________________ पिट्ठ 634 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 5 पित्तिवस *पृष्ठ न० "पृष्ठे वाऽनुत्तरपदे" ||8 / 1 / 126 / / इति ष्ठस्य हः। / सू०प्र० १६पाहु०। चं०प्र०। (तानि कियन्तीति 'जोइसिय' शब्दे प्रा०१पाद / पश्चादागे, स०३४सम०। चतुर्थभागे 1562 पृष्ठे उक्तम्) पिट्ठओ अव्य०(पृष्ठतस्) पश्चाद्भागे, स०३४सम०। पृष्ठदेशमाश्रित्येत्यर्थे, | पिडच्छा (देशी) सख्याम्, देना० ६वर्ग 46 गाथा। उत्त० 10 // सूत्र। "अरई पिडओ किच्चा।" पृष्ठतः कृत्वाऽनादृत्य। | पिडिया स्त्री०(पिटिका) मञ्जूषायाम्, आ०चू० ४अ० सूत्र० १श्रु०१५ अ०। "पिटुआ कडा।" पृष्ठतः कृत्वा, परित्यक्त्वेत्यर्थे , ! पिढर पुं०(पिठर) भाण्डे, "पिठरो मठरो य कोलंबो।' पाइ०ना० 172 सूत्र० १श्रु०३ अ०४301 गाथा। "ठो ढः" 8/1196 / / इति ठस्य ढः। प्रा०१पाद। पिटुंत न०(पृष्टान्त) ६ता "पिट्ठीए अंतं पिटुंत।'' अपानद्वारे, नि०चू० | पिढरग पुं०(पिठरक) उखायाम्, आचा० २श्रु० 10 १अ०११3०1 ६उ०। गुदे, देवना०६वर्ग 46 गाथा। गागलिकुमारपितरि, उत्त०। चम्पानाम्नी नगरी, तत्र शालनामा राजा. पिट्ठकरंडग न०(पृष्ठकरण्डक) पृष्ठवंशवयुन्नते अस्थिखण्डे पांशुलि- महाशालनामा भर्ता, तत्पुत्रो गागलिः। उत्त०१०अ०ा ती०। आ०म०) कायाम्, जं०२वक्ष०ा तं० जी०। अणु पिणद्ध त्रि०(पिनद्ध) परिहिते, ज्ञा०१श्रु० अ० त०। औ०। विपा०। पिट्ठखउरा (देशी) मद्ये, देवना०६वर्ग 50 गाथा। यन्त्रिते, तं०। बखे, राज्ञा "पिणद्धगेवेज्जविमलवरचिंधपट्टे" पिनद्ध पिठ्ठखउरिआ स्त्री०(मदिरायाम्,) "विटसुरा पिट्ठखउरिआ मइरा।" | परिहित ग्रैवेयकं ग्रीवाऽऽभरणं येन स तथा विमलवरो बद्धश्चिह्नपट्टो पाइ० ना० 211 गाथा। योधचिह्नपट्टो येन स तथा, ततः कर्मधारयः। भ०७ श०६ उ० जी० पिट्टचंपा स्त्री०(पृष्टचम्पा) चम्पानगरीपृष्ठतोऽतिसमीपनगर्याम, तत्र त्रीणि / रा। "ओलइअं परिहियं पिणद्धं चा" पाइ०ना० 175 गाथा। वर्षारात्राणि वीरप्रभुःकृतवान् / कल्प 1 अधि० ६क्षणा ('चपा' शब्दे पिणद्धित्तए अव्य०(पिनद्धम्) बटुमित्यर्थे , प्रश्र०४आश्र० द्वार / औ०। तृतीयभागे 1068 पृष्ठे कल्प उक्तः) पिणाअ (देशी) बलात्कारे, देना०६वर्ग 46 गाथा। पिट्ठपणग न०(पिष्टपचनक) सुरार्थ पिष्टपचनकं यत्र सुरासन्धानाय पिष्ट | पिणाइ पुं०(पिनाकिन्) शिवे, “सूली सिवो पिणाई, थाणू गिरिसो भवो पच्यते तत् पिष्टपचनकम्। भाजने, जी०३प्रति०१अधि०२उ०। संभू।'' पाइ०ना० 