________________ महंततर 172 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 6 महग्गह महंततर त्रि० (महत्तर) आयामतो महति, भ०१३ श०३ उ०। महंतमलय पुं० (महामलय) महाँश्चासौ मलयश्च महामलयः / विन्ध्ये, स्था०६ टा०। महंतर न० (महदन्तर) विवरे, "एवं सघामहत्तरं'' महदन्तरं धर्मविशेषकर्मणो वा विवरं ज्ञात्वा, यदि वा-मनुष्यार्यक्षेत्रादिकमवसर सदनुष्ठानस्य ज्ञात्वा। सूत्र०१ श्रु०२ अ०२ उ०। महाविक्कम त्रि० (महाविक्रम) महान् विक्रमो विहारक्रमेण प्रभूतक्षेत्र व्याप्तिरूपो येषां ते तेथा। प्रभूतं क्षेत्रं विहतवत्सु, न०। महंऽधकार पुं० (महान्धकार) तमस्काये, स्था०४ ठा०२ उ० / महात मोरूपत्वात्तस्य / भ०६ श०५ उ०। महक्ख धवग्ग स्त्री० (महास्कन्धवर्गणा) पुदलस्कन्धादिविससा परिणामेन टङ्ककूटपर्वतादिसमाश्रितेषु पुद्गलेषु, पं० सं०५ द्वार। महक्खया स्त्री० (महाख्या) एकत्र पट्टे सप्तसप्ततिप्रतिमाप्रतिष्ठायाम, ध०२ अधि। महगोव पुं० (महागोप) अर्हति, विशे०। अडवीए देसयत्तं, तहेव णिज्जमया समुद्दम्मि। छक्कायरक्खणऽट्ठा, महगोवा तेण वुच्चंति" ||2656 / / विशे०1 (व्याख्यातैषा अरिहंत' शब्दे प्रमिभागे 768 पृष्ठे) महग्गहपुं० (महाग्रह) अङ्गारकादिषुभावकेतुपर्यवसानेषु चन्द्रपरिवारभूतेषु ग्रहषु, स०। एगमेगस्स णं चंदिमसूरियस्स अट्ठासीइ अट्ठासीइ महग्गहा परिवारो पण्णत्ता। एकैकस्यासंख्यातानामपि प्रत्येकमित्यर्थः / चन्द्रमाश्च सूर्यश्च चन्द्रमःसूर्य तस्य, चन्द्रसूर्ययुगलस्य इत्यर्थः / अष्टाशीति महाग्रहाः, एते च यद्यपि चन्द्रसयैव परिवारोऽन्यत्र श्रूयते तथापि सूर्यस्यापीन्द्रत्वादेत एव परिवारतया अवसेया इति। स०५८ सम०। संख्यातोमहाग्रहानाहदो इंगालगा, दो वियालगा, दो लोहितक्खा, दो सणिचरा, दो आहुणिया, दो पाहुणिया, दो कणा, दो कणगा, दो कणकणगा, दो कणगविताणगा, दो कणगसंताणगा, दो सोमा, दो सहिया, दो आसासणा, दो कजोपगा, दो कव्वडगा, दो अयकरगा, दो दुंदुभगा, दो संखा, दो संखवन्ना, दो संखवन्नाभा, दो कंसा, दो कंसावन्ना, दो कंसन्नाभा, दोरुप्पी, दो रुप्पाभासा, दोणीला, दो णीलोभासा, दो भासा, दो भासरासी, दो तिला, दो तिलपुप्फवण्णा, दो दगा, दो दगपंचवन्ना, दो काका, दो कक्कंधा, दो इंदग्गीवा, दो धूमकेऊ, दो हरी, दो पिंगला, दोबुद्धा, दो सुक्का, दो बहस्सती, दो राहू, दो अगत्थी, दो माणवगा, दो कासा, दो फासा, दो धुरा, दो पमुहा, दो-वियडा, दो विसंधी, दो नियल्ला, दो पइल्ला, दो जडियाइलगा, दो अरुणा, दो / अग्गिल्ला, दो काला, दो महाकालगा, दो सोत्थिया, दो सोवत्थिया, दो वद्धमाणगा, दो