________________ मरण 138 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 6 मरण ताव खमं काउं जे, सरीरनिक्खेवणं विउपसत्थं / समयपडागाहरणं, सुविहियइटुं नियमजुत्तं / / 156|| हंदि अणिचा सद्धा, सुई य जोगा य इंदियाई च। तम्हा एयं नाउं, विहरह तव संजमुजुत्ता / / 157 / / ता एवं नाऊणं, ओवायं नाणदसणचरिते। धीरपुरिसाऽणुचिण्णं, करिति सोहिं सुयसमिद्धा ||15|| अभितरबाहिरयं, अह ते काऊण अप्पणो सोहिं। तिविहेण तिविहकरणं, तिविहे काले वियडभावा / / 156 / / परिणामजोगसुद्धा, उवहिविवेगं च गणविसग्गे य। अज्जाइ य उवस्सय-वजणं च विगईविवेगं च / / 160 / / उग्गम-उप्पायण ए-सणा विसुद्धिं च परिहरणसुद्धिं / सन्निहि सन्निचयंभिय, तववेयावच्चकरणे य॥१६१।। एवं करंतु सोहिं, नवसारयसलिलनहतलसभावा। कमकालदव्यपज्जव-अत्तंपरजोगकरणे य॥१६२।। तो ते कयसोहीया, पच्छित्ते फासिए जहाथाम्म / पुप्फाऽवकिन्नगम्मिय, तवंभि जुत्ता महासत्ता।।१६३।। तो इंदियपरिकम्म, करिति विसयसुहनिग्गहसमत्था। जयणाइ अप्पमत्ता, रागद्दोसे पयणुयंता / / 16 / / पुव्वमकारियजोगा, समाहिकामा वि मरणकालम्मि। न भवंति परीसहसहा, विसयसुहपमोझ्या अप्पा।।१६५।। इंदियसुहसाउलओ, घोरपरीसहपराइयपरज्झो। अकयपरिकम्मकीवो, मुज्झइ, आराहणाकाले / / 166 / / वाहंति इंदियाई, पुट्विं दुन्नि य भियप्पयाराई। अकयपरिकम्मकीवं, मरणेसु असंपउत्तं पि॥१६७।। आगममयप्पभाविय-इंदियसुहलोलुया पइहस्स। जइ वि मरणे समाही, हुजन सा होइ बहुयाणं // 168|| असमत्तसुओ वि मुणी, पुट्विं सुकयपरिकम्मपरिहत्थो। संजमनियमपइन्नं, सुहमत्तहिओ समण्णेइ॥१६६।। न चयंति किंचि काउं, पुट्विं सुकयपरिकम्मजोगस्स। खोहं परीसहचमू-धिइबलपराइया मरणे / / 170 // तो ते वि पुव्वचरणा, जयणाए जोगसंगहविहीहिं। तो ते करें ति दसण-चरित्तसइ भावणाहेउं // 171 / / जा पुव्वभाविय किर, होइ सुई चरणदसणे बहुहा। सा होइ बीयभूया, कयपरिकम्मस्स मरणम्मि / / 172 / / तं फासेहिं चरितं, तुम पि सुहसीलयं पमुत्तूणं / सव्वं परीसहचमुं, अहियासन्तो घिइबलेणं / / 173 / / सद्धे रूवे गंधे, रसे य फासे य सुविहियजणेहिं। सव्वेसु कसाएसु अ, निग्गह परमो सया होहि // 174 / / सव्वे रसे पणीए, णिज्जू हेऊण पंतलुक्खेहिं / अण्णयरेणुवहाणे-ण संलिहे अप्पगं कमसो।।१७।। संलेहणा य दुविहा, अभितरिया य बाहिरा चेव। अबिभतरियकसाए, बाहिरिया होइ य सरीरे / / 176 / / उग्गमउप्पायण ए-सणाविसुद्धेण अण्णपाणेणं / मियविरसलुक्खलूहेण, दुब्ब्लं कुणसु अप्पागं / / 177 / / उल्लीणोल्लीणेहि य, अहव न एगंतवद्धमाणेहिं / संलिह सरीरमेयं, आहारविहिं पयणुयंतो / / 178|| तत्तो अणुपुटवेणाऽऽ-हारं उवहिं सुओवएसेणं / विविहतवोकम्मेहि य, इंदियविक्कीलियाईहिं / / 176 / / तिविहाहिँ एसणाहिय, विविहेहि अभिग्गहेहिं उग्गेहिं। संजममविराहिंतो, जहाबलं संलिहसरीरं॥१८०|| विविहाहि व पडिमाहि य, बलवीरियजई य संपहोइ सुहं। ताओ विन वाहिति, जहक्कम संलिहंतम्मि // 181 / / छम्मासिया जहन्ना, उक्कोसा वारिसेव वरिसाइं। आयंबिलं महेसी, तत्थ य उक्कोसयं बिंति॥१८२।। छट्ठऽहमद समदुवा-लसेहि, भत्तेहिं चित्तकठेहिं / मियलहुकं आहारं, करहिं आयंबिलं विहिणा // 18 // परिवडिओवहाणो, आहारुविरावियवियडपासुलिकडीओ। संलिहियतणुसरीरो, अज्झप्परओ मुणी निचं / / 18 / / एवं सरीरसंले-हणाविहिं बहुविहं पि फासिंतो। अज्झवसाणविसुद्धिं,खणं पि तो मा पमाइत्था॥१८५।। अज्झवसाणविसुद्धी, विवज्जिया जे तवं विगिट्ठमवि। कुव्वंति बाललेसा, न होइ सा केवला सुद्धी॥१८६|| एयं सरागसंले-हणाविहिं जइ जई समायरई। अज्झप्पसंजुयमई, सो पावइ केवलं सुद्धिं // 187 / / निखिला फासेयव्वा, सरीरसंलेहणाविही एसा। इत्तो कसायजोगा, अज्झप्पविहिं परम वुच्छं॥१५८|| कोहं खमाइ नाणं, मद्दवया अज्जवेण मायं च / संतोसेण व लोह, निजिण चत्तारि वि कसाए॥१८६।। कोहस्स व माणस्स व, मायालोभेसु वा न एएसिं। वचइ वसं खणं पिहु, दुग्गइगइवड्वणकराणं / / 10 / / एवं तु कसायऽग्गिं, संतोसेणं तु विज्झवयेव्यो। राग्गद्दोसपवत्तिं, व माणस्स विज्झाइ।।१६१।। जावंति केइ ठाणा, उदरगा हुंति हु कसायाणं / ते उसया वजंतो, विमुत्तसंगो मुणी विहरे / / 162 / / संतोवसंतधिइमं, परीसहविहिं च समहियासंतो। निस्संगयाइ सुविहिय ! संलिहमोहे कसाए य / / 163 / / इट्ठाणिद्वेसु सया, सद्दफरिसरूवरसगंधेहिं / सुहदुक्खनिव्विसेसो, जियसंगपरीसहो विहरे॥१६|| समिईसु पंचसमिओ, जिणाहितं पंच इंदिए सुट्ट।