________________ पमायट्ठाण 492 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 5 पमायट्ठाण उवेइ दुक्खोहपरंपराओ। पदुट्ठचित्तो य चिणाइ कम्म, जं से पुणो होइ दुहं विवागे |7|| रसे विरत्तो मणुओ विसोगो, एएण दुक्खोहपरंपरेण / न लिप्पई भवमज्झे वि संतो, जलेण वा पोक्खरिणीपलासं // 73|| कायस्स फासं गहणं वयंति, तं रागहेउं तु मणुन्नमाहु। तं दोसहेउं अमणुन्नमाहु, समो य जो तेसु स वीयरागो // 74|| फासस्स कायं गहणं वयंति, कायस्स फासं गहणं वयंति। रागस्स हेउं समणुन्नमाहु, दोसस्स हेउं अमणुन्नमाहु // 75 / / फासेसु जो गिद्धिमुवेई तिव्वं, अकालियं पावइ से विणासं / रागाउरे सीयजलावसन्ने, गाहग्गहीए महिसे वारन्ने // 76|| जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं, तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं / दुदंतदोसेण सएण जंतू, न किंचि फासं अवरज्झई से 1 // 77|| एगंतरते रूइरंसि फासे, अतालिसे से कुणई पओसं! दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले, न लिप्पई तेण मुणी विरागो // 78|| फासाणुगाऽऽसाऽणुगए य जीवे, चराचरे हिंसइऽणेगरूवे। चित्तेहिँ ते परितावेइ बाले, पीलेइ अत्तट्ठ गुरु किलिट्टे॥७६|| फासाणुवाएणा परिगहेण, उप्पायणे रक्खणसन्निओगे। वए विओगे य कहं सुहं से, संभोगकाले य अतित्तलाभे? ||8|| फासे अतित्ते य परिग्गहे य, सत्तोवसत्तो न उवेइ तुडिं। अतुट्ठिदोसेण दुही परस्स, लोभाऽऽविले आययई अदत्तं / / 81 / / तण्हाऽभिभूयस्स अदत्तहारिणो, फासे अतित्तस्स परिग्गहे य। मायामुसं वड्डइ लोभदोसा, तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से // 2 // मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य, पओगकाले य दुही दुरंते। एवं अदत्ताणि समाययंतो, फासे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो॥८३|| फासाणुरत्तस्स नरस्स एवं, कत्तो सुहं होज्ज कयाइ किंचि? तत्थोवभोगे वि किलेसदुक्खं, निव्वत्तई जस्स कए ण दुक्खं ||84 // एमेव फासम्मि गओ पओसं, उवेइ दुक्खोहपरंपराओ। पदुद्दचित्तो य चिणाइ कम्म, जं से पुणो होइ दुहं विवागे / / 8 / / फासे विरत्तो मणुओ विसोगो, एएण दुक्खोहपरंपरेण। न लिप्पई भवमझे वि संतो, जलेण वा पोक्खरिणीपलासं 186|| मणस्स भावं गहणं वयंति, तं रागहेउं तु मणुन्नमाहु। तं दोसहेउं अमणुनमाहु, समो य जो तेसु स वीयरागो।।८७|| भावस्स मणं गहणं वयंति, मणस्स भावं गहणं वयंति। रागस्स हेउं समणुन्नमाहु, दोसस्स हेउं अमणुन्नमाहु / / 88|| भावेसु जो गिद्धिमुवेइ तिव्यं, अकालियं पावइ से विणासं। रागाउरे कामगुणेसु गिद्धे, करेणुमग्गावहिए व्व नागे ||8|| जे यावि दोसं समुवेइ तिव्वं, तंसि क्खणे से उ उवेइ दुक्खं / दुदंतदोसेण सएण जंतू, न किंचि भावं अवरज्झई से||१०|| एगंतरत्ते रूइरंसि भावे, अतालिसे से कुणई पआस। दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले, न लिप्पई तेण मुणी विरागो ||1|| भावाणुगाऽऽसाऽणुगए य जीवे,