________________ भरह 1360- अभिधानराजेन्द्रः - भाग 5 भरह कोडविएसबिउआणवेइ. सव्वं विणीयं यररायहाणिं। भो भो! जहा खिप्पमखेवमेव, सबाहिरभंतरमेव चित्तं / / 67|| आसीयसम्मजियओवलितं, मंचाइमंचक्कलियं करेह। कालागरुद्धूयमहम्मघंत सुगंधिगंधप्पवराऽऽदिभूयं / / 68|| सतोरणं मंगलकुंभजुत्तं, काउं कहेहेह ममे त्ति कटु। तो चक्कपूयाहिनिविट्ठदिट्टी, गतु सयंण्हाणघरे पयांणे |EEN सुवण्णमाणिक्कमए विसाले, सुनिद्धिरे तो विसई स पीढ। सुगंधिसारामललक्खपाय - सहस्सपायप्पमुहेहिं चित्ते / / 100|| तिल्लेहिँऽभंगं पढमं तु काउं. संवाहयंती पुरिसा सुछेया। संवाहिउव्वट्टियसव्वयंगो, विहीऍण्हागं पकरेइ पच्छा।।१०१।। पसत्थऽवच्चेसुपसत्थबुद्धी, नियंसए चंदणचच्चियगो। दिवित्तनाणामाणभूसियंगो, ससिव्व आणंदकरो जणाणं / / 102 / / नारीसरोसूयपहाणपुप्फ सुगंधहत्थो अभिनिक्खमेइ। जेणेव चक्कस्सघरे विसालो, जेणेव चक्के रयणे पसिद्धे।।१०३।। तेणेव गंतुंमणसेति नाउं. तस्सेव रण्णो बहवे विसाले। राइस्सराऽऽरक्खियमत्थयंति, सामि तु पेसाहि व सत्थबाहं / / 104 / / माडविकोडिवियसेट्ठिमाई, मग्गाणुलग्गा तयणुप्पयाया। विचित्तनेवत्थधरा सुवत्था, विचित्तनाणामणिभूसियंगा // 105 // विचित्तछतज्झयचिंधछन्न - नहंगणा चित्तफलप्पसत्था। तओऽत्थ खुजाउ सुचामराउ, बीजंतपासोभयसंठियाओ॥१०६|| भिंगारहत्था कलसज्जुया उ, केई सतालिंटसदीविया उ। गंधुद्धरद्धूपकडुच्छउत्थ धूमोवयारितदिसतराओ / / 107 / / बुद्धारविन्दुप्पलसारपुप्फ मालाऽऽउला आउलमम्गलम्गा। विचित्तभासाहि मणोहराउ, विणीयभावाणुगसुंदराउ ||108|| सव्वाएँ इड्डीऍ जुईऍ जुत्तो, वाइत्तगीयाऽऽरवपूरियाऽऽसो। एवं समागच्छइ चक्कमेहं, जेणेव चक्कं अह तेण जाइ।।१०।। तेणेव गंतुं अह आयरेण, आलोयमित्ते करई पण्णाम। पसत्थहत्थेण तुलोमहत्थं, परामुसित्ता ण पमज्जई हु।।११०।। पवित्तपाणीऍ सुधारयाए, अब्भुविखओ चेव सुचंदणेण। पंचगुलीचारुतलं दलाइ, दलित्तुमग्गेहिं वरेहिं पच्छा॥१११॥ पुप्फेहिं इंदीवरउप्पलेहिं. गंधेहिँ चुण्णेहिं य उत्तमेहि, गंधट्टियावट्टियचंचरीय, चलंतझंकारमणाहरेहिं // 112|| अंचित्तु आयंपकरेइ पच्छा. विचित्तवीण सुयबाहुरम्म। आरोहण पुप्फसुमल्लगंध, धूवाण भूसाभरणप्पहाणं / / 113 / / मायंगदंतप्पहपडुरेहिं, अखंडिएहिं वरसालिजेहिं। सच्छेहि तारामयतंदुलहिं काउं तओ दप्पणमाइयाई / / 114|| लिहेइ अट्ठऽट्ठसुमंगलाई. मदारइंदीवरकण्णियारं / / असोगजायंजवपंचगंतु दसद्धवण्णं कुसुमोहमासु॥११५॥ तओ पुरी मुंचइ चारुचित्तं, सुवण्णनिप्फन्नकडुच्छुएण। वेडुजवजुडभडदंडएण, दलाइ चूपक्कयधूवधूमं॥११६|| तमालतालीदलसम्मलासं, पयाहिणीकाउ तिक्खुत्तअत्तो। पचोसकित्ताइ पयाइँ सत्त, अट्टेव अच्वे अहवामजाणुं॥११७|| भूती' काउंतह दक्खिणं तु. तिक्खुत्तहुत्तो अह उत्तिमगं। इलातले मीलिय ईसिनम्मो, काउंसिरे तो करकोरयं तु॥११८|| नमेइ चक्र रयणप्पहाणं, भत्ताण जं वंछियदायगं परं। एवं करित्ता अभिनिक्खभेइ चक्काउहागारगमंडवाओ॥११६। पहिप्पबुद्धाण वरा सुसाला, तेणेव आगंतु वरे विसाले। पुव्वंमुहो तो सुहओवविठ्ठो, अट्ठारस स्सेणिपसेणिया उ॥१२०|| सद्दाविउ आणमिणं दलाइ, करेह खिप्पं च परंतु सव्व।