________________ पास 104 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 5 पासंड पडिममिमं संगिहिअ, निअनयरमुवागयस्स कण्हस्स। भवेहिँ वासुदेव-तणाभिसेओसवो विहिओ॥२८॥ कण्हनरिदेण तओ, मणिकंचणरयणरइअपासाए। सत्तयवसेसयाई, संठाविय पूइआपडिमा।।२६।। जाए जायवजाई-एलए देवा उदारवइदाहे। सामिपद्दावा देवा-लयम्मि न हु पावगो लग्गो।।३०|| सद्धिं पुरीइ तइया, जलनिहिणा, रुइरमंदिरसमेओ। लोललहरीकरेहि, नाहो नीरंतरे नीओ // 31 // तक्खयनागिंदेणं, तइआ रमणत्थमुरगरमणीहिं। तत्थाऽऽगएण दिहा, पहुपडिमा पावनिद्दलणी // 32 // पमुइअमणेण तत्तो, नायबहूविहिअनट्टकलहट्ठ। महया महेण महिआ, जाव सिवाई वाससहसाई॥३३॥ वरुणोऽवरहरितवई, तहेव सरसायरं पलोअंतो। तक्खयपूइजतं, पासइ तिहुयणपहुं पासं॥३४|| एसो सो गोसामी, जो सुरनाहेण पूइओ पुयिं / इम्हि मज्झ वि जुजइ, सहायणं सामिचलणाणं // 35 / / चिंतिअमत्थमहीण,पावइ सेवइ जिणेसमणवरयं। जाव उवच्छरसहसा, ठिआ य अह तेण समएणं // 36 / / सिरिवद्धमाणजलए, तिलए लोअस्स भरहखित्तम्मि। अविरलगोपूरेण, मिचिंते भव्वसस्साई॥३७।। कतिकलाकलुसीकय-सुरपुरपउमाइ कतिनयरीए। वसइसरसत्थवाहो, धणेसरो सत्थबाह त्थि।।३८|| सो अन्नया महिडभी, विणिग्गओ जाणवयजत्ताए। संजत्तिअवयजुत्तो, सिंहलदीवम्मि संपत्तो / / 3 / / तत्थ विटप्पिअपणगण-मागच्छंतस्स तस्स वेगेण। पवहणथंभो सहसा, जाओ जलरासिमझम्मि / / 40 / / विमणमणो जा चिंतइ, पयडीहोऊण सासणसुरी ता पउमावई पयंपई, मा बीहसु वत्थ ! सुण वयणं / / 41 / / अहिणिम्मियमहिमोसो, महिमोहमरदृमहणो भद्द !! इह नीरतले चिट्टइ, पासजिणो नयसु सट्टाणं // 42 / / देवि ! कहं मह सत्ती, जिणेसगहणे समुद्दजलमूला। एवं धणेण कहिए, तो भासइ सासणा देवी // 43 // पविस मह पुट्ठिलग्गो, कड्डइसु पहुमामसुत्ततंतूहि। आरोविय तं सावय, वुट्टिसु जलहिम्मि झ त्ति पुणो॥४४|| काऊण सव्वमेयं, लोगुत्तमनायगं गहेऊण। सजायहरिसपगरिस-पुलइअगचो महासत्तो // 45 // खणमित्तेण सठाणं, समागओ परिसरे पडकुडीओ। रइआविअ जाविड्डिओ.एइ पुणो सम्मुहो ताव।।४६|| गंधव्वगीइवाइअ-रवेण सुरवरनारिधवलेहि। बहिरिअककुहो नाहं, दाणं दितो पवेसेइ॥४७|| स्ययालयसच्छायं, पासायं कारिऊण कंतीए। विणवेसिअभवणगुरुं, तिव्वं पूएइ भत्तीए।।४८॥ कालंतरमावण्णे, धणेसरे पउरनायरवरेहिं / वाससहस्से पहुणो, पूइज्जंतस्स वक्ते॥४६॥ देवाहिदेवमुत्तिं, परिअररहिअंतया य कंतीए। मेलियरसस्स थंभण-निमित्तगायासमग्गेणं / 50|| कलिअकलाकालत्तय-पालित्तयगणहरोवएसाओ। नागज्जुणे जा इंदो, आणेही अप्पणो ठाणे // 51 / / जोइणिगए कयत्थो, तत्थं मुत्तूण नाहमंडवीए। रसथंभाओ होही, थंभणय नाम तित्थं ति / / 5 / / उच्छिन्नवंसयालं-तरहिओ सुरहिखीरहविअंगो। अकंतखिइनिमग्गो,जणेण जरहु त्ति कयनामे / / 53 / / अवि परसइ तयवत्थो,जिणनाहो पणसयाइँ वरिसाणं। तयणु धरणिंदनिम्मिअ-सन्निज्झो विइअसुअसारो // 54 / / सिरिअभयदेवसूरी, दूरीकयदूरिअरोगसघाओ। पयड तित्थ काही, अहीणमाहप्पदिप्पंतं 55 / / कंतीपुरीए भयवं, पुणो गमिस्सइ तओ अजलहिम्मि। बहुविहनयरेसु अगडुव, अगणियमहिमाइ दिप्पंते॥५६॥ अह कोती अणागय-पडिमाठाणाण साहणसमत्थो। जइ विहुसो सहसमुहो, हविज्ज रसणासयसहस्सो।।५७।। पावाचंपऽट्टावय-रेवयसमेअविमलसेलेसु। कासीनासिगमिहिला-रायगिहप्पमुहतित्थेसु // 58|| जत्ताइ पूअणेण, दाणेण ज फलं लहइ जीवो। तपासपडिमदंसण-मित्तेण पावए इत्थ।।५।। मासक्खमणस्स फलं, वंदणबुद्धीइ पाससामिस्स। छम्मासिअस्स पावइ, नयणपहगयाइ पडिमाए। 60 / / निरक्चो बहुतणओ, धणहीणो धणयसंनिहो होइ। दोहगो विहु सुहओ,पहु दिट्ठीए जणो दिहा / / 61 // मुक्खत्तं कुकलतं, कुजाइजम्मो कुरुवदीणतं / अन्नभवे पुरिसाणं, नहुँति पहुपडिमपणयाणं / / 6 / / अडसट्टितित्थजत्ता-कए भमइ कह विमोहिओ लोओ। तेहिंतोऽणतगुण, फलमप्पिंते जिणे पासे // 63 / / एगेण विकुसुमेणं, जो पडिमं महइ तिव्यभावो सो। भवालिमउलिमउलिअ-चरणो चक्काहिवो होई॥६४|| जे अट्टविहं पूअं.कुणंति पडिमाइ परमभत्तीए। तेसिं देविंदाई-पयाइँ परपंकजत्थाई॥६५॥ जो वरकिरीडकुंडल केउराईणि कुणइ देवस्स। तिहुअणमउडो होऊ-ण सो लहुं लहइ सिवसुक्खे॥६६॥ तिहअणचडारयणं, जणनयणामयसलागिगा एसा। जेहिं न दिट्टा पडिमा, निरस्थय नाण मणुयत्तं // 671 सिरिसंघदासमुणिणो, लहुकप्पो निम्मिओ अपडिमाए। गुरुकप्पाओ अ मया,संबंधलवे समुद्धरिओ॥६८॥ जो पढइ सुणइ चिंतइ, एयं कप्पं स कप्पवासीसुं। नाहो होऊण भवे, सत्तमए पावए सिद्धिं // 66 // गिहचेइअम्मि जो पुण, पुत्थयलिहिअंपिकप्पमच्चेइ। सो नारयतिरिएसुं, निअमा लहई अचिरवोहिं / 70|| हरिजलहिजलणगयगया-चोरोरगगहनिवारियारिपेयाणं / वेयालसाइणीण, भयाइँ नासंति दिणमणिणो / / 71 // भव्याण पुन्नसोहा-पाणीआइन्नहिअयठाणम्मि। कप्पो कप्पतरू इव, विलसंतो वंछिअंदेउ॥७२॥ जावइ मेरुपईवो, महिमल्लिअओ समुद्दजलतिल्ले। उज्जोअतो चिट्टइ, नरखित्तं ता जयउ कप्पो // 73 // " इति श्रीपार्श्वनाथस्य कल्पसंक्षेपः। ती०५कल्प। अक्षिविशो-भयोः, देना०६वर्ग 75 गाथा। *पश्य त्रि० पश्यतीति पश्यः। द्रष्टरि, आचा०१श्रु०२अ०३उ०। पासंड न०(पाषण्ड) व्रते, अनु० / अन्यदर्शिनि परिव्राजकाऽऽदी, पुंग उत्त०२३अग * तत्कल्पः थंभणय शब्दे चतुर्थभागे 2381 पृष्ठे गतः।