________________ मरण 136 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 6 मरण दुहओ वितओ विहलो, अह जम्मो धम्मरुक्खाणं / / 76 / / / दिक्खं मइलेमाणा, मोहमहावत्तसागराऽभिहया। तस्स अपडिक्कमंता, मरंति ते बालमरणाइं॥७७।। इय अवि मोहपउत्ता, मोहं मुत्तूण गुरुसगासम्मि। आलोइय निस्सल्ला, मरिठं आराहगा तेऽवि॥७८|| इत्थ विसेसो भण्णइ, छलणा अविनाम हुज्ज जिणकप्पो। किं पुण इयरमुणीणं, तेण विही देसिओ इणमो / / 7 / / अप्पविहीणा जाहे, धीरा सुयसारझरियपरमत्था। ते आयरियविदिन्नं, उविंति अब्भुजयं मरणं / / 8 / / आलोषणाइ संले-हणाइ खमणाइ काल उस्सग्गे। उग्गासे संथारे, निसग्ग वेरग्ग मुक्खाए / / 81 / / झाणविसेसो लेसा, सम्मत्तं पायगमणयं चेव / चउदसओ एस विही, पढमो मरणम्मि नायव्वो।।२।। विणओवयारमाण-स्स भंजणा पूयणा गुरुजणस्स। तित्थयराण य आणा सुयधम्माराहणाऽकिरिया // 83|| छत्तीसा ठाणेसु य, जे पवयणसारझरियपरमत्था। तेसि पासे सोही, पन्नत्ता धीरपुरिसे हिं||४|| दयछक्ककायछक्कं, वारसगं तह अकप्प गिहिभाणं। पलियंक गिहिनिसिञ्जा, ससोभ पलिमज्जण सिणाणं / / 5 / / आयारवं च उवधा-रवं च ववहारविहिविहिन्नू य / उन्धीलगाय धीरा, परूवणाए विहिएणू य॥८६।। तह य अवायविहिएणू, निजवगा जिणमयम्मि गहियत्था। अपरिस्साई यतहा, विस्सासरहस्सनिच्छिड्डा / / 7 / / पढमं अट्ठारसगं, अट्ट य ठाणाणि एव भणियाणि / इत्तो दस ठाणाणि य, जेसु उट्ठावणा भणिया / / 8 / / अणवट्ठतिगं पारं-चिगं च तिगमेय छहि गिहीभूया। जाणंति जे उ एए-सुअरयणकरंडगा सूरी।।६।। सम्महसणचत्तं, जे य वियाणंति आगमविहिन्नू। जाणंति चरित्ताओ, अनिग्गयं अपरिसेसाओ||६|| जो आरंभे वट्टइ, चिअत्तकिच्चो अणणुतावी य। सोगो य भवेदसमो, जेसूवट्ठावणा भणिया / / 11 / / एएसु विहिविहण्णू, छत्तीसा ठाणएसु जे सूरी। ते पवयणसुहकेऊ, छत्तीसगुण त्ति नायव्वो |2|| तेसिं मेरुमहोयहि-मेयाणि-ससि-सूर-सरिसकप्पाणं। पायमूले य विसोही, करणिज्जा सुविहियजणेणं / / 63|| काइयवाइयमाणसि-यसेवण दुप्पओगसंभूयं / जो अइयारो कोई, तं आलोए अगूहिंतो // 64|| अमुगम्मि इउ काले, अमुगत्थे अमुगगामभावेणं / जं जह निसेवियं खलु, जेण य सवं तहाऽऽलोए।।१५|| मिच्छादसणसल्लं,मायासल्लं नियाणसल्लं च / तं संखेवा दुविहं, दव्वे भावे य वोद्धव्वं / / 66|| वि (ति) विहं तु भावसल्लं, दंसणनाणे चरित्तजोगे य। सचित्ताऽचित्तेऽविय, मीसए याऽविदव्वम्मि||७|| मुहुमं पि भावसल्लं, अणुद्धरित्ता उ जो कुणइ कालं / लज्जाए गारवेण य, न हु सो आराहओ भणिओ||८|| तिविहं पि भावसल्लं, समुद्धरित्ता उ जो कुणइ कालं / पव्वञ्जाई सम्म, स होई आराहओ मरणे ||6|| तम्हा सुत्तरमूलं, अविकूलमविदुयं अणुव्विग्गो। निम्मोहियमणिगूढ, सम्मं आलोअए सव्वं // 100 / / जह बालो जपतो, कञ्जमकजं च उज्जुयं भणइ / तं तह आलोइज्जा, मायामयविप्पमुक्को उ॥१०१।। कयपावोऽवि मणूसो, आलोइय निदिउं गुरुसगासे। होइ अइरेगलहुओ, ओहरियभरु व्व भारवहो // 102 / / लजाए गारवेण य, जे नाऽलोयंति गुरुसगासम्मि। धम्मं तं पि सुयसमिद्धा, न हु ते आराहगा हुंति // 103 / / जह सुकुसलो वि वेजो, अन्नस्स कहेइ अत्तणो वाहिं। तं तह आलोयव्वं, सुटुऽवि ववहारकुसलेणं // 104 / / जं पुव्वं तं पुव्वं, जहाणुपुट्विं जहक्कम सव्वं / आलोइज सुविहिओ, कमकालविहिं अभिदंतो॥१०५।। अत्तंरपरजोगेहि य, एवं समुवट्ठिए पओगेहिं। अमुगेहि य अमुगेहि य, अमुयगसंठाणकरणेहिं / / 106 / / वण्णेहि य गंधेहि य, सद्दफरिसरसरूवगंधेहिं। पडिसेवणा कया पञ्ज-वेहि कया जेहि य जहिं च / / 107 / / जो जोगओ अपरिणा-मओ-अदंसणचरित्तअइयारो। छट्ठाणबाहिरो वा, छट्ठाणऽउँभतरो वाऽवि / / 108|| तं उज्जुभावपरिणउ, राग दोसं च पयश्णु काऊणं / तिविहेण उद्धरिजा, गुरुपामूले अगूहिंतो।।१०।। न वितं सत्थं च विसं, च दुप्पउत्तु व्व कुणइ वेयालो। जंतं व दुप्पउत्तं, सप्पु व्व पमाइणो कुद्धो॥११०|| जं कुणइ भावसल्लं, अणुद्धियं उत्तमट्ठकालम्मि। दुल्लहवोहीयत्तं, अणंतसंसारियत्तं च / / 111 / / तो उद्धरंति गारव-रहिया मूलं पुणब्भवलयाणं / मिच्छादसणसल्लं, मायासल्लं नियाणं च / / 11 / / . रागेण व दोसेण व, भएण हासेण तह पमाएणं। रोगेणाऽऽयंकेण व, वत्तीइ परामिओगेणं // 113|| गिहिविजापडिएणव, सपक्खपरधम्मिओवसग्गेणं। तिरियंजोणिगएण व, दिव्व मणूसोवसग्गेणं / / 114 / / उवहीइ व नियडीइव, तह सावयपिल्लिएण व परेणं ! अप्पाण भएण कयं, परस्स छंदाणुवत्तीए / / 115 // सहसवकारमणाभो-गओ अयं पवयणाऽहिगारेणं /