________________ पल्लट्ट 726 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 5 पवंचण पल्लट्ट धा० (पर्यस्) पतने, घाते, विक्षपे च / वाच / पर्यसः पलोट्टपल्लट्ट- इतिर्यस्यल्लः / उष्टाऽऽदिपृष्ठोपरिरथे विशिष्टसंस्थाने आसनविशेषे, प्रा० पल्हत्थाः // 8 / 4 / 200|| इति सूत्रेण पर्यस्यतेः पल्लट्टाऽऽदेशः पल्लट्टइ' २पाद। पर्यस्यति / प्रा० 4 पाद। पल्लिय त्रि० (पल्लित) आक्रान्ते, नि०यू० 2 उ० / "अतिणिद्यापपल्लट्टिउं अव्य० (परिवर्त्य) स्वकीयकोद्रवीदनाऽऽदिसमर्पणे न परकीय- लिओ।' अतिनिद्राथस्तः / नि०चू० 1 उ० / पाल्यन्तेऽनया शाल्योदनाऽऽदि गृहीत्वेत्यर्थे, पञ्चा० 13 विव०। दुष्कृतविधायिनो जना इति पल्ली नैरुक्तो विधिः / उत्त० 30 अ०। पल्लत्थ नि० (पर्यस्त) "पर्यस्त-पर्याण-सौकुमार्ये लः" | पल्ली स्त्री० (पल्ली) वृक्षवंशाऽऽदिगहनाऽऽश्रितेप्रान्तजनस्थाने, उत्त० ||श६८।। इति र्यस्य नः। प्रा० 2 पाद / “पर्यस्ते थटौ" 30 अ०। नि०चू०। / / 8 / 2 / 47 / / इति स्तभागस्य थकारटकारी। प्रा०२ पाद / प्रक्षिते, | पल्लीण त्रि० (प्रलीन) प्रकर्षेण लीनः प्रलीनः / कल्प०१ अधि०४ विक्षिप्ते, पर्वतशैलाद् गण्डशैल इव स्वाश्रयाच्चलिते, प्रश्न०४ सम्ब० क्षण। बहुतरं लीने, जीत०। द्वार। "करयलपल्लत्थमुहे।'' करतले पर्यस्तं मुखं यस्य स तथा। सूत्र० पल्लीवइपुं० (पल्लीपति) पल्लीराजे चौरपत्यादौ, स्था० 4 ठा० 4 उ०। 2702 अ०। पर्यस्ते, पर्यस्तशब्दभवे / देखना० 6 वर्ग 14 गाथा। पल्लोट्ट त्रि० (पर्यस्त)"क्तेनाप्फुण्णाऽऽदयः" ||814 / 258 / / इति पल्लत्थयंत त्रि० (पर्यस्तयत्) पर्यस्तं कुर्वति. 'अण्णया वग्गणाणि निपातः। विक्षिप्ते, प्रा० 4 पाद। पवत्थयंतीए रयणाणि जायाणि।" निचू०१ उ०। पल्हत्थ त्रि० (पर्यस्त) "क्तेनाप्फुण्णाऽऽदयः" ||8 / 4 / 258|| इति पल्लय पुं० (पल्ल्यक) अनुत्तरोपपातिकदशाना दशमाऽध्ययनोक्तवक्त निपातः / पतिते, विक्षिप्ते, प्रा०४ पाद। व्यताके साधौ, स्था० 10 ठा०। पर्यस् धा० विक्षेपे, 'पर्यसः पलोट्ट-पल्लदृ-पल्हत्थाः '' पल्लल न० (पल्वल) लघुतडागे, 'पल्ललं अखायतल्लं / ' पाइ० 130 ||6|200 / / इति सूत्रेण परिपूर्वकस्यासूधातोः पर्यसादेशः / पल्हगाथा पुं०। प्रल्हादनशीले जलस्थानविशेषे, भ०५ श०७ उ०। प्रज्ञा० / त्थइ।' पर्यस्यति। प्रा०४ पाद। पल्हत्थिय त्रि० (पर्यस्तित) पर्यस्तीकृते, सर्वतः क्षिप्ते, ज्ञा० 1 श्रु० ज्ञा० / प्रश्न १६अ। पल्लव पुं० (पल्लव) संजातपरिपूर्णप्रथमपत्रभावरूपे वराड्कुरे, जी०३ प्रति० विरचित त्रि० विरविते, "पल्हत्थियमुलंडियं।' पाइ० ना०२०१ गाथा। 