________________ मरण 144 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 6 मरण बेयरणिखारकलिमल-वेसल्लंकुसलकरकयकुलेसुं। वसिओ नरएसु जीओं, हण हण घणघोरसद्देसुं॥३६५।। तिरिएसु व भेरवसह-पक्खणपरवक्खणच्छणसएसु। वसिओ उब्वियमाणो, जीवो कुडिलम्मि संसारे॥३६६|| मणुयत्तणेऽवि बहुविह-विणिवायसहस्सभेसणघणंमि। भोगपिवासाणुगओ, वसिओ भयपंजरे जीवो।।३६७।। वसियं दरीसु वसियं, गिरीसु वसियं समुद्दमज्झेसु / रुक्खऽग्गेसु य वसियं, संसारे संसरंतेण।।३६८।। पीयं थणअच्छीरं, सागरसलिलाओं बहुयर हुन्जा। संसारंमि अणंते, माईणं अण्णमण्णाणं ||366 नयणोदगं पितासिं, सागरसलिलाओं बहुयरं हुञ्जा। गलियं रुयमाणीणं, माईणं अण्णमण्णाणं / / 400 / / नऽत्थि भयं मरणसम,जम्मणसरिसं न विजए दुक्खं / तम्हा जरमरणकरं, छिंद ममत्तं सरीराओ॥४०१।। अन्नं इमं सरीरं, अण्णो जीवु त्ति निच्छियमईओ! दुक्खपरिकिलेसकर, छिंद ममत्तं सरीराओ॥४०२१॥ जावइयं किंचि दुहं, सारीरं माणसं व संसारे। पत्तो अणंतखुत्तो, कायस्स ममत्तदोसेणं / / 403 / / तम्हा सरीरमाई, अभितर बाहिरं निरवसेसं / छिंद ममत्तं सुविहिय ! जइ इच्छसि मुचिउ दुहाणं / / 404 / / सव्वे उवसग्गपरी-सहे य तिविहेण निजिणाहि लहु। एएसु निजिएसुं, होहिसि आराहओ मरणे / / 405 / / मा हुय सरीरसंता -विओ अतं झाहि अट्टरुद्दाइं। सुटुऽवि रूवियलिंगे, वियट्टरुद्दाणि रूवंति।।४०६।। मित्तसुयबंधवाइसु, इट्ठाणिढेसु इंदियऽत्थेसुं। रागो वा दोसो या, ईसि मणेणं न कायव्यो // 407|| रोगाऽऽयंकेसु पुणो, विउलासु य वेयणासूइन्नासु / सम्म अहियासंतो, इणमो हियएण चिंतिजा // 408 / / बहु पलियसागराइं, सड्ढाणि मे नरयतिरियजाईसुं / किं ? पुण सुहावसाणं, इणमो सारं नरदुहंति / / 406 / / सोलस रोगाऽऽयंका, सहिया जह चक्किणा चउत्थेणं। वाससहस्सा सत्त उ, सामण्णधरं उवगएणं / / 410 / / तह उत्तमऽट्ठकाले, देहे, निरवक्खयं उवगएणं / तिलछितलावगा इव, आयंका विसहियवाओ॥४११।। पारियवायगभत्तो, राया पट्ठीइ सेट्ठिणो मूढो। अचुएहं परमन्नं, दासीय सुकोवियमणूसा / / 412|| सा य सलिलुल्ललोहिय -- मंसवसांपेसिथिग्गलं चित्तुं / उप्पइया पट्ठीओ, पाई जह रक्खसवहु व्व / / 413 // तेण य निव्वेएणं, निग्गंतूणं तु सुविहियसगासे। आरुहियचरित्तभरो, सीहो रसियं समारूढो // 414|| तंमि य महिहरसिहरे, सिलायले णिम्मले महाभागो। वोसिरह थिरपइन्नो, सव्वाहारं महतणू य / / 415 // तिविहोवसग्गसहिउं, पडिमं सो अद्धमासियं धीरो। ठाइय पुव्वाऽभिमुहो, उत्तमधिइसत्तसंजुत्तो॥४१६|| साय पगतंतलोहिथ-मेयवसामंसल परीपट्ठी। खज्जइ खगेहिँ दूसह, निसट्ठचंचुप्पहारेहिं / / 417 / / मसएहिं मच्छियाहि य, कीडीहि वि मंससंपलग्गाहिं। खजंतो वि न कंपइ, कम्मविवागं गणेमाणो // 418|| रत्तिं च पयइ विहसिय, सियालियाहिं गिरणुकंपाहिं। उवसम्गिज्जइ धीरो, नाणाविहरूवधाराहिं।।४१६|| चिंतेइ य खरकरवय-असिपंजरखग्गमुग्गरपहाओ। इणमो न हु कट्ठथरं, दुक्खं निरयऽग्गिदुक्खाओ / / 420|| एवं च गओ पक्खो, वीओ पक्खो य दाहिणदिसाए। अवरेणऽवि पक्खो वि य समइक्कंतो महेसिस्स / / 421 / / तह उत्तरेण पक्खं, भगवं अविकंपमाणसो सहइ / पडिओ य दुमासंते, नमो त्ति वुत्तुं जिणिंदाणं // 422 // कंचणपुरंभि सिट्ठी, जिणधम्मो नाम सावधो आसी। तस्स इमं चरियपयं, तउ एयं कित्तिममुणिस्स // 423 / / जह तेण वितथ मुणिणा, उवसग्गा परमदूसहा सहिथा। तह उपसग्गा सुविहिय ! सहियव्वा उत्तमटुंमि / / 424 / / निप्फेडियाणि दुण्णि वि, सीसाऽऽवेढेण जस्स अच्छीणि। न य संजमाउ चलिओ, मेअञ्जो मंदरगिरि व्व।।४२५।। जो कुंचगाऽवराहे, पाणिदया कुंचगं पि नाऽऽइक्खे। जीवियमणुपेहंतं, मेयझरिसिं नमंसिामि / / 426 / / जो तिहिं पएहिं धम्म,समइगओ संजमं समारूढो। उवसमविवेगसंवर, चिलाइपुत्तं नमसामि।।४२७।। सोएहि अइगयाओ, लोहियगंधेण जस्स कीडीओ। खायंति उत्तमंगं, तं दुक्करकारयं वंदे / / 428|| देहो पिपीलियाई, चिंलाइपुत्तस्स चालणि व्व कओ। तणुओऽवि मणपओसो, न य जाओ तस्स ताणुवरि / / 426 / / धीरो चिलाइपुत्तो, मूइंगलियाहि चालणि व्व कओ। न य धम्माओ चलिओ, ते दुक्करकारयं वंदे / / 430 / / गयसुकुमा लमहेसी, जह दड्डो पिइवणंसि ससुरेणं / न य धम्माओ चलिओ, तं दुक्करकारयं वंदे / / 431 // जह तेण सो हुयाऽसो, सम्म अइरेगदूसओ सहिओ। तह सहियव्दो सुविहिय ! उवसग्गो देहदुक्खं च / / 432 / / कमलामेलाऽहरणे, सागरचंदोसूईहिँ, नभसेणं / आगंतूण सुरत्ता, संपइ संपाइणो वारे // 433 / / जायस्स खमा तइया, जो भावो जा य दुक्करा पडिमा।