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________________ मरण 143 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 6 मरण आह महुरं फुडवियर्ड, तहप्प्सायकरणिज्जविसयकयं / इज्ज कहं निजवओ, सुईसमन्नहरणहेउं / / 355 / / इहलोए परलोए, नाणचरणदसणम्मि य अवायं / दंसेइ नियाणंमि य, मायामिच्छत्तसल्लेणं // 356 / / बालमरणे अवाय, तह य उवायं अबालमरणम्मि। उस्सासरज्जुवेहा-णसे य तह गिद्धपढे य / / 357 / / जह य अणुद्धियसल्लो, ससल्लमरणेण केइ मरिऊण / दसणनाणविहूणो, मरंति असमाहिमरणेणं // 358|| जह सायरसे गिद्धा, इत्थि अहंकारपावसुयमत्ता। ओसन्नबालमरणा, भमंति ससारकंतारं / / 356 / / अह मिच्छत्तससल्ला, मायासल्लेण जह ससल्ला य / जह य नियाणसलल्ला, मरंति असमाहिमरणेणं // 360|| जह वेयणावसट्टा, मरंति जह केइ इंदियवसट्टा। जह य कसायवसट्टा, मरंति असमाहिमरणेणं / / 361 / / जह सिद्धिमग्ग दुग्गइ-सग्गग्गलमोडणाणि मरणाणि। मरिऊण केइ सिद्धिं, उविंति सुसमाहिमरणेणं / / 362 / / एवं बहुप्पयारं, तु अवार्य उत्तमऽढकालम्मि। दंसंति आवयण्णू, सल्लुद्धरणे सुविहियाणं / / 363 / / दिति य सिं उवएस, गुरुणो नाणाविहे हिं हेऊहिं। जेण सुगई भयंतो, संसारभयद्दओ होइ॥३६४।। न हु तेसु वेयणं खलु, अहो चिरम्मित्ति दारुणं दुक्खं / सहणिज्जं देहेणं, मणसा एवं विचिंतिजा / / 365 / / सागरतरणत्थ मई, इयस्स पोयस्स जए धूवे। जो रञ्जमुकखकालो, न सो विलंब त्ति कायव्वो // 366 / / तिल्लविहूणो दीवो, न चिरं दिप्पइ जगंमि पच्चक्खं / न य जलरहिओ मच्छो, जिअए चिरं नेव पउमाई // 367 / / अन्नं इमं सरीरं, अन्नोऽहं इय मणमि ठाविञ्जा। जं सुचिरेणऽवि मोचं, देहे को ? तत्थ पडिबंधो / / 368 / / दूरत्थं पि विणासं, अवस्सभावं उवट्ठियं जाण। जो अह वट्टइ कालो, अणागओ इत्थ आसिण्हा // 366 / / जं सुचिरेण वि होहिइ, अणावसंतम्भि को ? ममीकारो। देहे निस्संदेहे, पिएऽवि सुयणत्तणं नऽत्थि॥३७०।। उवलद्धो सिद्धिपहो, न य अणुचिण्णो पमायदोसेणं / हा जीव ! अप्पवेरिय ! न हु ते एयं न तिप्पिहिइ॥३४१।। नऽत्थिय ते संघयणं, घोरा य परीसहा अहे निरया। संसारो य असारो, अइप्पमाओ अतं जीव!॥३७२।। कोहाऽऽइकसाया खलु, बीयं संसारभेरवदुहाणं / तेसु पमत्तेसु सया, कत्तो सुक्खो य मुक्खो वा ? // 373 / / जाओ परसेणं, संसारे वेयणाओं घोराओ। पत्ताओ नारगत्ते, अहुणा ताओ विचिंतिजा // 374 / / इम्हि सयं वसिस्स उ, निरुवमसुक्खावसणमुहकडुयं / कल्लाणमोसह पिव, परिणामसुहं न तं दुक्खं / / 375 / / संबंधिबंधवेसु अ, न य अणुराओ खणं पि कायव्यो। ते चिय हुति अमित्ता, जह जणणी बंभदत्तस्स // 376|| वसिऊण व सुहिमज्झे, वचइ एगाणिओ इमो जीवो। मुत्तूण सरीरघरं, जह कण्हो मरणकालम्मि // 377 / / इम्हि व मुहुत्तेणं, गोसे व सुए व अद्धरत्ते वा। जस्स न णज्जइ वेला, कदिवसं? गच्छई जीवो // 378 / / एवमणुचिंतयंतो, भावणुभावाणुरत्तसियलेसो। तदिवसमरिउकामो, व होइ झाणम्मि उज्जुत्तो // 376 / / नरग-तिरिक्खगईसु य, माणुसदेवत्तणे वसंतेणं / जं सुहदुक्खं पत्तं,तं अणुचिंतिज संथारे // 380 / / नरएसु वेयणाओ, अणोवमा सीयउण्हवेराओ। कायनिमित्तं पत्ता, अणंतखुत्तो बहुविहाओ।।३८१।। देवत्ते माणुस्से, पराहिओगत्तणं उवगएणं / दुकखपरिकिलेसविही, अणंतखुत्तो समणुभूया // 382 / / भिन्निंदिय पंचिदिय-तिरिक्खकायंमिऽणेगसंठाणे। जम्मणमरणरहढे, अणंतखुत्तो गओ जीवो॥३८३।। सुविहिय ! अईयकाले, अणंतकाएसु तेण जीवेणं / जम्मणमरणमणंतं, बहुभवगहणं समणुभूयं // 384 // घोरम्मि गब्मवासे, कलमलजंबालअसुइवीभच्छे / वओि अणंतखुत्तो, जीवो कम्माणुभावेणं // 385 / / जोणीमुहनिग्गच्छं-तेण संसारे इमेण जीवेणं / रसियं अइवीभच्छं, कडीकडाहंऽतरगएणं // 386 / / जं असियं वीभच्छं, असुई घोरम्मि गब्भवासम्मि। तं चिंतिऊण य सयं, मुक्खंमि मई निवेसिज्जा / / 387 / / वसिऊण विमाणेसु य, जीवो पसरतमणिमऊहेसु। वसिओ पुणो वि सुचिय, जोणिसहस्संऽधयारेसु // 388 / / वसिऊण देवलोए, निबुज्जोए सयंपमे जीवो। वसई जलवेगकलमल-विउलवलयामुहे घोरे // 386 / / वसिऊण सुरनरीसर-चामीयर रिद्धिमणहरघरेसु / वसिओ नरगनिरंदर-भयभेरवपंजरे जीवो // 390 / / वसिऊण विचित्तेसु अ, विमाणगणभवणसोभसिहरेसुं। वसइ तिरिएसु गिरिगुह-विवरमहाकंदरदरीसु॥३६१।। मुत्तूण वि भोगसुह, सुरनखयरेसु पुण पमाएणं / पियइ नरएसु भेरव-कलंततउतंबपाणाई॥३६२।। सोऊण मुइयणवइभवे, अ जयसद्दमगंलरवोघं / सुणइ णरएसु दुहपर-मकंदुद्दामसद्दाई // 363 / / निहण हण गिण्ह दह पय-उब्बंध पबंध वंध रुधाद्धाहिं। फाले लोले घोले, थूरे खारेहिँ से गत्तं / / 364 //
SR No.016148
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri
PublisherRajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan
Publication Year2014
Total Pages1492
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size
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