________________ मरण 137 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 6 मरण सन्निकरणे विमोही, पुण्णागारो य पन्नत्ता।।११६।। उन्नुअमालोइत्ता, इत्तो अकरणपरिणामजोगपरिसुद्धो। सो पवणुइपइकम्म, सुग्गइमग्गं अभिमुहेइ / / 117 / / उदहीनियडिपइट्ठो, सोहिं जो कुणइ सोगईकामो। माई पलिकुंचंतो, करेइ बुंदुछियं मूढो / / 118|| आलोयणाऽऽइदोसे, दस दोग्गइ बंधणे परिहरंतो। तम्हा आलोइज्जा, मायं मुत्तूण निस्सेसं / / 116 / / जे मे जाणंति जिणा, अवराहा जेसु जेसु ठाणेसु। ते तह आलोएमी, उवट्ठिओ सव्यभावेणं / / 120 // एवं उवट्ठियस्स वि, आलोएउं विसुद्धभावस्स। जं किंचिऽवि विस्सरियं, सहसाकारेण वा चुक्कं / / 121|| आराहओ तह वि सो, गारवपरिकुंचणामयविहूणो। जिणदेसियस्स धीरो, सद्दहगो मुत्तिमग्गस्स / / 12 / / आकंपण अणुमाणण, जं दिह्र बायरं च सुहुमं च / छन्नं सद्दाउलगं, बहुजणअव्वत्ततस्सेवी॥१२३।। आलोयणाएँ दोसे, दस दुग्गइवड्डणा पमुत्तूणं / आलोइज्ज सुविहिओ, गारवमायामयविहूणो॥१२४।। तो परियागं च बलं, आगमकालं च कालकरणं च / पुरिसं जीयं च तहा, खित्तं पडिसेवणविहिं च / / 125 / / जोग्गं पायच्छित्तं, तस्स य दाऊण बिंति आयरिया। दंसणनाणचरित्ते, तवे य कुणमप्पमायति / / 126 / / अणसणमूणोयरिया, वित्तिच्छेओ रसस्स परिचाओ। कायस्स परिकिलेसो, छट्ठो संलीणय चेव / / 127 / / विणए वेयावच्चे, पायच्छित्ते विवेगसज्झाए। अम्भितरं तवविहिं, छठे झाणं वियाणाहि॥१२८|| बारस विहम्मि तवे, अडिभतरबाहिरे कुसलदिट्टे। नवि अत्थि नविय होहि, सज्झायसमं तवोकम्म॥१२६।। जे पयणुभत्तपाणा-सुयहेऊ ते तवस्सिणो समए। जो अतवो सुयहीणो, बाहिरयो सो छुहाहारो।।१३०।। छट्टऽट्ठमदसमदुवा-लसेहिं अवहुस्सुयस्सजा सोही। तत्तो बहुतरगुणिया, हविज जिमियस्स नाणिस्स।।१३१। कल्लं कल्लंऽपि वरं, आहारो परमिओ अ पंतो अ। न य खमणो पारणए, बहु बहुतरों बहुविहो होइ।।१३२।। एगाऽहेण तवस्सी, हविज नत्थित्थ संसओ कोऽई। एगाऽहेण सुयहरो, न होइ धन्तं पितुरमाणो // 133 / / सो नाम अणसणतवो, जेण मणोऽमंगलं न चिंतेइ। जेण न इंदियहाणी, जेण य जोगा न हायंति।।१३४|| जं अन्नाणी कम्म, खवेइ बहुयाहिँ वासकोडीहिं। तं नाणी तिहिं गुत्तो, खवेइ ऊसासमित्तेणं / / 135|| नाणे आउत्ताणं, नाणीणं नाणजोगजुत्ताणं / को? निजरं तुलिजा, चरणे य परक्कमंताणं / / 136 / / नाणेण वाणिजं, वज्जिज्जइ किजई य करणिजं / नाणी जाणइ करणं, कञ्जमकजं च वजेउं // 137 / / नाणसहियं चरित्तं, नाणं संपायगं गुणसयाणं / एसा जिणाण आणा, नऽत्थि चरित्तं विणा णाणं // 138|| नाणं सुसिक्खियव्वं, नरेण लद्धण दुल्लहं बोहिं। जो इच्छइ नाउंजे,जीवस्स विसाहणामग्गं / / 136 / / नाणेण सव्वभावा, णज्जती सव्वजीवलोअम्मि। तम्हा नाणं कुसले-ण सिक्खियव्वं पयत्तेणं / / 140 / / न हुसक्का नासेठ, नाणं अरहंतभासियं लोए। ते धन्ना ते पुरिसा, नाणी य चरित्तजुत्ता य॥१४१।। बंधं मुक्खं गइरा-गयं च जीवाण जीवलोयम्मि / जाणंति सुयसमिद्धा, जिणसासणचेइयविहिण्णू / / 142 / / भदं सुबहुसुयाणं, सव्वपयत्थेसु पुच्छणिजाणं / नाणेण जोवयारे, सिद्धिं पि गएसु सिद्धेसु / / 143 / / किं ? इत्तो लट्ठयरं, अच्छेरयरं व सुंदरतरं वा। चंदमिव सव्वलोगा, बहुस्सुयमुहं पलोएंति / / 144|| चंदाउ नीइ जुण्हा, बहुसुयमुहाउनीइ जिणवयणं / जं सोऊण मुविहिया, तरंति संसारकंतारं / / 145 / / चउदसपुव्वधराणं, ओहीनाणीण केवलीणं च। लोगुत्तमपुरिसाणं, तेसिं नाणं अविनाणं // 146|| नाणेण विणा करणं, न होइ नाणंऽपि करणहीणं तु / नाणेण य करणेण य, दोहि वि दुक्खक्खयं होइ / / 147 / / दढमूलमहाणंमि वि, दरमेगोऽवि सुयसीलसंपण्णो। माहु सुयसीलविगला, काहिसि माणं पवयणम्मि।।१४८|| तम्हा सुयंमि जोगो, कायव्वो होइ अप्पमत्तेणं / जेणऽऽप्पाण परंऽपि य, दुक्खसमुद्दाउ तारेइ।।१४६।। परमत्थंति सुदिटे, अविणढेसु तवसंजमगुणेसु / लब्भइ गई विसुद्धा, सरीरसारे विणटुंमि / / 150 / / अविरहिया जस्स मई, पंचहिँ समिईहिं तिहिं वि गुत्तीहिं। न य कुणइ रागदोसे, तस्स चरित्तं हवइ सुद्धं // 151 // उक्कोसचरित्तोऽविय, परिवडई मिच्छभावगं कुणइ। किं ? पुण सम्मदिट्ठी, सरागधम्ममि वट्टतो // 152 / / तम्हा घत्तह दोसु वि, काउं जे उजमं पयत्तेणं। सम्मत्तंमि चरित्ते, करणंमिय मा पमाएह ||153 / / जाव य सुई न नासइ, जाव य जोगा न ते पराहीणा। सद्धााजव न हाई, इंदियजोगा अपरिहीणा / / 154 / / जाव य खेमसुभिक्खं, आयरिया जाव अस्थि निजवगा। इड्डी गारवरहिया, नाणचरणदंसणंमि रया॥१५५।।