________________ वीर 1384 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 6 वीर लेण धूय ति गहिया, एवं सा हाविया, मूला वि तेण भणिया- एस तुज्झ धूया, एवं सा तत्थ जहा नियघरं तहा सुहं सुहेण अच्छति, ताए वि सो सदा सपरियणो लोगो सीलेणं विणएण य सव्वो अप्पणिजओ कओ, ताहे ताणि सव्वाणि भणति -- अहो इमा सीलचंदण त्ति, ताहे से बितियं नाम जायं चंदण त्ति, एवं, वचति कालो, ताए य धरणीए अवमाणो जागति, मच्छरिजइ य, को जाणाति? कयाति एस एवं पडिवजेजा, गाह अस अस्सामिणी भविस्सामि, तीसे य बाला अतीव दीहा स्म क हायस, सो सेट्ठी मज्झण्हे जणविरहिए आगओ, जावनस्थि का इति; ताहे सा पाणियं गहाय निग्गया, तेण वारिया, सा नडाए ग्याविया, ताहे धोवंतीए बाला बद्धेल्लया छुट्टा, मा शियल मिति सि तस्स हत्थे लीलाकट्ठयं, तेण धरिया बद्धा य। मूलाय ओलागणावरगया पेच्छइ, तीए णायं विणसियं कज्जं, जइ एवं विह विपरि 13 मर्म एस नत्थि जाव तरुणओ वाही ताव तिगिच्छामि त्ति सिटिम निगए ताए ण्हावियं सद्दावेत्ता बोडाविया (मुण्डिता), निथलाह बद्धा, पिट्टिया या, वारिओ णाए परिजणो-जो साहइ वाणियगरस सोममनस्थि, ताहे सो पिल्लियओ सा रे छोण बाहिरि कुहंडिया, सो कमेण आगओ पुच्छइ-कहिं चंदणा ? न कोइ वि साहइ भयेण, सो जगति - नूर्णरमति उवरिया। एवं राति पि पुच्छिया जाणाति सा सुत्ता नणं, वितियदिवसेऽवि सा न दिट्ठा, ततियदिवसे धणं पुच्छइ साहह मा भे भारह, ताहे थेरदासी एका, सा चिंतेइ-किं मे जीविएण ? सा जीवउ रई, ताइ कहियं - अमुयघरे: तेण उग्घाडिया, छुहाहयं पिच्छित्ता कूर पमग्गितो, जाव समावत्तीए नत्थिताहे कुम्मासा दिट्टा, तीसे ते, सुप्पकोणे दाऊण लोहारघरं गओ, जा नियलाणि छिंदावेमि, ताहे सा हत्थिणी जहा कुल संभरिउमारद्धा एलुगं विक्खंभइत्ता, तेहिं पुरओ कएहिं हिययभंतरओ रोवति, सामीय अतियओ, ताए चिंतियं सामिस्स देमि, मम एवं अहम्मफलं, भणति-भगवं ! कप्पइ? सामिणा पाणी पसारिओ, चउव्विहोऽवि पुण्णो अभिगहो, पंच दिव्वाणि ते, बाला तयवत्था चेव जाया, ताणिऽवि से नियलाणि फुट्टाणि सोवणियाणि नेउराणि जायाणि, देवेहि यसव्वालंकारा कया, सक्को देवराया आगओ, वसुहारा अद्धतेरस हिरणकोडिओ पाडियाओ, कोसंबीए य सव्वओ उग्घुट्ट - केण पुण पुण्णमतेण अज सामी पडिलाभिओ ? ताहे राया संतेउरपरियणो आगओ, ताहे तत्थ संपुला नाम दहिवाहणस्स कंचुइजो सो बधित्ता आणियओ लेण सा णाया, ततो सो पादेसुपडिऊण परुण्णो, राया पुच्छइ का एसा!, तेण से कहियं -जहेसा दहिवाहण-रण्णो दुहिया, मियावती गणइ -- मम भगिणीधूय ति, अमचोऽवि सपत्तीओ आगओ, सामि वंदइ, सामी वि निग्गओ, ताहे राया तं वसुहार पगहिओ, सझेण वारिओ, जर ससादह तस्साऽऽभवइ, सा पुच्छिया भणइ-मम पिउणो, ताहे सेद्धिणा गहिय / ताहे सण सयाणीओ भणिओ-एसा चरितसरीरा, एय सगोवाहि०जाद रामिस्स नाणं उप्पज्जइ, एसा पढमसिस्सिगा, ताहे कन्नतेउरे छूढा संवडति। छम्मासा तथा पंचहि दिवसेहिं ऊणा जदिवस सामिणा भिक्खा लद्धा / सा मूला लोगेणं अंबाडिया, हीलिया य। तत्तो सुमंगलाए, सणकुमार सुछित्त एइ माहिंदो। पालगवाइलवणिए, अमंगलं अप्पणो असिणा।।