________________ मरण 147 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 5 भरण -- रागद्दोसनियत्तो, छट्टक्खमणस्स पारणे ताहे। आससिऊणं पंड, आयवतत्तं जलं पासी॥५१४॥ खमगत्तण निम्मंसो, धवणिसिरो जालसंतयसरीरो। विहरिय अप्पप्पाणो, मुणिउवएसं विचिंतंतो।।५१५|| सो अन्नयाणिदाहे, पंकोसन्नो वणं निरुत्थारो। चिरवेरिएण दिट्ठो, कुक्कुडसप्पेण घोरेणं / / 516 / / जिणवयणमणुगुणितो, ताहे सव्वं चउविहाऽऽहारं। वोसिरिऊण गइंदो, भावेण जिणे नमसीय / / 517 / / तत्थ य वणयरसुरवर, विम्हियकीरंतपूयसक्कारो। मज्झत्थो आसी किर, कलहेसु य जजरिजंतो / / 518|| सम्मं सहिऊण तओ, कालगओ सत्तमंभि कप्पंभि। सिरितिलयंमि विमाणे, उक्कोसठिई सुरो जाओ / / 516 / / सुयदिट्ठिवायकहियं, एवं अक्खाणयं निसामित्ता। पंडियभरणंमि मई, ददं निवेसिञ्जभावेणं / / 520 / / जिणवयणमणुस्सट्ठा, दोऽवि भुयंगा महाविसा पोरा। कासीय कोसियासय, तणूसु भत्तं मुइंगाणं / / 521 / / एगो विमाणवासी, जाओवरविजपंजरसरीरो। वीओ उनंदणकुले, बलु त्ति जक्खो महिड्डीओ / / 522 / 1 / हिमचूलसुरुप्पती, भद्दगमहिसी य थूलभद्दोय। वेरोसवसमे कहणा, सुरभाये दंसणे खमगो।।५२३॥ बावीसमाणुपुट्विं, तिरिक्खमणुयावि भेसणवाए। विसयाऽणुकंपरक्खण, करेज देवा उ उवसग्गं // 524 / / संघयणधिईजुत्तो, नव दस पुयी सुएण अंगावा। इंगिणि पाओवगम, पडिवजइ एरिसो साहू / / 525 / / निचल निप्पडिकम्मो, निक्खिवए जु जहिं जहा अंगं / एयं पाओवगर्म, सनिहारिं वा अनीहारिं / / 526 / / (अत्रत्याः पादोपगमनविषयिका अष्ट गाथाः 'पाओवगमण' शब्दे बृहत्कल्पोक्ताः सव्याख्या गतास्तत एवावगन्तव्याः) देवोनेहेण णए, देवागमणं च इंदगमणं वा। जहियं इब्जी कंता, सव्वसुहा हंति सुहभावा / / 535 / / उवसग्गे तिविहेऽवि य , अणुकूले चेव तह य पडिकूले। सम्म अहियासंतो, कम्मक्खयकारओ होइ।।५३६।। एयं पाओवगर्म, इंगिणि पडिकम्मवण्णियं सुत्ते। तित्थयरगणहरेहि य, साहूहि य सेवियमुयारं / / 537 / / सवे सव्वऽद्धाए, सव्वन्नू सव्वकम्मभूमीसु / सव्वगुरू सव्वहिया, सव्वे मेरूसु अहिसित्ता / / 538|| सव्वाहिऽवि लद्धीहिं, सव्वेऽवि परीसहे पराइत्ता। सव्वेऽविय तित्थयरा, पाओवगया उ सिद्धिगया // 539 / / अवसेसा अणगारा, तीयपड़प्पन्नणागया सव्वे। केई पाओवगया, पचक्खणिंगिणिं केई ||540 / / सव्वाऽवि अ अजाआ, सव्वेऽविय पढभसंधया / सव्ये य देसविरया, पञ्चक्खाणेण य मरंति / / 541 / / सव्वसुहप्पमवाओं, जीवियसाराओ सव्वजणिगाओ। आहाराओ रयणं, न विजए उत्तमं लोए।।५४२।। विग्गहगए य सिद्धे, मुत्तुं लोगंभि जम्मिया जीवा। सव्वे सव्वाऽवत्थं, आहारे हंति आउत्ता॥५४३।। तं तारिसगं यरणं, सारंजं सवलोयरयणाणं / सव्वं परिचइत्ता, पाओवगया पविहरंति // 554|| एयं पाओवगम, निप्पडिकम्मं जिणेहिं पन्नत्तं ! तं सोऊणं खमओ, ववसायपरक्कम कुणई 15451 धीरपुरिसपन्नत्ते, सप्पुरिसनिसेविए परमरम्मे। धण्णा सिलायलगया, निरावयक्खा णिवजंति / 546. सुव्वंति य अणगारा, घोरासु भयाणियासु सड़वीर गिरिकुहरकंदरासु य, विजणेसु य सम्खडेटेस: 5..' धीधणियबद्धकच्छा, भीया जरमरणजम्माणसया: सेलसिलासयणत्था, साहति उ उत्पहाइ / / 548|| दीवोदहिऽरण्णेसु य, खयरा वहियानुगुणारतिय तासु . कमलसिरीमहिलादिसु, भत्तपरिक्षा कयाधीसु॥५४६।। जइ ताव सावयाकुल-गिरिकंदरविसमकडगदुग्गासुं। साहिति उत्तमटुं, धिइधणियसहायगा धीरा // 550|| किं पुण अणगारसहा-यगेण अण्णुनसंगहबलेणं / परलोए य न सका, साहेउं अप्पणो अटुं ? ||551 / / समुइन्नेसु अ सुविहिय ! उवसग्गमहब्भयेसु विविहेसुं। हियएण चिंतणिजं, रयणनिही एस उवसग्गो / 1552 / / किं जाय जइ मरणं, अहं च एमागिओ इहं पाणी। वसिओ हं तिरियत्ते, बहुसो एगागिओऽरणे // 553 / / वसिऊण विजणमज्झे, वचइ एगागिओ हमो जीवो। मुत्तूण सरीरधरं, मच्चुमुहाऽऽकड्डिओ संतो।।५५५.! जह वीहंति अजीवा, विविहाण विहासियाण एगागी। तह संसारगएहिं, जीवेहिं विहेसिया अन्ने / / 555 / / सावयभयाऽभिभूओ, बहुसु अडवीसु निरमिरामासु / सुरहिहरिणमहिससूयर-करवोडियरुक्खछायासु // 556 / / गयगवयखग्गगंडय-वग्घतरच्छच्छभल्लचरियासु। भल्लुंकिकंकदीविय, संचरसब्भावकिण्णासुं।॥५५७।। मत्तगइदनिवाडिय-भिल्लपुलिंदावकुंडियवणासुं। वसिओऽहं तिरियत्ते, र्भीसणसंसारचारम्मि।।५५८।। कत्थ य मुद्धमिगत्ते, बहुसो अडवीसु पथइविसमासु। वग्धमुहावडिएणं,रसियं अइभीयहिथएणं ||556 / / कत्थइ अइदुप्पिक्खो, भीसणविगरालधोरवयगोऽहं / आसिमहं वि य विग्यो, रुरुमहिसवराहविद्दवओ // 560 / /