पूसमाणगा, दो अंकुसा, पलम्बा, दो निचालोगा, दो णिचुजोता, दो सयंपभा, दो ओभासा, दो सेयंकरा, दो खेमंकरा, दो आभंकरा, दो पभंकरा, दो अपराजिता, दो अरया, दो असोगा, दो विगतसोना, दो विमला, दो वितत्ता, दो वितत्था, दो विसाला, दो साला, दो सुव्यता, दो अणियट्टा, दो एगजडी, दो दुजडी, दो करकरिगा, दो रायग्गला, दो पुप्फकेतू, दो भावकेऊ / (सूत्र६०) अङ्गारकादयोऽष्टाशीतिम्रहाः सूत्रसिद्धाः, केवलमस्मदृष्ट पुस्त केषुचिदेव यथोक्तसंख्या संवदतीति सूर्यप्रज्ञप्तयनुसारेणासाविह संवादनीया। तथाहि, तत्सूत्रम्- "तत्थ खलु इमे अट्ठासीई महगह; पन्नत्ता, तं जहा-इंगालए 1 वियालए 2 लोहियक्खे 3 सणि-०रे ! आहुणिए 5 पाहुणिए 6 कणे 7 कणए 8 कणकणए 6 कणवियागए 28. कणसंताणए 11 सोमे 12 सहिए 13 अस्सासणे 15 कोमा 56 कम्बडए 16 अयकरए 17 दुदुभए 18 संखे 16 संखवणे 20 सरनामे 21 कंसे 22 कसवण्णे 23 कंसवन्नाभे 24 णीले 25 णीलाम से 25 रुप्पी 27 रुप्योभासे 28 भासे 26 भासरासी ३०तिले 31 तिलपुकवर 32 दगे 33 दगपंचवण्णे 34 काए 35 काकंधे 36 इंदगी 37 धूमकता 38 हरी 36 पिंगले 40 बुहे 41 सुक्के 42 बहस्सई 43 राहू 44 अगत्थी 45 माणवगे 46 कासे 47 फासे 48 धुरे 46 पमुहे 50 वियडे 51 विसंधी 52 नियल्ले 53 पयले 54 जडियाइल्लए 55 अरुणे 56 अग्गिल्लए 57 काले 58 सोस्थिए 60 सोवस्थिए 61 वद्धमाणगे 62 पलंबे 63 णिचालोए 64 निचुज्जोए 65 सयंपभे 66 ओभास 67 संयंकरे 68 खेमकरे 66 आभकरे 70 पभकरे 71 अपराजिए 72 अ५७३ असोगे 74 वीयसोगे 75 विमले 76 वियत्ते 77 वितत्थे७८ विसाले 76 साले 80 सुव्वए ८१अनियट्टी 82 एगजडी 83 दुजडी 84 करकारए 83 रायग्गले 86 पुप्फकेऊ८७ भावकेऊ८८" स्था०२ ठा०३३०। अङ्गारको विकालकोरलोहिताक्ष:३शनैश्चरः४ आधुनिक प्राधुनिक:६कणः७कणक:८कणकणक:कणवितानकः१० कण सन्तानक: 11 सोम:१२सहितः१३ आश्वासनः 14 काया पग: १५कर्बुरकः१६अयस्कारकः१७दुन्दुभकः१५शङ्ख: 16 शङ्खनाभः 20 शङ्ख वर्णाभः२१कं सः२२कं सनाभः२३कं सवभिः२४ नीलः२५ नीलावभासः 26 रूपी 27 रूपावभासः२८भस्मः२६ भस्मराशिः 30 तिलः३१ तिलपुप्पवर्णः 32 दकः 33 दकवर्णः 34 कायः 35 काकन्ध्यः 36 इन्द्राग्निः 37 धूमकेतुः 38 हरिः 36 पिङ्गलः 40 बुधः 41 शुक्र: 42 बृहस्पतिः 43 राहुः 44 अगस्तिः४५ माणवकः 46 कामस्पर्शः 47 धुरः 45 प्रमुखः 46 विकटः 50 विसन्धिकल्पः 51 प्रकल्पः 52 जटालः 53 अरुणाः 54 अग्निः 55 कालः 56 महाकालः 57 स्वस्तिकः 58 सौवस्तिकः 56 वर्धमानः 60 प्रलम्बः६१ नित्यालोकः 62 नित्योद्योतः 63 स्वयम्प्रभः 64 अवभासः 65 श्रेयस्करः 66 क्षेमङ्करः 67 आभङ्करः 68 प्रभङ्ककरः 66