________________ वाइसमोसरण 1057 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 6 वाइसमोसरण 'पुढविकाइया ण' मित्यादि / 'नो किरियावाइ' त्ति मिथ्यादृष्टि- वउत्ताअणागारोवउत्ताजहा सलेस्सा एवं गैरइया विभाणियव्वा, त्वात्तेषामक्रियावादिनोऽज्ञानिकवादिनश्च ते भवन्ति, वादाभावेऽपि णवरं णायव्वं जं अत्थि। एवं असुरकुमारा वि० जाव थणियतद्वादयोग्यजीवपरिणामसद्भावाद्वैनयिकवादिनस्तु तेन भवन्ति, तथा- | कुमारा | पुढवीकाइया सव्वट्ठाणेसु वि मज्झिल्लेसु दोसु वि विधपरिणामादिति / 'पुढवीकाइया णं जं अत्थी' त्यादि, पृथिवी- | समवसरणेसु भवसिद्धिया वि अभवसिद्धिया वि एवं० जाव कायिकानां यदस्ति सलेश्यकृष्णनीलकापोततेलोलेश्यकृष्णपाक्षि- वणस्सइकाइया / बेइंदियतेइंदियचउरिंदिया एवं चेव णवरं कत्वादि, तत्र सर्वत्रापि मध्यमं समवसरणद्वयं वाच्यमिति / एवं०जाव सम्मत्ते ओहियणाणे आमिणिबोहियणाणे सुयणाणे एएसु चेव चउरिदिया ण' मित्यादिननुद्वीन्द्रियादीनांसासादन-भावेनसम्यक्त्वं- / दोसु मज्झिमेसु समोसरणेसु भवसिद्धिया णो अभवसिद्धिया, ज्ञानं चेष्यते तत्र क्रियावादित्वं युक्तं तत्स्वभावत्वादित्याशङ्कयाह-- सेसं तं चेव पंचिंदियतिरिक्खजोणिया जहा जेरइया णवरं 'सम्मत्तनाणेहि वी' त्यादि। क्रियावादविनयवादौ हि विशिष्टतरे सम्य- नायव्वं जं अस्थि / मणुस्सा जहा ओहिया जीवा वाणक्त्वादिपरिणामे स्यातां न सासादनरूपे इति भावः / 'जं अत्थि तं मंतरजोइसियवेमाणिया जहा असरकमारा। सेवं भंते ! भंते ! भाणियव्वं' ति पञ्चेन्द्रियतिरश्चामलेश्याकषायित्वादि न प्रष्टव्यम- त्ति॥ (सू०५२५) भ०३० 2010 संभवादितिभावः। जीवादिषु पञ्चविंशतौ पदेषु यद्यत्र समवसरणमस्ति अणंतरोववनगाणं भंते ! णेरड्या किं किरियावादी पुच्छा, तत्तत्रोक्तम् / भ० 30 श०१ उ०। (एतेषामायुर्बन्धनिरूपणम् 'आउ' गोयमा! किरियावादी वि०जाव वेणइयवादी वि, सलेस्सा णं शब्दे द्वितीयभागे 16 पृष्ठे गतम्।) भंते ! अणंतरोववनगा णेरइया किं किरियावादी एवं चेव, एवं किरियावादी णं भंते ! जीवा किं भवसिद्धिया अभवसिद्धिया? जहेव पढमुद्देसे णेरड्या णं वत्तव्वया तहेव इह वि भाणियव्वा गोयमा ! भवसिद्धिया णो अभवसिद्धिया / अकिरियावादी णं णवरं जं जस्स अत्थि अणंतरोववण्णगाणं णेरइयाणं तं तस्स भंते ! जीवा किं भवसिद्धिया पुच्छा, गोयमा! भवसिद्धिया वि माणियव्वं / एवं सव्वजीवाणंजाव वेमाणियाणं णवरं अणंतअभवसिद्धिया वि / एवं अण्णाणियवादी वि वेणइयवादी वि।। रोववण्णगाणं जं जहिं अत्थितं माणियव्वं / (सू०५२६) सलेस्साणं भंते ! जीवा किरियावादी किं भव० पुच्छा, गोयमा ! किरियावादीणं मंते! अणंरोववण्णगाणेरड्या किं भवसिद्धिया भवसिद्धिया नो अभवसिद्धिया। सलेस्सा णं मंते ! जीवा अभवसिद्धिया? गोयमा ! भवसिद्धिया णो अभवसिद्धिया अकिरियावादी किं भव० पुच्छा, गोयमा ! भवसिद्धिया वि अकिरियावादीणं पुच्छा गोयमा! भवसिद्धिया वि अभवसिद्धिया अभवसिद्धिया वि, एवं अन्नाणियवादी वि वेणइयवादी वि जहा वि। एवं अण्णाणियवादी वि। वेणइयवादी वि। सलेस्सा णं सलेस्सा, एवं जाव सुकलेस्सा, अलेस्सा णं भंते ! जीवा मंते ! किरियावादी अणंतरोववण्णगाणेरड्या किं भवसिद्धिया किरियावादी किं भव० पुच्छा, गोयमा ! भवसिद्धिया नो अभ- अभवसिद्धिया? गोयमा! भवसिद्धिया, नो अभवसिद्धिया। एवं वसिद्धिया, एवं एएणं अमिलावणं कण्हपक्खिया तिसु वि एएणं अभिलावणं जहेव ओहिए उद्देसएणेरझ्याणं वत्तव्वया भणिया समोसरणेसु भयणाए सुक्कपक्खिया चउसु वि समोसरणेसु / तहेव इह वि भाणियव्वा जाव अणागारोवउत्त त्ति / एवं जाव भवसिद्धिया णो अभवसिद्धिया सम्मट्ठिी जहा अलेस्सा। वेमाणियाणं णवरं जंजस्स अस्थि तं तस्स भाणियव्वं इमं से मिच्छादिट्ठी जहा कण्हपक्खिया। सम्मामिच्छादिट्ठी दोसु वि लक्खणे जे किरियावादी सुकपक्खिया सम्मामिच्छा-दिडिया एए समोसरणेसु जहा अलेस्सा / णाणी० जाव केवलणाणी भव- सव्वे भवसिद्धिया णो अभवसिद्धिया सेसा सव्वे भवसिद्धिया वि सिद्धिया णो अभवसिद्धिया, अण्णाणी०जाव विभंगणाणी जहा अभवसिद्धिया वि सेवं भंते ! भंते ! त्ति। (सू०८२६+ ) / कण्हपक्खिया सण्हासु चउसु वि जहा सलेस्सा णो सण्णोव परम्परोपपन्नकानां नैरयिकादीनाम्उत्ता जहा सम्मादिट्ठी / सवेदगाजाव णपुंसगवेदगा जहा परंपरोववण्णगा णं भंते ! णेरड्या किरियावादी एवं सलेस्सा, अवेदगा जहा सम्मदिट्ठीसकसाईजावलोभकसाई जहे व ओहिओ उद्देसओ तहे व परंपरोववण्णएस वि जहा सलेस्सा / अकसाई जहा सम्मादिही सजोगी०जाव णेरइयादिओ तहेव णिरवसेसं भाणियध्वं तहेव तियदंडकायजोगी जहा सलेस्सा,अजोगीजहा सम्मादिट्ठी। सागारो- | गसंगहिओ सेवं मंते ! भंते त्तिजाव विहरइ। (सू०५२७)।