4 अधि०। स०। औ०। जी०। "किसलयाइँ पल्लवा पवाला य।" पाइ० पल्हत्थिया स्त्री० (पर्यस्तिका) जनोपरि वस्त्रवेष्टनाऽऽत्मके, उत्त०१ ना० 138 गाथा / रा० / जं० / किशलये, ज्ञा०१ श्रु०१ अ०। अ०। जडोपरि पादमोचने, उत्त०१ अ० / पर्यव पुं० प्राकृतत्वात्तथाऽऽदेशः। वस्तुधर्मे, स० 4 अङ्ग। पल्हत्थियावट्ट पुं० (पर्यस्तिकापट्ट) योगपट्टे,बृ०३ उ०। पल्लविअ त्रि० (पल्लवित) लाक्षारसरक्ते, "लक्खारुणि पल्लविअं।" पल्हाइय त्रि० (प्रह्लादित) आपन्नसुखे, आचा०१ श्रु०३ अ०१ उ०। पाइ० ना०२६८ गाथा। पल्हाय पुं० (प्रल्हाद) "हो ल्हः" ||8|2|76 / / सूत्रेणास्य पल्लविय त्रि० (पल्लवित) संजातपल्लवे, जी०३ प्रति०४ अधि० लाक्षा हकाराऽऽक्रान्तलकारस्य लकाराऽऽक्रान्तो हकारः / प्रा०२ पाद। "अहो रक्ते, न० / देवना० 6 वर्ग 11 गाथा। अभिरूपा एता'' इत्यादि विकल्पजे आनन्दे, उत्त०१६ अ०। पल्लवंकुर पुं० (पल्लवाड्कुर) सञ्जातपरिपूर्णप्रथमपत्रभावरूपेऽड्कुरे, पल्हायजणण न० (प्रह्लादजनन) प्रह्लादोत्पादेशीतीभवने, व्य०१० उ० / जी०३ प्रति०४ अधि०। अन्तःकरणस्य हर्षोत्पादके उत्त०१६ अ०। पल्लवग्ग न० (पर्यवाग्र) पर्यवप्रमाणे अभिधेयाऽऽदितद्धर्मसंख्याने, यथा पल्हायणिज्ज त्रि० (प्रह्लादनीय) आह्लादके, ज्ञा०१ श्रु०१ अ० "परित्ता तसा।'' इत्यादि। स० 4 अङ्ग। पवअ पुं० (प्लवग) वानरे, "साहाभिओ वलिमुहो, पयंगमो वानरो कई पल्लवगाहिणी स्त्री० (पल्लवग्राहिणी) "न य कत्थइ निम्मातो, ण य पवओ।" पाइ० ना० 43 गाथा। पुच्छइ परिभवस्स दोसिणं। वत्थीव वायपुण्णो, फुट्टइगामिल्लगविपक्खेसु पबंग पुं० (प्लवग) वानरे, पाइ० ना० 43 गाथा। / / 375 // " इत्युक्तलक्षणे दुर्विदग्धपर्षभेदे, वृ०१ उ०२ प्रक० / पबंगम पुं० (प्लवङ्गम) वानरे, "साहामिओ वलिमुहो, पयंगमो वाणरो पल्लवाय (देशी) क्षेत्रे, देवना०६ वर्ग 26 गाथा। कई पवओ।" पाइ० ना० 43 गाथा। पल्लविल्ल पुं० (पल्लव) "स्वार्थे कश्च वा" ||8/2 / 164| इति / पवंच पुं० (प्रपञ्च) प्रपञ्च्यते बहुधा नटवद्यस्मिन् स प्रपञ्चः / संसारे, सूत्रेण स्वार्थ इल्लप्रत्ययः / किशलये, प्रा०२ पाद / जातिजरामरणरोगशोकाऽऽदिके. सूत्र०१ श्रु०७ अ०। विस्तारे, प्रश्र० पल्लाउत्त पुं० (पल्ल्यागुप्त) वंशकटाऽऽदिकृते धान्याऽऽधारविशेष, स्था० 1 आथ० द्वार। औ०। पर्याप्तापर्यातकसुभगाऽऽदिद्वन्द्वविकल्पे, आचा० 3 ठा०१ उ०। 1 श्रु०३ अ०३ उ०। बृ०॥ पल्लाण न० (पर्याण) पर्यस्त-पर्याण-सौकुमार्ये लः / / 8 / 268 / / | पवंचण न० (प्रपञ्चन) विप्रतारणे, प्रश्न० 1 आश्र० द्वार।