५२२।। सामी ततो निगंतूण सुमंगल नाम गामो तहिं गओ, तत्थ सणंकुमारो एइ वंदति पुच्छति य / ततो भगवं सुच्छित्तं गओ, तत्थ माहिंदो पिय पुच्छओ एइ / ततो सामी पालगं नाम गाम गओ, तत्थ वाइलो नाम वाणियओ जताए पहाविओ अमंगलं ति काऊण असिं गहाय पहाविओ एयस्स फलउत्ति तत्थ सिद्धत्थेण सहत्थेण सीसं छिण्णं। चंपा वासावासं,जक्खिदे साइदत्तपुच्छाय। वागरणदुहपएसण, पचक्खाणे य दुविहे उ॥५२३।। ततो सामी चंप नगरिंगओ, तत्थ सातिदत्तमाहणस्स अग्निहोत्तसालाए वसहिं उवगओ, तत्थ चाउम्मासं खमति, तत्थ पुण्णभद्दमाणिभद्दा दुवे जक्खा रत्तिं पज्जुवासंति, चत्तारि विमासे पूयं करेंति रत्तिं रत्तिं, ताहे सो चिंतेई - किं जाणाति एस तो देवा महंति ताहे विनासणानिमित्त पुच्छइ-को ह्यात्मा? भगवानाह-योऽहमित्यभिमन्यते / स कीदृशः ? सूक्ष्मोऽसौ / किं तत् ? सूक्ष्मम्, यन्न गृह्णीमः / ननु शब्दगन्धानिलाः, नैते, इन्द्रियग्राह्यास्ते न ग्रहणमात्मनः, ननु ग्राहयिता सः / किं भंते ! पदेसणयं? किं पचक्खाण ? भगवानाह-सादिदत्त ! दुविह पदेसणगंधम्मियं, अधम्मियं च / पदेसणं नाम उवएसो / पञ्चक्खाणेऽवि दुविहे - मूलगुणपचक्खाणे, उत्तरगुणपचक्खाणे य / एएहि पएहिं तस्स उवगतं / भगवं ततो निग्गओ। जंमियगामे नाण-स्स उप्पया वागरेइ देविंदो। मिढियगामे चमरो, वंदण पियपुच्छणं कुणइ / / 524|| जंभियगामं गओ, तत्थ सचो आगओ, वंदित्ता नट्टविहिं उवदसित्ता वागरेइ-जहा एत्तिएहिं दिवसेहिं केवलनाणं उष्पञ्जिहिति / ततो सामी मिढियमामं गओ, तत्थ चमरओ वंदओ पियपुच्छओ य एति, वंदित्ता पुच्छित्ता य पडिगतो। छम्माणि गोव कडसल-पवेसणं मज्झिमाएँ पावाए। खरओ विजों सिद्धत्थ, वाणियओ नीहरावेइ / / 525|| ततो भगव छम्माणि नाम गाम गओ, तरस बाहि पडिम ठिओ, तत्थ सामिसमीवे गोवो गोणे छड्डेऊण गामे पविट्ठो दोहणाणि काऊण निग्गओ, ते य गोणा अडविं पविट्ठा चरियध्वगस्स कजे, ताहे सो आगतो पुच्छति-देवज्जग ! कहिं ते वइल्ला? भयर्व मोणेण अच्छइ, ताहे सो परिकुविओ भगवतो कण्णेसु कडसलागाओ छुहति, एगा इमेण कण्णेण एगा इमेण जाव दोन्नि वि मिलियाओ, ताहे मूले भग्गाओ मा कोइ उक्खणिति त्ति / केइ भणंति-एक्का चेव जाव इयरेण कण्णेण निग्गता ताहे भग्गा, 'कण्णेसु तउं तत्तं, गोवस्स कयं तिविठुणा राणा / कण्णेसु वद्धमाणस्स तेण छूढा कडसलाया / / 1 / / ' भगवतो तहारवेयणीयं कम उदिण्णं / ततो सामी मज्झिमं गतो, तत्थ सिद्धत्थो