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________________ विजयकुमार ११४२-अमिधानराजेन्द्रः - भाग 6 विजयकुमार इत्थंतरम्मि नियसिय, कत्ती कत्ती रउद्दपाणितलो। असिमसिकसिणसरीरो, गुंजापुंजारुणत्थिउडो॥१३।। अट्टहासजियकु-ट्टमाणवंभंडभंडचंडरवो। हण हण हण त्ति भणिरो, समुडिओ रक्खसो एगो॥१४॥ भणइ य जोइं रेरे, अणज्ज ! अज्ज वि अकजसज्ज इहं। मज्झ विपूयमकाउं, चिट्ठसि ता धिट्ठ! नट्ठोऽसि / / 15|| मह मुहकुहरहुयासे, तुह संगिल्लं इमं कुमारं पि। लहु दहउ तणगणं पिव, अहव कुसंगो न किं जणई॥१६|| तव्वयणसवणउप्प-नमन्नुभरिओ भणेइतो कुमरो। रे रे! तुहऽज्ज पत्तं, कयं तदत्तं समणुपत्तं // 17|| मइपासठिए विग्धं, इमस्स सक्को विकाउन हुसक्को। इय जपतो पत्तो, झत्ति कुमारो तयासन्नं / / 18|| अह दोवि कोवकडनिव-डभिउडिणो फुरफुरंतअहरदला। अन्नुन्नं पहरता, तज्जंता फरुसवयणेहिं / / 16 / / जा संपत्ता दूरं, ता नवरयणीयरु व्व रयणियरो। खिणमित्तेणं कुडिलो, नयणअगोयरपहं पत्तो // 20 // पडियागओ कुमारो, गयजीयं जोइयं निएऊण। गुरुतरविसायविहुरो,पलोयए खेयरि तेण // 21 // तमवि मयच्छिमपिच्छिय-हयसव्वस्सुव्य दीणकसिणमुहो। निंदइ अत्ताणमत्ता-ण कारणं सरणपत्ताणं / / 22 / / इत्तो झत्ति स पत्तो, खयरो कुमरं नमित्तु वज्जरइ। तुज्झ पभावेण मए, निहओ दक्खो विपडिवक्खो // 23 // ता परनारि सहोयर ! सरणागयवजपंजर ! सुधीर!। अणवज्जकज्जअप्पसु, मह पाणपियं पियं कुमर ! ||24|| परकजउज्जयमणो, अह बीओ नत्थि इत्थ जियलोए। जयतुंगरायवंसो, विभूसिओ तुज्झ जम्मेण // 25 // जह जह थुव्वइ कुमरो, तह तह उव्विग्ग माणसो धणिय। लज्जाभरमंथरकं-धरो य नहु किं पिजंपेइ॥२६॥ तं पइ पुणो पयंपइ, खयखारं पिव खरं गिरं खयरो। जइ तुह कज्जं मह पण-इणीइ ता जामि एस अहं / / 27 / / तुह-सरिसपवरपुरिस--स्स महप्पिया जइसिजाइ उवओगं। लद्धं जं लहियव्वं, मणं पि मा कुणसु मणखेयं / / 28|| इय वुत्तं उप्पइओ, खयरो ता चिंतए इमं कुमरो। अहह बहू पावभरिओ, निम्मलकुलदूसणो अह य॥२६॥ सरणागए न रक्खइ, विजयकुमार त्ति किं न पज्जत्तं / जं कुणसि परत्थिकलं-कअंकियं मज्झरे दिव्व ! // 30 // वरमिहपाणच्चाओ, लज्जिक्कधणाण पवरपुरिसाणं / भट्ठपइन्नण कलं-कियाण न जियं पि जं भणियं // 31 // लज्जां गुणौधजननी जननीमिवार्यामत्यन्तशुद्धहृदयामनुवर्तमानाः॥ तेजस्विनः सुखमसूनपि संत्यजन्ति। सत्यव्रतव्यसनिनो न पुनः प्रतिज्ञाम्॥३२॥ इइ चिंताभरविहुरं, कुमरं को वि हुसुरो सुकंतिल्लो। जंपइ आहरणपहा, उज्जोइयसयलदिसिचक्को।।३३।। मा कुणसुकुमर ! खेयं, सेयं एवं सुणेहि मह वयणं। इयरो वि भणइ तुह वय-णसवणपवणा य मे सवणा॥३४|| आह सुरो वीरपुरे, पुरम्भि जिणदासनामवरसिट्ठी। कयगुरुजणअणुसिट्ठी अइधम्मिट्ठी विमलदिट्ठी / / 3 / / तस्स य मिच्छद्दिट्ठी, मित्तो अइवल्लहो धणो नाम / सो पडिवज्जइ वज्जि-विसओ ताव सवय कइया // 36|| तो चिंतइ जिणदासो, एए अन्नाणिणो वि जइ एव / पावभरपसरभीरू, विसं व विसए परिहरंति॥