21 गाथा। पिट्टि खी०न०(पृष्ठ) “स्वराणां स्वराः प्रायोऽपभ्रंशे" ||8/4 / 326 // पिणाई (देशी) आज्ञायाम्, देवना० ६वर्ग 48 गाथा। इत्यकारस्येकारः / प्रा० ४पाद / "वेमाञ्जल्याद्याः स्त्रियाम्" / पिण्णाग पुं०(पिण्याका) खले, सूत्र० २श्रु०६अ। आचा० / / 8 / 1 / 35 / / इति स्त्रीत्वं वा। पिट्टी, पिट्ट। प्रा०१पाद। शरीराङ्ग भेदे, पिणिया स्त्री०(पिन्निका) ध्यामकाऽऽख्ये गन्धद्रव्ये, उत्त० ४अ०। प्रश्न पिण्ही (देशी) क्षामनि कृशे, देवना०६वर्ग 46 गाथा। पिट्ठिचंपा स्त्री०(पृष्टिचम्पा) चम्पासमीपनगरीभेदे, आ०म० अ० / पित्त न०(पित्त) मायुनामके शरीरस्थधातुविशेषे, प्रव०३८ द्वार / ज्ञा०। आ००। कर्म०। प्रश्नका ध०। आचा०ा तल्लक्षाणं च-"परिस्रवस्वेदविदाहरागाः, पिट्ठिमंस पुं०(पृष्ठमांस) परोक्षस्य दूषणाऽऽविष्करणे, प्रश्न०२आश्र द्वार। वैगन्ध्यसंक्लेदविपाककोपाः / प्रलापमूभ्रिमिपीतभावः, पित्तस्य "पिट्टिमंसं नखाइजा।" पृष्ठमांसं परोक्षदोषकीर्तनरूपंन खादेन भाषेत। कर्माणि वदन्ति तज्ज्ञाः " / / 1|| स्था०४ठा० ४उ०। दश०अ०1 पित्ततो अव्य०(पित्ततस्) पित्तोदये, व्य०३उ०। पिट्ठिमंसिय पुं०(पृष्ठमासिक) पराङ्मुखस्य परस्यावर्णवादकारिणि, | पित्तमुच्छा स्त्री०(पित्तमूर्छा) पित्तनिमित्त मूर्छा पित्तमू / पित्तोद्रेके, स०२०समा अगुणभाषिणि, दशा०१०। आव०। व्य०२उ०। पित्तप्राबल्याद् मनाङ् मूर्खायाम, भ०१श०१उ०आव०| पिट्ठिवंस पुं०(पृष्ठवंश) पृष्ठमध्यवंशके, ग०१अधि०। पित्तसंक्षोभे, आ०चू०५ अ०व्या पित्तसंक्षोभादीषन्मोहे, ध०२अधिo पिट्ठी स्त्री०(पैष्टी) ब्रीह्यादिधान्यक्षोदनिष्पन्नायां सुरायाम, 020 / पित्तसोणिय न०(पित्तशोणित) पित्तप्रधाने, शोणिते, स्था० ५ठा०२उ01 पिडग न०(पिटक) वंशमये पात्रे, "भोयणपिडयं करेइ!" भोजनस्था- | पित्तिय पुं०(पितृव्य) पितृभ्रातरि, "भगवओ महावीरस्स पित्तिए सुपासे। ल्याधारभूतं वंशमयं पात्रं पिटक, तत्करोतीत्यर्थः / ज्ञा० १श्रु०२अ०। कल्प १अधि०५क्षण। आचाo" "गणिपिडए।'' गणिन आचार्यस्य पिटकमिव पिटकम् / वणिज इव / पैत्तिक त्रि०पितरोगजे, तंग सर्वस्वस्थानं गणिपिटकम् / स्था० १०ठा०। औ०। सूत्र०ा अनु०। बृ०। / | पित्तिवस त्रि०(पितृवश) पित्रायत्ते "जाया पित्तिवसा नारी, ढत्ता नारी भ०। स०। चन्द्रद्वये सूर्यद्वये च द्वौ चन्द्रौ द्वौ सूर्यो एकं पिटकमुच्यते। | पतिव्वसा।" व्य०३उ०।