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________________ मरण 140 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 6 मरण जं पालिये न भग्गं, तं जाणसु पालणासुद्धं / / 235 / / रागेण व दोसेण व, परिणामे वा न दूसियं जं तु। तं खलु पचक्खाणं भावविसुद्ध मुणेयव्वं / / 236 / / पीयं थणयच्छीरं, सागरसलिलाउ बहुयरं हुज्जा। संसार संसरंतो, माऊणं अन्नमन्नाणं / / 237 / / तऽत्थि किर सो पएसो, लोए वालऽग्गकोडिभित्तोऽवि। संसारे संसरंतो,जत्थन जाओ मओ वाऽवि॥२३८|| चुलसीई किर लोए, जोणीणं पमुहसयसहस्साई। इकिकम्मिय इत्तो, अणंतखुत्तो समुप्पन्नो // 236 / / उड्डमहे तिरियम्मि य, मयाणि बालमरणाणिऽणताणि। तो ताणि संभरंतो; पंडियमरणं मरीहामि // 240 // माया मित्ति पिया मे, भाया भज त्ति पुत्तधूया य। एयाणिऽचिंतयंतो, पंडियमरणं मरीहामि / / 241 / / मायापिइवंधूहि, संसारत्थेहिँ पूरिओ लोगो। बहुजोझिनिवासीहिं, न य ते ताणं च सरणं च / / 2 / 2 / / इको जायइ मरइ, इक्को अणुहवइ दुक्कयविवागं / इक्को अणुसरइ जीओ, जरमरणचउग्गईगुविलं // 243 / / उठेवणयं जम्मण-मरणं नरएसु वेयणाओ य / एयाणि संभरंतो, पंडियमरणं मरीहामि // 244 / / इक्कं पंडियमरणं, छिंदइ जाईसयाणि बहुयाणि / तं मरणं मरियव्वं, जेण मओ मुक्कओ होइ॥२४५।। कइयाणु तं सुमरणं, पंडियमरणं जिणेहिं पन्नत्तं / सुद्धो उद्धियसल्लो, पाओवगमं मरीहामि // 246 / / संसारचक्कवाले, सव्वे वि य पुग्गला मए बहुसो। आहारिया य परिणा-मिया य न य तेसु तित्तो हं॥२४७।। आहारनिमित्तेणं, मच्छावचंतिऽणुत्तरं नरयं / सञ्चित्ताहारबिहि, तेण उमणसाऽवि निच्छामि / / 248|| तणकटेण व अग्गी, लवणसमुद्दो नईसहस्सेहिं। न इमो जीवो सक्को, तिप्पेउं कामभोगेहिं / / 246 / / लवणयमुहसामाणो, दुप्पूरो धणरओ अपरिमिजो। नहु सक्को तिप्पेठ, जीवो संसारियसुहेहिं / / 250 / / कप्पतरुसंभवेसु य, देवुत्तरकुरुवंसपसूएसुं। परिभोगेण न नित्तो, ण य नरविज्जाहरसुरेसु // 251 / / देविंदचक्कवट्टि-तणाई रज्जाइं उत्तमा भोगा। पत्ता अणंतखुत्तो, नयहं तित्तिं गओ तेहिं / / 252 / / पयखीरुच्छुरसेसु य, साऊसु महोदहीसु बहुसोऽवी। उववन्नो न य तण्हा, छिन्ना ते सीयलजलेहिं / / 253 / / तिविहेण वि सुहमउलं, जम्हा कामरइविसयसुक्खाणं / बहुसो वि समणुभूयं, न य तुह तण्हा परिच्छिन्ना // 254|| जा काइ पत्थणाओ, कया मए रागदोसवसएणं / पडिबंधेण बहुविहा, तं निंदे तं च गरिहामि / / 255 / / हंतूण मोहजालं, छित्तूण य अट्ठकम्मसंकलियं / जम्मणमरणऽरहट्ट, मित्तूण भवाण मुश्चिहिसि / / 256 / / पंच य महव्वयाई, तिविहं तिविहेण आरूहेऊणं। मणक्यणकायगुत्तो, सञ्जो मरणं पडिच्छिज्जा / / 257 / / कोहं माणं मायं, लोहं पिजं तहेव दोसं च। चइऊण अप्पमत्तो, रक्खामि महव्वए पंच॥२५८|| कलह अब्भक्खाणं, पेसुन्नं पियपरस्स परिवायं / परिवज्जंतो गुत्तो, रक्खामि महव्वए पंच // 256 / / किण्हं नीलं काउं, लेसं झाणाणि अप्पसत्थाणि। परिवजंतो गुत्तो, रक्खामि महव्वए पंच / / 260 / / तेऊ पम्हं सुक्कं, लेसा झाणाणि सुप्पसत्थाणि। उवसंपन्नो जुत्तो, रक्खामि महव्वए पंच।।२६१।। पंचिंदियसंवरणं, पंचव निलंभिऊण कामगुणे। अच्चासायणविरओ, रक्खामि महव्वए पंच॥२६२।। सत्तभयविप्पमुक्को, चत्तारि निरुम्भिऊण य कसाए। अट्ठमयट्ठाणजडो, रक्खामि महव्वए पंच।।२६३।। मणसा मणसचविऊ, वायासचेण करणसचेण / तिविहेण अप्पमत्तो, रक्खामि महव्वएपंच / / 264 / / एवं तिदंडविरओ, तिकरणसुद्धो तिसल्लनिस्सल्लो। तिविहेण अप्पमत्तो, रक्खामि महव्वए पंच / / 265 / / सम्मत्तं समिईओ, गुत्तीओ भावणाओं नाणं च। उवसंपन्नो जुत्तो, रक्खामि महव्वए पंच।।२६६।। संगं परिजाणामि, सल्लं पि य उद्धरामि तिविहेणं / गुत्तीओ समिईओ, मज्झं ताणं च सरणं च // 267 / / जह खुहियचक्कवाले, पोयं रयणभरियं समुद्घमि / निजामया धरिती, कयरयणा बुद्धिसंपन्ना // 268|| तवपो गुणभरियं, परीसहुम्मीहिँ धणियभाइद्धं / तह आराहिंति तिऊ, उपएसवलंबगा धीरा।।२६६।। जइ ताव ते सुपुरिसा, आयारो वि य भरा निरवयक्खा। गिरिकुहरकंदरगया, साहति य अप्पणो अटुं / / 270 / / जइ ताव सावयाकुल-गिरिकंदरविसमदुग्गेसु। धणियं धिइवद्धकच्छा , साहति उ उत्तमं अहूँ // 271 / / किं पुण अणगारसहा-यगेण वेरग्गसंगहबलेणं / परलोएण ण सक्का, संसारमहोदहिं तरि / / 272 / / जिणवयणमप्पमेयं, महुरं कन्नाऽमयं सुणताणं / सक्का हु साहुमज्झा, साहेउं अप्पणो अटुं / / 273 / / धीरपुरिसपण्णत्तं, सप्पुरिसनिसेवियं परमघोरं। धन्ना सिलातलगया, साहें ति अप्पणो अहूं // 274|| बाहेइ इन्दियाइं, पुव्वमकारिय पइट्ठधारिस्स।
SR No.016148
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri
PublisherRajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan
Publication Year2014
Total Pages1492
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size
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