________________ विणयंधर ११५३-अभिधानराजेन्द्रः - भाग 6 विणयंधर इय पउरं फरुसागरा-हिताडिया धाडिया नरिदेण। किवणेण मगणा इव, पउरा पत्ता सगेहेसु // 30 // तो विणयंधरभजा, ताओ निरवञ्जकजसज्जाओ। आणाविय सुहडेहि, राया पक्खिवइ ओरोहे // 31 / / ताण सुरूवं दटु, चिंतइ निवई अहो अहं धन्नो। जं निसुया दिट्ठाओ, मम गेहमिमाउ पत्ताओ॥३२॥ . बहुचाडुवयणपुव्वं, विसएपस्थितओ निवो ताहिं। लज्जो ण य वयणाहिं, महासईहिं इमं भणिओ॥३३॥ पररमणीरमणीयं, रूवं पासंति अहह मूढमणा। नमणागं पिहु अप्पं, निवडतं भीमभवकूपे॥३४॥ परजुवइजुव्वणभरं, जे जोअंते जणे जए जिणइ। कुसुमसरो वि अणंगो,कह ते वुचंति नरसीहा // 35 // परकतं कामंता, गयसुचरियजीविया महामलिणा। गुरुपावकारिणो इव, कह ते दंसंति निययमुहं॥३६॥ इह विनडिय अप्पाणं, कुलं कलंकित अकित्ति अकंता। अइदुस्सहनरयदुह-गितावतविभमंति भवे॥३७।। इय सुणिय दोसजालं, नराहमाणं विणड्डसीलाणं। मणसा वि सीलरयणं, मा मइल्प कुलसंभूआ।।३।। इय सुणिय सो विलक्खो, सयलदिणं त निसं च कह कह वि। गमिउं गोसे पत्तो, तासिं पासे पुणो वि निवो॥३६।। ता नियइ ताउ सव्वा-उजलण जालालिकविलकेसाओ। अइसयबीभच्छीओ, जरजीवरमलिणगत्ताओ / / 4 / / परिगलियजुव्वणाओ, रागीण विरागकरणपउणाओ। चिंतइय निराणंदो, वेरम्गगओ नरवरिदो॥४१॥ किं एस दिट्ठिबंधो, मइमोहो वाऽवि सुविणओ किं वा / किं वा दिव्यपओगो, अहवा पावप्पभावो मे // 42 // अहह हयासेण भए, कलंकियं नियकुलं सया विमलं। वित्थारिओय भुवणे, तमालदलसामलो अयसो॥४३॥ इचाइ बहुविहं जू-रिऊण राया विसज्जए ताओ। विणयंधरस्स पासे, सजो जाया सरूवत्था / / 44|| इत्तोय तत्थ नयरे, पत्तो सिरिसूरसेणवरसूरी। पत्ता गुरुनमणत्थं, निवविणयंधरपउरलोया // 45 // तिपयाहिणपुव्वमपु-व्वभावभावियमणा नमिय गुरुणो। निसियति उचियदेसे, इय कहइ गुरू विधम्मकहं / / 46|| धम्मो दुविहो भणिओ, जिणेहि जियरागदोसमोहेहिं। सिवनयरिगमणगब्भो, सुसाहधम्मो य गिहिधम्मो // 47 // तत्थय पढम साव-ज्ज कज्जपरिवजणुज्जुओ उज्जू। पंचमहव्ययपव्यय-गुरुभारसहुव्वहणपवणो॥४८॥ समिईगुत्तिपवित्तो, अममत्तो सत्तुमित्तसमचित्तो। खंतो दंतो संतो, अवगयतत्तो महासत्तो 146 // निम्मलगुणगणजुत्तो, गुरुपयभत्तो करेइ जो सत्तो। सो अचिरेणं पावइ, सुमग्गलग्गो पवग्गपुरं / / 5 / / तकरणासत्तेहिं, सावगधम्मोऽवि होइ कायव्यो। कालेण सोऽवि सिवसु-क्खदायगो देसिओ समए५१॥ इय सोउं धम्मकहं, लद्धावसरेण पुच्छिय रना। भयवं! किं कयमसमं, सुकयं विणयंधरेण पुरा // 52|| जंसव्वपिओ एसो, पियाउएयस्स पवररूवाओ। अह भणइ गुरू निव! इंह, आसी नयरम्मि हत्थिसीसम्भि। राया वियारधवलो, धवलजसों धवलियदियंतो // 54 // तस्स चरो वेयाली, अगन्नकारुन्नमाइगुणसाली। निचं परोवयारी, आसि दढं पावपरिहारी // 55 / / सो अइउदारयाए, पइदिवसं असणमाइसमणुन्न। दाउँ कस्सइ उचियं,पच्छा भुंजइ सयं नियमा॥५६।। सो अन्नदिणे बिंदु-जाणो, पडिमाठियं सविहिनाहं। उवसभरसं व मुत्तं, दटुं तुट्ठो थुणइ एवं / / 57 / / जिणस्तुतिकाव्यम्वपुरि अंगविन्नासु वपुरिलोयणघणलवणिम, कटरिभालुसुविसालु कटरिमुहकमलपसन्निम। अरिरि सरलुभुयजुयलु अरिरि सिरिवत्थहसत्थिम, अइयचरण भवहरण अइयसव्यंगसुचंगिम।। अरि कुणह नयणघणुरंक धउ वलिवलिजोइवि एहु पहू। देवाहिदेव तिहुयण तिलओ परमप्पउंजिम लहु हु लहु // 58|| एवं थुणिऊण अणू-ण भत्तिराएण सुद्धसद्धिल्लो। बहुमाणमुव्वहंतो, जिणम्मि सगिह इमो पत्तो // 56 / / पन्नाणुबंधिपुन्नो-दएण अह तस्स भोयणावसरे। सिरिसुविहिजिणो भिक्खा-इआगओ गिहदुवारम्मि // 60 / / तंसुलु द? वंदी, अमंदआणंदजायरोमंचो। पडिलाभेइ जिणिंद, परिवेसियकामगुणिएणं // 61 / / चिंतइय अहं धन्नो, अन्ज मर्म जम्मजीवियं सहलं। जं पाणिपुडेणमिणं, दाणं गिण्हइ सयं भयवं / / 62 / / अह उग्घुटुं गयणे, अहो सुदाणं अहो सुदाणं ति। वियसिय मुहेहि विबुहे-ति ताडिया अमरभेरीओ॥६३।। बहुजणजणियचमक्कं, गंधोदगकुसुमवरिसणं जायं। उक्कोसा वसुहारा, पडिया भुवणंगणे तस्स // 6 // नर सुर असुरपहू विहु, वंदित्तुं वंदिणो वि से पत्ता। सुह परिणामेण तया, जाया सम्मत्तसंपत्ती॥६५।। काउं सुपत्तपत्तं, वित्तं चित्तम्मि जिणमणुसरंतो। सो चइय पूइदेह, पत्तो पढमं अमरगेहं॥६६॥ तत्तो चविओ एसो, जाओ विणयंधरोउलोयपिओ। तद्दाणपुन्नवसओ, इमाउ जायाउ जायाओ॥६७।। तुह वेरगनिमित्तं, तासिं सुइसीलरंजियमणाए। सासणदेवीइ तया, इमा विरूवाउ विहियाओ|६|| इय सुणिय फुरियगुरुचरण, धम्मबुद्धिनिवो। काऊण रज्जसुत्थं, सुत्थमाणो गिण्हए दिक्खं / / 66 // विणयंधरो विधम्मे, बहुमाणं बहुजणाण वढ्तो। चउहि वि भजाहि सम, महाविभूईएँ पव्वइओ|७|| पउरावि ससत्तीए, धम्मंगहि वयंति सहाणं। सूरी वि सपरिवारो, सुहेण अन्नत्थ विहरेइ॥७१। तो धम्मबुद्धि विणयं-धर मुणिणो चरियचरणमकलंक। निहणियअसेसकम्मा, जाया संकलियसिवसम्मा।।७२|| श्रुत्वेति वृत्तं विनन्धरस्य, प्रभूतसत्त्वाहितबोधिबीजम् / भो भव्यलोका ! विलसद्विवेका! लोकप्रियत्वं गुणमाश्रयध्वम्॥७३॥