________________ मरण 145 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 6 मरण तं अणगारगुणागर ! तुम पि हियएण चिंतेहि / / 434|| सोऊण निसासमए, नलिणिविमाणस्स वण्णणं धीरो। संभरियदेवलोओ, उज्जेणि अवंतिसुकुमालो॥४३५।। धित्तूण समणदिक्खं, नियमुज्झिय सव्वदिव्वआहारो। बाहिं वंसकुडंगे, पायवगमणं निवन्नो उ॥४३६।। वोसट्ठनिसटुंगो, तहिं सो भुल्लुं कियाइखइओ उ / मंदरगिरिनिक्कंपं, तं दुक्ककारयं वंदे // 437 / / मरणंमि जस्स मुक्क, सुकुसुमगंधोदयं च देवेहिं / अज्ज वि गंधवई सा, तं च कुडंगी सरहाणं / / 438|| जह तेण तत्थ मुणिणा, सम्म समणेण इंगिणी तिहा। तह तूरह उत्तमऽटुं, तं च मणे संनिवेसेह॥४३६।। जो निच्छएण गिण्हइ, देहयाएविन अट्ठियं कुणई। सो साहेइ सकजं, जह चंदवडिंसओ राया / / 440 / / दीवाभिग्गहधारी, दूसह घणविणयनिचलनगिंदो। जह सो तिन्नपइण्णो, तह तूरह पइन्नम्मि // 441 / / जह दमदंतमहेसी, पंडयकोरवमुणी थुयगरहिओ। आसि समो दुण्हं पि हु, एव समा होह सव्वत्थ / / 442 / / जह खंदगसीसेहिं, सुक्कमहाझाणसंसियमणेहिं। न कओ मणप्पओसो, पीलिज्जतेसु जंतम्मि।।४४३।। तह घवसालिभद्दा, अणगारा दो वि तवमहिड्डीया। वेभारगिरिसमीचे, नालंदाए समीवंमि॥४४४|| जुअलसिलासंथारे, पायवगमणं उवगया जुगवं / मासं अणूणगं ते, वोसट्टनिसट्ठसव्वंऽगा // 445 / / सीयायवऽऽझडियंऽगा, लग्गुद्धियमंसण्हारूणि विणट्ठा। दीऽवि अणुत्तरवासी, महेसिणो रिद्धिसंपण्णा।।४४६|| अच्छेरयं-च लोए, ताण तहिं देवयाऽणुभावेणं / अञ्जऽवि अट्ठिनिवेसं, पंकिव्व सनामगा हत्थी॥४४७|| जह ते समं सचम्भे, दुबलविलग्गेऽवि णो सयं चलिया। तह अहियासेयव्वं, गमणे थेवंपिमं दुक्खं // 448|| अयलग्गाम कुटुंबिय, सुरइयसयदेवसमणयसुभद्दा। सव्वे उ गया खमगं, गिरिगुहनिलयनियच्छीय ||446|| ते तं तवोकिलंतं, वीसामेऊण विणयपुव्वागं / उवलद्धपुण्णपावा, फासुयसुमहं करेसीह / / 450 / / सुगहियसावयधम्मा, जिणमहिमाणेसु जणियसोहग्गा। जसहरमुणिणो पासे, निक्खंता तिव्वसंवेगा।।४५१।। सुगिहियजिणवयणाऽमय-परिपुट्ठा सीलसुरहिगंधऽड्डा / विहरिय गुरुस्सगासे, जिणवरवसुपुञ्जतित्थम्मि।।४५२|| कणगाऽवलिमुत्तवलि-रयणावलिसहिकीलियकलंता। काहीय ससंवेगा,आयंबिल वड्डमाणं च / / 453|| आसारया य मनोहर-सिहरंतरसंचरंतपुक्खस्य। आइकरचलणपकंय-सिरसेवियमालहिमवंतं // 454|| रमणिजहरयतरुवर-परहुअसिहिभमर महुयरिविलोले। अमरांगेरिविसयभणहर, जिणवयणसुकाणणुद्देसे / / 455 / / तम्मि सिलायलपुहवी, पंच वि देहट्ठिईसु मुणियत्था। कालगया उववण्णा, पंच वि अपराजियविमाणे / / 456 / / ताओ चइऊण इहं, मारहवासे असेसरिउदमणा। पंडुनराहिवतणया, जाया जयलच्छिभत्तारा // 457|| ते कण्हमरणदूसह-दुक्खसमुप्पन्नतिव्वसंवेगा। सुट्ठियथेरसगासे, निक्खंताखायकित्तीया।।४५८|| जिट्ठो चउदसपुव्वी, चउरो इक्कारसंगवी आसी। विहरिय गुरुस्सगासे, जसपडहभरंतजियलोया // 456 / / ते विहरिऊण विहिणा, नवरि सुरटुं कमेण संपत्ता। सोउं जिणनिव्वाणं भत्तपरिन्नं करेसी य / / 460|| घोराऽभिग्गहधारी, भीमो कुतऽग्गगहियमिक्खाओ। सत्तुंजयसेलसिहरे, पाओवगओ गयभयोघो / / 461 / / पुव्वविरनाहियवंतर-उवसग्गसहस्समारुयनगिंदो। अविकंपो आसि मुणी, भाईणं इकपासम्मि॥४६२२॥ दो मासे संपुण्णे, सम्म धिइधणियवद्धकच्छाओ। आव उवसग्गिओ सो, जाव उपरिनिवुओ भगवं / / 463 / / सेसा वि पंडुपुत्ता, पाओवगया उ निव्वुया सव्वे। एवं धिइसंपण्णा, अण्णे वि दुहाओं मुचंति / / 464|| दंडो विय अणगारो, आयावणभूमिसंठिओ वीरो। सहिऊण बाणघायं, सम्मं परिनिव्वुओ भगवं / / 465 / / सेलम्मि चित्तकूडे, सुकोसलो सुट्ठिओ उपडिमाए। नियजणणीएखइओ, वग्धीभावं उवगयाए।।४६६।। पडिमायगओ अ मुणी, लंबेसु ठिओ बहुसु ठाणेसुं। तह विय अकलुसभावो, साहु खमा सव्वसाहूणं / / 467! पंच सया परिवुडया, वइररिसी पय्वए रहावत्ते। मुत्तूण खुड्डगं किर, अन्नं गिरिमस्सिओ सुजसो // 468 / / तत्थ य सो उवलतले, एगागी धीरनिच्छयमईओ। वोसिरिऊण सरीरं, उण्हम्मि ठिओ वियप्पाणो॥४६६।। ता सो अइसुकुमालो, दिणयरकिरणऽग्गितावियसरीरो। हविपिंडु व्व विलीणो, उववण्णो देवलोयम्मि / / 470 / / तस्स य सरीरपूयं, कासीय रहेहि लोगपालाओ। तेण रहावत्तगिरी, अज वि सो विस्सुओ लोए॥४७१।। भगवं पि वइरसामी, विइयगिरिदेवयाइकयपूओ। संपूइओत्थ मरणे, कुंजरभरिएण सक्केणं // 472 // पूइयसुविहियदेहो, पयाहिणं कुंजरेण तं सेलं। कासीय सुरवरिंदो, तम्हा सो कुंजरावत्तो // 473 / /