________________ मरण 146 - अभिधानराजेन्द्रः .. भाग, - पाविहिइ पुणो दुक्खं, न करेहिइ जो जणो धम्मं // 600 / / धम्मेण विणा जिणदे-सिएण नन्नत्थ अस्थि किंचि सुह। ठाणं वा कजं वा, सदेवमणुयाऽसुरे लोए / / 601 / / धम्म अत्थं कामं, जाणिय कज्जाणि तिन्नि मिच्छति / जं तत्थ धम्मकजं, तं सुभमियराणि असुभाणि // 602 / / आयासकिलेसाणं, वेराणं आगरो भयकरो य। बहुदुक्खदुग्गइकरो, अत्थो मूलं अणत्थाण // 603|| किच्छाहिँ पाविउं जे, पत्ता बहुभयकिलेसदोसकरा। तक्खणसुहा बहुदुहा, संसारविवड्डणा कणा // 604 / / नऽस्थि य इह संसारे, ठाणं किं चिऽवि निरुवद्दयं नाम / ससुराऽसुरेसु मणुए, नरएसु तिरिक्खजोणीसुं // 605 / / बहुदुक्खपीलियाणं, मइमूढाणं अणप्पवसगाणं / तिरियाणं नऽत्थि सुह, नेरइयाणं कओ? चेव // 606 / / हयगब्भवासजम्मण-वाहिजरामरणरोगसोगेहिं / अभिभूए माणुस्से, बहुदोसेहिं न सुहमत्थि / / 307 / / मंसऽट्टियसंघाए, मुत्तपुरिसभरिये नवच्छिद्दे। असुई परिस्सवंते, सुहं सरीरम्मि किं ? अत्थि // 605|| इट्ठजणविप्पओगो, चवणभयं चेव देवलोगाओ। एयारिसाणि सग्गे, देवाऽवि दुहाणि पाविति // 606 / / ईसाविसायमको-हलोहदोसहिँ एवमाईहिं। देवाऽवि समामिभूया, तेसु वि य कहं? सुहं अस्थि // 650|| एरिसयदोसपुण्णे, खुत्तो संसारसायरे जीवो। जं अइचिरं किलिस्सइ, तं आसवहेउअंसव्वं / / 651 / / रागद्दोसपमत्तो, इंदियवसओ करेइ कम्माई। आसवदारेहिँ अवि-गुहेहिँ तिविहेण करणेणं // 612 // धिद्धी मोहो जेणिह, हियकामो खलु सपावमायरइ / नहु पावं हवइ हियं, विसं जहा जीवियऽत्थिस्स // 613 / / रागस्स य दोसस्स य, घिरत्थु जं नाम सद्दहंतो वि। पावेसु कुणइ भावं, आउरविज्ज व्व अहिएसुं // 614|| लोभेण अहव घत्थो, कजं न गणइ आयअहियं पि / अइलोहेण विणस्सइ, मच्छु व्व जहा गलंगिलिओ // 615 / / धम्मं अत्थं कामं, तिपिणऽवि वुद्धो जणो परिचयइ। ताई करेइ जेहि उ, किलस्सई इह परभवे य / / 616 / / हुति अजुत्तस्स विणा-सगाणि पंचिंदियाणि पुरिसस्स। उरगा इव उग्गविसा, रहिया मंतोसहिं विणा / / 617 / / आसवदारेहिँ सया, हिंसाईएहिं कम्ममासवइ / जह नावाइविणासे, छिद्देहिं जलं उयहिमज्झे / / 618 // कम्माऽऽसवदाराई, निरुभियव्वाइँ इंदियाइं च / हंतव्वा य कसाया, तिविहं तिविहेण मुक्खत्थं / / 616 / / निग्गहियकसाएहिं, आसवा मूलओ हया हुंति। अहियाऽऽहारे मुके, रोगा इव आउरजस्स !!6 ! नाणेण य झाण य, तवोबलेण य बलानिमंति इंदियविसयकसाया, धरिया तुरगाव रहिं / / 621 // हुति गुणकारगाई, सुयरतहिं धणियं नियमियाई / निथगाणि इंदियाई, जइणो तुरगा इव सुदंता // 62 / / भणवयणकायजोगा,जे मणिया करणसण्णिया तिण्णि। ते जुत्तस्स गुणकरा. हुंति अजुत्तस्स दोसकरा // 6231 जो सम्म भूयाई, पास भूए य अध्यभूए य। कम्ममलेण न लिप्पड़, सो संवरियासवदुवारी / / 624. धण्णा सत्तहियाई, सुणति धण्णा करंति सुणियाई। धण्णा सुग्गइमग्गं, मरंति घण्णा गया सिद्धि / / 625 / / धण्णा कलत्तनियले-हिँ विप्पमुक्का सुसत्तसंजुत्ता। वारीओव गयवरा, घरवारीओऽवि निम्फिडिया।।६२६।। धण्णा उ करेंति तवं, संजमजेगेहि कम्ममढविहं। तवसलिलेणं मुणिणो, धुणंति पोराणयं कम्मं // 627 / / नाणमयवायसहिओ, सीलुञ्जलिओ तवोमओ अग्गी। संसारकरणबीयं, दहइ दवग्गी व तणरासिं॥६२८।। इणमो सुगइगइपहो, सुदेसिउं उक्खओ जिणवरेहि। ते धन्ना जे एयं पह भगवखं पवजंति ||629 / / जाहे य पावियव्वं, इह परलोए य होइ कल्ला ता एवं जिणकहियं, पडिवाइ भावओ धम्म // 13 // जह जह दोसोवरओ, जह जह विसएसु होइ वेरमा / तह तह वियाणयाहि, आसन्नं से पयं परमं / 631 // दुग्गो भवकतारे, भममाणेहिं सुचिरं पण?हिं / दिट्ठो जिणोवइट्ठो, सुगइमग्गो कह वि लद्धो // 6321 माणुस्सदेसकुलका-लजाइइंदियबलोवयाणं च / विन्नाणं सद्धादसणं च दुलहं सुसाहूण // 633 / / पत्तेसु वि एएसुं, मोहस्सुदरण दुल्लहों सुपहो। कुपहबहुयत्तेण य, विसयसुहेणं च लोभेणं / / 634 / / सो य पहो उवलद्धो, जस्स जए बाहिरे जणो बहुओ। संपत्तिचिय न चिरं, तम्हा न खमी पभाओ भे६३ जह जह दढप्पइण्णो, समणो वेरगभावणं कुण। तह तह असुभं आयव-हयं व सीय ख्यमुवेइ 1636 एगअहोरत्तेणऽविदढपरिणामा अणुत्तरं जति। कंडरिओ पुंडरिओ, अहगईउड्डगभणेसुं॥६३७।। बारसऽविभावणाओ, एवं संखेवओ सभत्ताओ। भावेमाणो जीवो, जाओ सभुवेइ वे रग्गं / 638|| भाविज भावणाओ, पालिज्ज वयाई रयणसरिसाई। पडिपुण्णपावखमणे, अइरा सिद्धिं पि पावहिसि / / 636 / / कत्थइ सुहं सुरसम, कत्थई निरओवमं हवइ दुक्खं /