________________ भरह 1366 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 5 भरह ते चेव छत्तीसनिवद्धनाहा, तयंतरा तिन्नि सए ससद्धे॥३१६॥ सूयारयाणं परमाण हिट्ठो. अट्ठारसं सेणिपसेणईओ। लक्खे चुलस्सी हयमाइयाणं, तो कोडिओ छन्नवई नराणं // 317|| अन्ने य राईसरसत्थवाह __ माडंबिकोडुबिनरे बहू य। भुसंडिखग्गद्धणुदंडहत्थ मयासगारेहिँ सवेसराहिं // 318|| सचिंधमालाधयधारएहिं. यहूहिं लोएहणुगम्ममाणे। चक्काणुमग्गेण पयाइ राया, एवं सुरिंदोवमरिद्धिसारो॥३१६।। वसं मडवाइसु अड्डदित्तो, सुहं सुहेणं तु कमेण पत्तो। सुरायहाणीऍ विणीऍ बाहिं, किंचऽट्ठमं पोसहमाइ सव्वं // 320 / / जा देवनाहोऽत्थ गइंदरूढो, ससिण्णआसव्वबलोववेओ। भोत्तुं निहीमिचचओ पहिहो. विसेइ जा तंतु सरायहाणिं // 321 // विणीयनाम अमरा पहिडा, कुणंति ते सव्वपएसरम्म। सिन्नोवसिन्नोसियचिंधमालं, निसम्म रायं भरहं विसंतं॥३२२।। नारीनराणं बहवे सहस्सा, सकोउया वद्धजवा समागया। छुट्टतकेसव्वतुट्टहारा, आबद्धखग्गाउ गलंतगत्ता / / 323 // चलंतगंडाऽऽहयकुंडलंता, पीणत्थणदोलिरतुट्टहारा। ल्हसंतओ सत्तरचारुदेहा, अणुत्तरीया अबला अहन्ना // 324 // अकुंडलाऽगंडियगंडदेसा, विलुत्तसुत्ता रसणा निमगा। अडितपीणत्थणदंसियस्स, अछूढवाहेगसियंसकंचू॥३२५।। सुनूपुरगळ्यपायचारु. चंचच्चलंतूरविखित्तवच्छा। लसद्धरती वसणाइ रम्मा, विलोलदिट्टी वसणऽद्धहारा / / 326 // चलंति वगंति चलति केई, खलंति उटुंति पडति केई। हसंति भंति भणंति केई, मे मुंच मग्गं सर ओसराहि॥३२७।। सखे! सखे! केसवयं इमंते, सखे! सखे! रोयइ डिभमेयं। सखे! सखे! गिन्हइ केयमेयं, सखे ! सखे ! पस्म निवं वयंत॥३२८|| एवं जणे आउलआउलेया मिसंचरतेय पहे वएसु। जाय असंचारमिण सबाहिं, गेह गिहाओ नयरं समत्तं // 326 / / एवंविहे तोरणमालसोहे, मंचाइमंचक्कलिए जणड्डे। पासायमालवणवीहिवच्छ सिंगासरूडप्पहुलोयसोहे।॥३३०|| सुरिंदपालोपमरिद्धिसार, पविन्समाणस्स पुरस्स रणो। अच्छच्छिया कामुयरूपसिद्धि, विलोयमाणं मुहए त्थऽलाया // 331|| अन्नत्त खंधागयबाहुदेहा, अन्नत्तदायंतभिरामवच्छ। अन्तवत्थुट्ठियचंचलक्खा, अन्नत्त दायंतमणोभिरामा // 332|| अहो अहो संदणजोहुजोहा, अहो गयारूढनरिंदसोहा। अहो सुवेसो नरनाहु एसो, अहो सुकेसो य इमो नरीसो॥३३३|| अहो इमं चिंधवरं अपुवं, अहो इमं जाणवरं अपुव्वं / अहो इमा संजइया अपुव्वा, अहो इमा वेसहिया अपुव्वा // 334|| भणंति तं राय! चिरं चियाहि, भणति तं राय! जय जिणाहि। भणति तं राय! सुही भवाहि, भणति तं राय! अरी हणाहि // 335 / / केई भणति पवरा स माया, ज ओजए एस कुलप्पईवो। पुत्तो वसे भारहखित्तसामी, सुरासुराई दढणत्तसारो॥३३६|| अन्नाऽवला रूवविमोहियप्पा, धन्ना जए एस सयं सचक्खू। मिलक्खुवामक्खिविहव्वदिक्खा गुरू गह कासि करस्स कंतो॥३३७|| मुखस्सहस्सजुवथुव्वमाणो, अगंजलीओय पडिच्छमाणो। दायजमाणे सहसंगुलीहिं, उप्पिज्जमाण नयणंजलीहिं||३३८|| सुविद्धनारीगणविद्धविंदा, आसीसरावारवपुन्नकन्नो। चंचच्चलच्चीवरचारुपत उद्धव्वमाणो नयणाभिरामो // 336 / / इओ तओ चंचलाखित्तदिट्टी, जयजयाराववरे सुणंतो। सुरिंदनाहो व्व विणीए मज्झ,