________________ भरह 1398 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 5 भरह कहेमि गाहाहिँ ठियाहिँ गच्छे / / 261 / / तेसिं सरूवं च सृठाणगाई. तन्नायमाण.................. (?) सव्वं पि आवस्सगचुन्निमज्झे, तह ट्टियाइं च जहोवइ8 / / 262 / / नेसप्पे 1, पंडुयए 2, पिंगलए ३,सव्वरयण 4, महपउमे५ / काले य 6, महाकाले 7. माणवगे 8, महानिही संखे 6 // 263 / / नेसप्पम्मि निवसा, गामागरनगरपट्टणाण च। दोणमुहमडंबाणं, खंधावारावणगिहाणं (1) // 264|| गणियरस य उप्पत्ती, माणुम्माणस्स जं पमाणं च। धन्नस्स य बीयाण य, निप्फत्ती पंडुए भणिया (2) // 26 // सव्वा आभरविही, पुरिसाणं जा य होइ महिलाणं। आसाण य हत्थीण य, पिंगलगनिहिम्मि सा भणिया (3) // 266|| रयणाइँ सव्वरयणे, चउदस विवराइँ चक्कवट्टिस्स। उप्पजंते एगिं दियाइँ पंचिंदियाई च (4) / 267|| वत्थाण य उप्पत्ती, निप्फत्ती चेव सव्वभत्तीणं। रंगाण य धोव्वाण य, सव्वा एसा महापउमे (5) // 268|| काले कालण्णाणं, सव्वपुराणं च तिसु वि वसेसु। सिप्पसयं कम्माणि य, तिन्नि पयाए हियकराणि (6) 266| लोहस्सय उप्पत्ती, होइ महाकालें आगराणं च। रुप्पस्स सुवनस्सय, मणिमुत्तिसिलप्पवालाणं (7) // 300|| जोहाण य उप्पत्ती, आभरणाणं च पहरणाणं च। सव्वा यजुद्धनीई, माणवगे दंडनीई य (8) // 301 / / नट्टविहि नाडगविही, कव्वस्स य चउव्विहस्स उप्पत्ती। संखे महानिहिम्मी, तुडियंगाणं च सव्वेसिं (6) // 302 // चक्कट्ठपइट्ठाणा, अठुस्सेहाय नव स विक्खंभा। बारसदीहा मंजू ससंठिया जन्हवीइ मुहे (10) // 303 / / वेरुलियमणिकवाडा, कनकमया विविहरयणपडिपुन्ना / ससिसूरचक्कलक्खण, अणुसमवयणोववत्ती या॥३०४॥ पलिओवभट्टिईया, ___ निहिसिरिनामा य तेसु खलु देवा / जेसिंते आवासा, अच्छेला आहिवचा य (11)|305 / / एएते नव निहिरयणा, पभूयधणरयणसंचयसमद्धिा। जे वसमुवगच्छंती, भरहाहिवचक्कवट्टीणं (12) // 306|| तेसिं निहाणेण महं तहेव, तयंतिए सेन्नवइंभणाइ। गिण्हाहि गंगानइनिक्खुडे वि, पुव्विल्लए सिंधुनइक्कमेण!|३०७|| तहेव सव्वं पकरितु एइ, जा सव्वअग्घे पडिअप्पईहु। सक्कारसम्माणकमेण मुक्को, सयं च जा भुंजइ भोयभोए॥३०८|| अहऽन्नया दक्षिणपच्छिमिल्ले, दिसाएँ भागम्मि पयाइ चकं / विणीयमसाज सरायहाणिं, नहंगणाऽऽरूढपहं पवन / / 306 / / तनाउ राया वि पहट्टचित्तो, कोडुम्बिए सदिउ आणावेइ। सज्जेह भो ! वारणरायभूयं, हत्थिं ससेन्नं सबलं सजोहं॥३१०।। तओ सयं मजणगेहमासु, विसित्तु न्हाउं सुइसुद्धगत्तो। अलंकिओ भूसियसव्यगत्तो.. सुकप्परुक्खं पिव सव्वइट्ठो॥३११|| मणोहरो सव्वजणंदयारी, इंदो व एरावणमत्थयत्थो। सव्वाह इड्डीऍ जुईऍ जुत्तो, चक्काणुमग अणुजाइ जाव।।३१२॥ सेट्ठीसहस्सेहिँ पसाहिऊण, वासाण सव्वं भरह समिद्धो। निहीहिँ सेणारयणेहिं राय सहस्सबत्तीसपमाणएहिं // 313 // तेएण रण्णो पुरओ पविट्ठ, अट्ठए दप्पणमंगलाई। तो कुंभभिंगरझयाइछत्ते, चक्काइए तो निहिणो महंते॥३१४|| तो सोलसे देवसहस्सए य, बत्तीसरायाण सहस्सएय। कमेण तो सेण्णवइं पगिट्टे __ गाहावई वुड्डपुरोहियं च / / 315 // बत्तीसकल्लाणउदुस्सहस्से, तोसिसि कल्लाणिजणव्वयाणं।