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________________ मरण 141 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 6 मरण अकयपरिकम्मकीवं, मरणेसु अ संपउत्तम्मि॥२७५।। पुवमकारियजोगो, समाहिकामो वि मरणकालम्मि / न भवइ परीसहसहो, विसयसुहपराइओ जीवो।।२७६|| पुट्विं कारियजोगो, समाहिकामो य मरणकालम्मि। होइ उपरीसहसहो, विसयसुहनिवारिओ जीवो // 277 / / पुट्विं कारियजोगो, अनियाणो ईहिऊण सुहभावो / ताहे मलियकसाओ, सज्जो मरणं पडिच्छिज्जा // 278|| पावाणं पावाणं,कम्माणं अप्पणो सकम्माणं। सक्का पलाइउंजे, तवेण सम्मं पउत्तेणं / / 276 / / इक्वं पंडियमरणं, पडिवजइ सुपुरिसो असंभंतो। खिप्पं सो मरणाणं, काहिइ अंतं अणंताणं // 280 / / कि तं पंडियमरणं, काणि व आलंबणाणि भणियाणि। एयाइं नाऊणं, किं आयरिया पसंसंति? // 281 // अणसणपाउवगमणं, आलंबणझणभावणाओ अ। एयाहं नाऊणं, पंडियमरणं पसंसति / / 22 / / इंदियसुहसाउलओ, घोरपरीसहपराइयपरज्झो। अकयपरिकम्मकीवो, मुज्झइ आराहणाकाले / / 283 // लज्जाऐं गारेवणं, बहुसुयमएण वाऽवि दुचरियं / जे न कहंति गुरूणं, न हु ते आराहगा हुति // 24 // सुज्झइ दुक्करकारी, जाणइ मग्गं ति पावए कित्तिं / विणिगूहित्तो निंद, तम्हा आलोयणा सेया।।२८५।। अग्गिम्मि य उदयम्मिय, पाणेसु य पाणबीयहरिएसुं। होइ मओ संथारो, पडिवज्जइ जो असंभंतो // 286 // नऽदि कारणं तणमओ, संथारो नऽवि य फासुया भूमी। अप्पा खलु संथारो, होइ विसुद्धो मरंतस्स।।२८७।। जिणवयणमणुगया मे, होउ मई झणजोगमल्लीणा। जह तम्मि देसकाले, अमूढसन्नो चए देहं / / 288|| जाहे होइ पमत्तो, जिणवयणरहिओ अणायत्तो। ताहे इंदियचोरा, करेंति तवसंजमविलोमं // 286 / / जिणवयणमणुगयमई, जं बेलं होइ संवरपविट्ठो अग्गी व वायसहिओ, समूलडालं डहइ कम्मं / / 260 / / जह डहइ वायसहिओ, अग्गी हरिएऽवि रुक्खसंघाए। तह पुरिसकारसहिओ, नाणी कम्मं खयं नेइ / / 261 / / जह अग्गिम्मि व पबले,खडपूलिय खिप्पमेव झामेइ। तह नाणीऽवि सकम्म, खवेइ ऊसासमित्तेणं // 262 / / न हु मरणम्मि उवग्गे, सक्को वारसविहो सुयक्खंधो। सव्वो अणुचिंतेउं, धंतं पि समत्थचित्तेणं / / 263|| इक्कम्मिऽवि जम्मि पए, संवेगं कुणइ बीयरागमए। वनइ नरो अविग्छ, तं मरणं तेण मरितव्वं // 26 // इक्कम्मिऽवि जम्मि पए, संवेगं कुणइ वीयरागमए। सो तेण मोहजालं, छिंदइ अज्झप्पजोगेणं // 265|| जेण विरागो जायइ, तं तं सव्वाऽऽयरेण करणिज्ज। तसबायरभूयहियं, पंथं निव्वाण मग्गस्स // 266|| समणोऽहं ति य पढम, बीयं सव्वत्थ संजओऽम्हि त्ति। सव्वं च वोसिरामी, जिणेहिं जं जं पडिक्कुटुं / / 267 / / मणसाऽविऽचिंतणिज्जं, सव्वं भासऍऽभासणिज्जं च। कारण यऽकरणिजं, वोसिरि तिविहेण सावजं // 268|| अस्संजमवोसिरणं, उवहिविवेगो तहा उवसमो अ। पडिरूवजोगविहिओ,खंतो मुत्तो विवेगो या२६६।। एयं पञ्चक्खाणं, आउरजणआवईसु भावेणं / अण्णतरं पडिवन्नो, जंपतो पावइ समाहिं // 30 // मम मंगलमरिहंता, सिद्धा साहू सुयं च धम्मो य। तेसिं सरणोवगओ, सावजं वोसिरामि त्ति / / 301 / / सिद्ध उवसंपन्नो, अरिहंते केवली य भावेणं / इत्तो एगत्तरेणऽवि, पएण आराहओ होइ॥३०२।। समुइन्नवेयणो पुण, समणो हिययम्मि किं निवेसिज्जा ? आलंबणं च काउं, काऊण मुणी दुहं सहइ / / 303 / / नरएसुऽणुत्तरेसु अ, अणुत्तरा वेयणाओं पत्ताओ। वट्टतेण पमाए, ताओ वि अणंतसो पत्ता / / 304 / / एयं सयं कयं मे, रिणं व कम्मं पुरा असायं तु। तमहं एस धुणामि, मणम्मि सत्तं निवेसिज्जा / / 305|| नाणाविहदुकखेहि य, समुइन्नेहि उ सम्म सहणिजं / न य जीवो उ अजीवो, कयपुव्वो वेयणाईहिं // 306 / / अब्भुजय विहारं, इत्थं जिणदेसियं विउपसत्थं / नाउं महापुरिससे-वियं जं अन्मुज्जयं मरणं // 307 / / जह पच्छिमम्मि काले, पच्छिमतित्थयरदेसियमुयारं। पच्छा निच्छयपत्थं, उदेइ अब्भुजयं मरणं / / 308|| छत्तीसमट्टियाहि य, कडजोगी संगहबलेणं। उज्जमिऊणं वारस-विहे य तवनियमठाणेणं // 306 / / संसाररंगमज्झे, धिइबलसंनद्धबद्धकच्छाओ। हंतूण मोहमल्लं, हराहि आराहणपडागं // 310 / / पोराणयं च कम्म, खवेइ अन्नन्नबंधणायाई। कम्मकलंकलवल्लिं, छिंदइ संथारमारूढो / / 311 / / धीरपुरिसेहिँ कहियं, सप्पुरिसनिसेवियं परमघोरं / उत्तिण्णोऽम्हि हु रंग, हरामि आराहणपडागं // 312 / / धीर ! पडागाहरणं, करेहि जह तंसि देसकालम्मि। सुत्तत्थमणुगुणितो, धिइनिचलबद्धकच्छाओ॥३१३|| चत्तारि कसाए ति-णि गारवे पंच इंदियग्गामे / जिणिउं परीसहसहे, हराहि आराहणपडाग / / 314 //
SR No.016148
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri
PublisherRajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan
Publication Year2014
Total Pages1492
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size
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