________________ मरण 142 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 6 मरण नय मणसा चिंतिजा, जीवामि चिरं मरामि व लहुँ ति। जइ इच्छसि तरिउं जे, संसारमहोअहिमपारं / / 315 / / जइ इच्छसि नीसरिउं, सव्वेसिं चेव पावकम्माणं। जिणवयणनाणदंसण-चरित्तभावुजुओ जग्ग।।३१६।। दसणनाणचरित्ते, तवे य आराहणा चउक्खंधा। सा चेव होइ तिविहा, उक्कोसा मज्झिम जहण्णा // 317 / / आराहेऊण विऊ, उक्कोसाराहणं चउक्खंधं / कम्मरयविप्पमुको तेणेव भवेण सिज्झिज्जा / / 318|| आराहेऊण विऊ, मज्झिमआराहणं चउक्खंधं / उक्कोसेण य चउरो, भवे उगंतूण सिज्झिज्जा / / 316 / / आराहेऊण विऊ, जहण्णमाराहणं चउक्खधं / सत्तऽट्ठभवग्गहणे, परिणामेऊण सिज्झिज्जा // 320 / / धीरेण विमरियव्वं, काउरिसेणऽवि अवस्स मरियव्वं / तम्हा अवस्समरणे, वरं खुधीरत्तणे मरिठं // 321 / / एयं पचक्खाणं, अगुपालेऊण सुविहिओ सम्मं / वेमाणिओ व देवो, हवेज अहवाऽवि सिज्झिज्जा॥३२२।। एसो सवियारकओ, उवक्कमो उत्तमऽढकालम्मि। इत्तो उपुणो धुच्छं, जो उ कमो होइ अवियारे // 323 / / साहू कयलेहो, विजियपरीसहकसायसंताणो। निजवए मग्गिजा, सुयरयणसहस्सनिम्माए।।३२४।। पंचसमिए तिगुत्ते, अणिस्सिए रागदोसमयरहिए। कडजोगी कमालण्णू, नाणचरणदंसणसमिद्धे // 325 / / मरणसमाहीकुसले, इंगियपत्थियसभाववेत्तारे। ववहारविहिविहण्णू, अब्भुज्जयमरणसारहिणो // 326|| उवएसहेउकारण-गुणनिसढाणायकारणविहण्णू। विण्णाणणाणकरणो-वयारसुययधारणसमत्थे।।३२७॥ एगंतगुणे रहिया, बुद्धीइ चउव्विहाई उववेया ! छंदण्णू पव्वइया, पचक्खाणंमि य विहण्णू // 328|| दुण्हं आयरियाणं,दो वेयावच्चकरणणिज्जुत्ता। पाणगवेयावचे, तवस्सिणो वत्ति दो पत्ता!|३२६।। उव्वत्तण परिवत्तण, उच्चारुस्सासकरणजोगेसुं। दो वायग त्ति णज्जा, असुत्त करणे जहन्नेणं / / 330 / / असद्दहवेयणाए, पायच्छित्ते पडिक्कमणए य। जोगाऽऽयकहाजोगे, पचक्खाणे य आयरिओ // 331 // कप्पाऽकप्पविहिण्णू, दुबालसंगसुयसारही सव्वं / छत्तीसगुणोदेया, पच्छित्तवियारया धीरा ||332 / / एए ते निजवया, परिकहिया अट्ठ उत्तमटुंमि। जेसिं गुणसंखाणं, न समत्था पायया वुत्तुं / / 333 / / एरिसयाण सगासे, सूरीणं पवयणप्प्वाईणं / पडिवजिञ्ज महत्थं, समणो अब्भुजयं मरणं // 334 // आयरियउवज्झाए सीसे साहम्मिए कुलगणे य। जे मे किया सकाया, सव्वे तिविहेण खामेमि॥३३५।। सव्वस्स समणसंघ-स्स भावओ अंजलिं करे सीसे। सव्वं खभावयित्ता,खमामि सव्वस्स अहयंपि॥३३६।। गरहित्ता अप्पाणं, अपुणकारं पडिक्कमित्ताणं / नाणम्मि दंसणम्मि अ, चरित्तजोगाऽइयारे य॥३३७।। तो सीलगुणसमग्गो, अणुवहयक्खो बलं च थामं च / विहरिज तवसमग्गो, अनियाणो आगमसहाओ॥३३॥ तवसोसियंगभंगो,संधिसिराजालपागडसरीरो। किच्छाहियपरिहत्थो, परिहरइ कलेवरं जाहे // 336 / / पञ्चक्खाइ य ताहे, अन्नन्नसमाहिपत्तियंमित्ति। तिविहेणाहारविहि, दियसुग्गइकायपगईए।।३४०।। इहलोए परलोए, निरासओ जीविए अमरणे या सायाऽणुभवे भोगे, जस्स य अवहट्टणाईए।।३४१।। निम्ममों निरहंकारो, निरासयोऽकिंचणो अपडिकम्मो। वोसट्टविसटुंगो, चत्तचियत्तेण देहेणं॥३४२।। तिविहेणऽवि सहमाणो, परिसहे दूसहे अऊसग्गे। विहरिज विसयतण्हा-रयमलमसुभं विहुणमाणो / / 343 / / णेहक्खए व दीवो, जह खयमुवणेइ दववट्टिम्मि। खीणाहारसिणेहो, सरीरवटि तह खवेइ // 344 / / एव परज्झा असई, परक्कमे पुव्वभणियसूरीणं / पासम्मि उत्तमऽढे, कुजा तो एस परिकम्मं // 345 / / आगरसमुट्ठियं तह, अज्झुसिरवागत्तणपत्तकडएय। कट्ठसिलाफलगमि व, अणामिजयं निप्पकप्पंमि / / 346|| निस्संधिणातणमि व, सुहपडिलेहेण जतिपसत्थेणं / संथारो कायव्यो, उत्तर-पुव्वस्सिरो वाऽवि॥३४७॥ दोसुत्थ अप्पमाणे, अंधकारे समंमि अणिसिटे। निरुवहयंमि गुणमणे, वणंमि गुत्ते य संथारो // 348|| जुत्ते पमाणरइओ, उभउकालपडिलेहणासुद्धो। विहिविहिओ संथारो, आरुहियव्वो तिगुत्तेणं / / 346 / / आरुहियचरित्तभरो, अन्नेसु उपरमगुरुसगासम्मि। दव्वेसु पन्जवेसु य, खित्ते काले य सव्वम्मि॥३५०।। एएसु चेव ठाणेसु, चउसु सव्वो उचविहाऽऽहारो। तवसंजमु त्ति किचा, वोसिरियव्वो तिगुत्तेणं / / 351 / / अहवा समाहिहेऊ, कायव्वो पाणगस्स आहारो। तो पाणगं पि पच्छा, वासिरियट्वं जहाकाले // 352 / / निसिरित्ता अप्पाणं, सव्वगुणसमनियम्मि निजवए। संथारसन्निविट्ठो, अनियाणो चेव विहरिजा॥३५३।। अहलोए परलोए, अनियाणो जीविए य मरणे य। वासीचंदणकप्पो, समो य माणाऽवमाणेसु // 354 / /