________________ मरण 135 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 6 मरण व्यापरिवउवज्झाए, पव्वयणे सव्वसंघे य।।१६।। एएसु भत्तिजुत्ता, पूयंता अहरहं अणण्णमणा। सन्मतमणुसरंता, परित्तसंसारिया हुति।।२०।। मुविहिव इमं पइण्णं, असहंतेहिं उणेगजीवहिं। बालमरणाणि तीए, मयाइँ काले अणंताई // 21 // एवं पंडियमरणं, मरिऊण पुणो बहूणि मरणाणि। न मरंति अप्पमत्ता, चरित्तमाराहियं जेहिं / / 22 / / दुविहम्मि अहक्खाए, सुसंबुडा पुव्यसंगओ मुक्का। चे उ चयंति सरीरं, पंडियमरणं मयं तेहिं / / 23 / / तस्स उवाए उ इमा, परिकम्म विहीउ जुंजीया / / 24 / / से कुम्म (केस) संखताडण-मारुअजिअगगणपंकयतरूणं / सरिकप्पासुयकप्पिय-आहारविहारचिट्ठागा।|२५|| निच्चं तिदंडविरया, तिगुत्तिगुत्ता तिसल्लनिस्सल्ल। तिविहेण अप्पमत्ता, जगजीवदयावरा समणा // 26 / / (अत्रत्या वक्तव्यता 'आराहग' शब्दे द्वितीयभागे 377 पृष्ठे उक्ता तत एवावस्या !) फासेहिं ति चरित्तं, सव्वं सुहसीलयं पजहिऊणं / घोरं परीसहचमु, अहियासिंतो धिइबलेणं / / 15 / / सद्दे रूवे गंधे, रसे य फासे य निग्घिणधिईए। सव्वेसु कसाएसु य, निहंतु परमोसाया होहि।।४६|| चइऊण कसाए इं-दिए य सव्वे य गारवे हंतुं। तो मलियरागदोसो, करेह आराहणासुद्धिं / / 47 / / दंसणनाणचरित्ते, पव्वजाईसु जो अईयारो। तं सव्वं आलोयहि, निरससेसं पणिहियप्पा / / 48|| जह कंटएण विद्धो, सव्वंगे वेयणदिओ होइ। तह चेव उद्धियम्मि उ, नीसल्लो निव्वओ होइ॥४६॥ एवमणुद्धियदोसो, माइल्लो तेण दुक्खिओ होइ। सो चेव चत्तदोसो, सुविसुद्धो निव्वओ होइ॥५०।। रागद्दोसाऽभिहया, ससल्लमरणं मरंति जे मूढा। ते दुक्खसल्लबहुला, भमंति संसारकंतारे // 51 / / जे पुण तिगारवजढा, नीसल्ला दंसणे चरित्ते य / विहरंति मुक्कसंगा, खवंति ते सव्वदुक्खाइं॥५२॥ सुचरमवि संकिलिहूं, विहरितं झाणसंवरविहीणं / नाणी संवर जुत्तो, जिणइ अहोरत्तमित्तेणं / / 53 / / जं निजरेइ कम्मं, असंवुडो सुबहुणा वि कालेणं / ते संवुडो तिगुत्तो, खवेइ ऊसासमित्तेणं // 54 // सुबहुस्सुयाऽवि संता, जे मूढा सीलसंजमगुणेहिं। न करंति भावसुद्धिं, ते दुक्खनिभेलणा हुंति // 55 / / जे पुण सुयसंपन्ना, चरित्तदोसहिँ नोवलिप्पंति। ते सुविसुद्धचरित्ता, करंतिदुक्खक्खयं साहू / / 56 / / पुव्वमकारियजोगो, समाहिकामोऽवि मरणकालम्मि। न भवइ परीसहसहो, विसयसुहपराइओ जीवो // 57 / / तं एवं जाणंतो, महंतरं लाहगं सुविहिएसु। दंसणचरित्तसुद्धी, निस्सल्लो विहर तं धीर ! // 58|| इत्थ पुण भावणाओ, पंच इमा हुंति संकिलिट्ठाओ। आराहिंत सुविहिया,जा निजं वञ्जिणिज्जाओ / / 5 / / कंदप्पा देवकिदिवस-अमिओगा आसुरी य संमोहा। एयाओं संकिलिहा, असंकिलिट्ठा हवइ छट्ठा / / 60 // कंदप्पा कोकुइया, दवसीलो निच हासणकहाओ। विम्हावितो उ परं, कंदप्पं भावणं कुणइ॥६१।। नाणस्स केवलीणं, धम्मायरियस्स संघसाहूणं / माई अवण्णवाई, किदिवसियं भावणं कुणइ // 62 // मंताऽमिओगं कोउग, भूईकम्मं च जो जणे कुणइ। सायरसइड्विहेउं, अभिओगं भावणं कुणइ॥६३।। अणुवद्धरोसवुग्गह-संपत्त तहा निमित्तपडिसेवी। एएहि कारणेहि, आसुरियं भावणं कुणइ // 64 // उम्मग्गदेसणा णा-ण-दूसणा मग्गविप्पणासो अ। मोहेण मोहयंतं-सि भावणं जाण संमोहं // 65 / / एयाउ पंच वजिय, इणमो छट्ठीइँ विहर तं धीर ! / पंचसमिओ तिगुत्तो, निस्संगो सव्वसंगेहिं / / 66 / / एयाएँ भावणाए, विहरविशुद्धाइ दीहकालम्मि। काऊण अंतसुद्धिं, दंसणनाणे चरित्ते य / / 67 / / पंचविहं जे सुद्धिं, पंदविहविवेगसंजुयमकाउं। इह उवणमंति मरणं, ते उ समाहिं न पाविति // 68 / / पंचविहं जे सुद्धिं, पत्ता निखिलेण निच्छियमईया। पंचविहं च विवेगं, ते हु समाहिं परं पत्ता // 66|| लहिऊणं संसारे, सुदुल्लहं कहं वि माणुसं जम्म। न लहंति मरणदुलहं, जीवा धम्मं जिणक्खायं / / 70 / / किच्छाहि पावियम्मि वि, सामण्णे कम्मसत्तिओसन्ना ! सीयंति सायदुलहा, पंकासन्नो जहा नागो॥७१।। जह कागणीइ हेउं, मणिरयणाणं तु हारए कोडिं। तह सिद्धसुहपरुक्खा , अबुहा र(स) जंति कामेसुं॥७२।। चोरो रक्खसपहओ, अत्थऽत्थी हणइ पंथियं मूढो। इय लिंगी सुहरक्खस-पहओ विसयाउरो धर्म // 73 // तेसु वि अलद्धपसरा, अवियण्हा दुक्खिया गयमईया। समुविंति मरणकाले, मगामभयभेरवं णरगं / / 74 / / धम्मो न कओ साहू, न जेमिओ न नियंसियं सह / इहि परंपरासु-त्ति य नेवय पत्ताई सुक्खाई।७५|| साहूणं नोक्कयं, परलोअच्छेयसंजमो न कओ।