३७।। अवगयभवस्सरूवा, जिणपवयणवसवणनायनायव्वा। निम्मलविवेइणो विहु, ता कि अम्हे न ते चइमो॥३८|| इव चिंतित्तु सविणयं, विणयंधरगुरुसमीवगाहियवओ। अणसणविहिणा मरिउं, जाओ सोहम्मसग्गसुरो॥३६।। मित्तं पिवंतरं तं, जायं सो झत्ति ओहिणा दटुं।। निययं रिद्धिसमुदयं, निदसए बोहणत्थं सो॥४०॥ चिंतेइ वंतरो तो, अव्वो लहिऊण मणुयजम्ममहं; जइ जिणधम्म तइया, सेवंतो तो सुही हुंतो॥४१॥ जइरे जिय! गुणगुरुणो, गुरुणो अमरत्तरु व्व सेवंतो। तो रुद्ददरिदं पिद,नलहंतो हीणअमरत्तं // 42 // जइ जियजिणपवयण अम--यपाणपवणो तया तुम हुँतो। असरिस अमरिसक्सिपर-वसत्तणं तो न पावंतो॥४३॥ इचाइ बहुवियं जू-रिऊण नियमित्तअमर वयणेण। सम्म सम्म॑धम्मो, पडिवन्नो मुक्खतरुबीयं // 44 // दसवरिससहस्सठिई, निययं जाणित्तु भणइ सुरपवरं। परकजचित्तमणुय-तणे वि बोहिज मित्त ! ||45|| तियसेण विपडिवन्ने, उव्वट्टिय वंतरोतुमं जाओ। एकंतवीरवित्ती, न मुणसि नाम पि धम्मस्स॥४६|| तो तुज्झ बोहणकए, मए इमा बहुल बहुलिया विहिया। ओहावणं अपत्ता, जनहु बुज्झंति माणधणा॥४७॥ इय सुणमाणुचिय जा-इसरणफुडवियडमुणियनियचरिओ। कुमरो विन्नवइ सुरं, विबोहिओ साहु साहु तए।।४८|| तुमह मित्तो तुम-ज्झ-बंधवो तुं सया गुरू मज्झ। इय भणिय गिण्हइवयं, सुरअप्पियसाहुनेवत्थो॥४६॥ तो कयकाउस्सग्गं, कुमरमुणिं खामिउं पणमिउंच। पत्तो सुरो सठाणं, उदिओ इत्थंतरम्मि रवी // 50 // तत्थेव तया पत्तो, जयतुंगनिवो वि कुमरसुद्धिकए। पुत्तं निइत्तु सहस, त्ति लुतविहुरं भणइ दीणो // 51 / / हा वच्छ! पणयवच्छल! छलिया अम्हे विकह तए एवं। धवलजस धरसु अज्ज वि, रजधुरुद्धरणधवलत्तं // 52 // बुड्ढवय उचियमेयं, वयमुजसु झत्ति सत्तिनयनकलियं!। तुह वयणामयपाणं, लहुलहइ जणो इमो वच्छ॥५३॥ इय जपंतं निसुणियं, मोहतिव्वं निवं विबोहेउं। पारियकाउस्सग्गो, कुमरमुणी भणइ वयणमिणं // 54|| भो भो नरिंद! तडिलय-चलाइ अभिमाणमित्तसुहयाए। सग्गापवग्गसंस-गमग्गगुरुविग्धभूयाए॥५५॥ नरयअइदुसह दुहका-रणाइ धम्मतरुजलणजालाए। कोणप्पमई अप्पं विडंबए रायलच्छीए॥५६|| पिउणा जणियं लच्छिं, भइणं पिव अप्पणा उधूयं व। परसतियं परत्थिं,व किह ण सेविज लज्जालू॥५७|| पवणपहरिल्लकम्मलग्ग-लग्गजललवचलम्मि जीयम्मि। कल्ले काहं धम्म,को भणइ सकन्न विन्नाणो / / 5 / / जओजस्स ऽत्थि मच्घुणा सक्खं,जस्स वऽस्थि पलायणं / जो जाणे न मरिस्सामि, सो हु कंखे सुएसियं / / 5 / /
SR No.016148
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri
PublisherRajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan
Publication Year2014
Total Pages1492
LanguageHindi
ClassificationDictionary
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