्थे, प्रति०। अष्ट०। उत्त०। गुरुगा गुरुगा गुरुगा, लहुगा लहुगो कमेण भवे / / 116|| मुहुत्त-पुं०(मुहूर्त) तस्याघृत्तदिौ // 8 / 2 / 30 / / इति इत्थिसद्दे चउगुरु, परियारसद्दे चउगुरु, अन्नतरसदंरागेण करेति चउगुरु, / धू दिपर्युदासात्तस्य टोन। प्रा०। मीयत इति मुहूर्तः। मुहुरिएतेसुतिसुचउगुरुगा, दोसेण करेति चउलहुगा, कंदप्पेण करेतिमासलहुँ। / यतीति वा मुहूर्तः। पृषोदरादित्वादिष्टरूपसिद्धिः। कर्म०५ कर्मo!