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________________ भरह भरह 1391 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 5 उस्सुक्कयं सुक्ककर अदेज़, अमेजसुक्किट्ठमरप्पवेसं॥१२१।। अचडिदड तु कुदंडवज्र, विलासिणीनाडयनहरम्म / अणेगतालायरतालरम्म, कहाणपाऽऽखित्तजणेहिं किन्नं // 122 / / सुमत्तमालाउलमग्गसोह, पमोयपुण्णं नडनट्टरम्म। अट्ठाहियं चारुमहामहेण. महारिहं चककवरस्ससम्म॥१२३|| सम्माणदाणाइमहामहत्थं, काऊणिमं सव्व ममं कहेह। एवं त्ति काऊण कहंति जाव, चई वितं ताव महामहंते॥१२४।। सयाउ गेहा अभिनिक्खमाइ, तओ तितूराऽऽरवपूरियाऽऽसा / गंगानईए अह दक्खिणेणं, कूलेण जंजक्खसहस्स (जुत्त) संजुयं / / 125 / / पयाइ पुष्वाभिमुहं तु चक्क, राया य पिढे भरहाहिवो त्ति। सयं सयं साहिउमुजयंतु, छक्खंडखेत्तं भरहं इमं ति॥१२६।। कयंवपुप्फ पि व कंट्यंगो, मांडविकोडविनरे भणेइ। सजेह भो! हत्थिरहप्पहाण, पाइक्कचकं तुरयावकिन्न / / 127 // चिंधद्वयप्पंतिपरंपराहि, आपूरितासेसनह पिसेन्न। तमालकाल मयगंधलुद्ध - मुद्धालिझंकाररवाभिरामं // 128|| सिंदूरपूरारुणचच्चियंग, करेह सजं अयवारणं पि। दाऊणिमं किंकरमाणवाणं, आणत्तियं मजणगेहमासु // 126 / / तो जाइ पुव्वोइयनीऍ जाव, चंदो व्य चक्खूण सुहं जणंतो। यहाणग्गिहातो अभिणिक्खमित्तु, सेणाए जुत्तो चउरंगिणीए।।१३०।। भडेहिं सेट्टीहिय सत्थवाह राईसरामच्चतलारएहिं। उट्टाणसालाएँ गहिब्भवाए, जेणेव हत्थीरयणं पसत्थ।।१३१॥ तेणेव चाऽऽगम्म रुहेइ हत्थिं, पुव्वाचलम्मि उदए रविव्व। हारद्धहाराऽऽइविभूसियंगो, सुकुंडलुज्जोइयचारुअंगो॥१३२।। किरीडकूडब्भवचारूचंच माणिक्कमुत्ताकिरणाभिरामो। इड्वीरें दित्तीऍ जुई जुत्तो, नगाण नेय व्व विराजमाणो।।१३३।। धणो व्व चंदो वि दिप्पयंतो. सुराण मज्झेऽज्ज पुरंदरो व्व। कुरिटमालाउलछत्तछन्न नहंमाणो चामरचारुसोहो // 134 // मायगखंधोवगओ सुदिण्णो, चमूएँ जुतो चउरंगिणीए। तुरंगहेसारहचक्कचीक्का रतुंगमायंगघडाघणाए।१३५॥ पाइक्कपुक्कारयखेडखम्ग कोयंडदंडभडमीसणाए। णेयारगामागरपट्टणाणं, दोणामुहाणं णिगमागमाणं // 136 / / मडवसंवाहयखेडयाणं, पुराण साराण य पट्टणाण। आधारभूयं वसुहं जिणतो, कम कमेण रयणाइँ अग्धं // 137 / / पडिच्छमाणो व पमोयदित्त, जम्मतरोवजियपुन्नपावा। सुसाहुवेयावडिउत्थपुग्न संपुत्रबीयब्भवभाविसारो // 138 // फलेस संगिहिउकाम एव, गंगाएँ तो दाहिणकूलपत्तो। चक्काणुमग अणुगच्छमाणो, अणेगवासेसु सुहंण ठाउं॥१३६।। जेणेव तित्थं अमागहं तु. तेणेव गच्छित्तु महानरिंदो। काऊण तो जोयण वार दीहं, वित्थारओ वी नव जोअणाई||१४०|| सेण्णं तओ वट्टइ आणवेइ, करेह मे गेहवरं विसालं। सुपोसहं जत्थ करेमि तं पि, छणं करित्ता पकहेह मज्झ / / 141 // एवं भणित्ता अभिवंदिऊण, करित्तु सव्वं पकरेइ पच्छा। तओ नरिंदो गयकंधराओ, पचोरुहिता स सरीरचिटुं|१४२।। करित्तु ता पोसहमदिरम्मि, ___ गंतु पमन्जित्तु विहीऍपच्छा। रयत्तसेचं कुसयत्तणेहिं. निक्खित्तसत्तो वरबंभयारी॥१४३।। कुमारग मागहतित्थसामि, गणे करेत्ता अह ठाइ तत्थ। मुणि व्व मुत्तामणिचाउगण्णो, पसत्थचित्तो सुहझाणजुत्तो।।१४४॥ चिचा दिणे तिन्नि तओ तयंते, जलंतसूरे अडउट्ठियम्मि! निगंतु हाणं पिह मंडवाइ पवेसणाई सयलं पि कट्ट।।१४।।
SR No.016147
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri
PublisherRajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan
Publication Year2014
Total Pages1636
LanguageHindi
ClassificationDictionary
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