________________ भरह 1367- अभिधानराजेन्द्रः - भाग 5 भरह तओ पडिच्छित्तु नरीसरण, ममाणभावाउन भाइयव्व। सम्माणिउंसंगतनेहसारं, विसज्जिया वुत्तुमिणं सुवक्कं // 268 // सेणाहियो पुवकमेण खंड, मनिवखुडं सिंधुसमागरत। पच्छिल्लयं साहिउ पद पासे, रणो सयं भुंजइ भोव लो (भो) ए॥२६६।। अहन्नया च कवर क्याई, पुवुम्मुहे चुल्लहिमाचलस्स। नितंबभाए अह दक्खिणम्मि,. जावडुमंतस्स कए करेवि॥२७०।। तयंसिए सोमदिसाए जाइ, उप्पायगं पव्वयतो तिखुत्तो। फुसेइसीसेण रहस्स पच्छा, हए निगिण्हित्तु खिवेइ उप्पिं / / 271 / / सरं वरं गंतु विसत्तरच, तो जोमणाण गिरिनायगस्स। गेहस्स मेराइ पडेइझ त्ति, पुव्वतमालावसएइसिग्घा२७२।। तंचेव सव्वं अह उत्तरिल्लो, दिसाहिवं देवणियाण भत्ते। सव्वोमहिं देइय अंढण च. तं चेव मेसं अह इ फूडे।।२७३।। रहम्मि रुढो उसहावलाम्म, तोतं तिक्खुत्तो फुसई रहेण रह ठयित्ता अह कामणीए, सनामगं पुव्वतडे लिहेइ॥२७४|| उस्सप्पिणीए तहयागरस्स, इमाएँ भागे अह पच्छिमम्मि। सचक्कवट्टी परमो नरीसो, नामेण एत्थं भरहो अहं तु॥२७५|| तओ रह वालिय खंधवारं सयं समागम्मतहेव सेसा। नमेति जूहो गिहनायगास, देवचणा चक्कवरं पयाइ॥२७६।। वेय हुत्तं अह दक्खिणाए, दिसाएँ आगंतु महामहेण। वेयड्डवासी विणमी मणम्मि, जा विजाहरलोयनेयं / भत्तट्ठमं पोसहमंदिरम्मि, तयावसाणे विनमी नरिदे॥२७७।। धुचोइए दिव्यमई पहिडे, जीयं ति काउ नरविंयजुत्ते। सिग्धं समागच्छइघेत्तु अग्धं, पमाणमाणज्जयते य गेहं / / 278|| रूवाहियं लक्खणलक्खिक्खं, अवट्टियं जोयणजोएँ निच्चं। सिंगारआगारसुचारुवेस लावन्नलीलाऽलसचारुगत्तं / / 276 / / चंदाणणं नीरयपत्तनेत, कामालय सव्वसृदाणखेत्तं / मणोणुगं भारधीपवित्त, तमिच्छियं से नमिखेयरिंदो॥२०॥ गहाय नाणमणिअंबरत्थो, जएण बद्धाविउदो विते य। भणति अम्हे भवउव्वसम्मि, भणति अण्णे अह* वासराई।।२८१|| * गयाइँ जायं समरं महतं, तयतिए तो अबला अथामा। केई करे अट्टमभत्तमंतो, दाणं अलंकारिभंडगस्स // 28 // अन्नं तहा जा महिमं करेमि, अह ब्भया सेणवइंभणाइ। साहेह गंगापुरनिक्खुड सो, एयं ति सिंधूएँ गमेण सव्वं / / 283|| पसाहिउंएइ नरीसरस्स, पासे निवेइत्तु हिओवइट्ठ। पच्छा पलोलाएँ सिहाएँ दित्तो, सिहि व्व दित्तीऍ विराजमाणो // 284|| गंगासम भुंजइ भोयभोए, तओ समेगं वरिसाण पुन्न। पहिट्ठचित्तो भरहो नरीसो, सड्डइए सव्वगुणोववेए।।२८५॥ अहन्नया चक्कहरो भणाई, सुसेणनामंकडगस्स सामि। खंडप्पवादारकवाडएउ ग्घाडेह पुव्विल्लकमेण झ त्ति // 286|| तह त्ति पुस्विल्लकमेण कट्ट, तहा जहा से तिमिसंगुहाए। उग्घाडियं तो कहए निवस्स, समेन्नए जो विसईतहेव / / 287 // तहेव सव्वं नवरं विसेसो, एसो जहा पच्छतडाउहत्तो। गया उगंगावइसागरम्मि, विसेइ खेते तह दक्खिाणिल्ले॥२८८|| ससिव्व मेहब्भवयानि गंतुं, गंगानईपच्छिमकूलदेसे। ठाउं ससेन्नो निहिलाभहे. पगिण्हई पोसहमट्ठमं पि॥२८६।। सदेवया तो य नवनिहाणा, माणिक्कमुत्तामणिहेमपुन्ना / सदेवलोओववयावहा जे. उति पुन्नोवचया तयते॥२६॥ नामाइँ तेसाण निहीण एए, पुवप्पहू गंथविवत्तियाई। जं जत्थ अत्थीतहत तहेव, * दिनान, *जातानि