SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1400
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भरह 1392 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 5 भरह रह रुहिता वरसेन्नजुत्तो, चक्काणुमग अणुजाइपच्छा। पाइकवुक्कारवसिंहनाय - सतारघंटारवघोसएहिं।।१४६|| चक्राणुमग्गेण उ नीरनाह, उग्गाहइत्ता इह नाहि जाव / बीओ तहिं मागहतित्थमज्झे, गिहित्तु पत्तो तुरग पसत्थं / / 147|| पहाणगंडीवसजीवदिव्यं, सुरिंदवाचं व मण्णेभिरामं। ओसंसपुंखं रयणामयं तु, नामऽकियं चारुफलावलीदं // 148 // सजीवकोदंडयजीवमज्झे, परामुसित्ता पकरित्तु सिज्ज / विसालठाणं रइउपहाण आइन्नयाइड्डियचारुठाणो॥१४६।। आसण्णदेवासुरजाणट्टा, उदाहरित्था वयणा इमाई। भो भो! सुणतु प्पवराहिराजे, देवासुरा किन्नरजक्खसिद्धा॥१५०।। तहऽतलिक्खा धरणीऍजे उ, महोरगा भूयपिसायजक्खा। तुझं भयत्ताण इमो नमामि, बाणस्स सिग्धं गमणं तु होउ।।१५१।। एवं करित्ता अभिनिस्सरेइ, सरंपहाणं तु सनाभजुत्तं / गंतूण सो वारस जोयणाई, महानिनायं कवडेइ कट्ट।। 152 / / दवण वाणं पडियं मुहग्गे, विचिंतई मागहतित्थनेया। कस्सेह कुद्धो खलु कालमचू, को का गिहे अंतग जाउकामो ||153 / / दिट्ट च कालेण व कस्स मूलं, को वा सयं मच्चुमुहं वि गता। णिहीण पुण्णे य सिरीविहूणा, अलक्खणे लज्जविवज्जिए य॥१५४॥ दुरंतपते अचउदिसे य, जो मज्झ गेहे निसिरेइ वाणं। किण्हाहिदादाहि वणेइ कड्ढुं सुरिंदचावेण जिणाइ सत्तं / / 155|| मा इन्हिया नीरभरेण तिन्नो, वाणेण वो मे वसिड सहेइ। खणं विमं कट्ट वसंत को वा, उट्ठित्तु मुंचेइ सरं करेण / / 156 / / जा वाचियं नाममिण सरत्थं, ता जाणई जाउ जहेत्थ चक्की। तिकालभावीण वि जीयमेयं, कुमार तित्थाहिवमागहाणं / / 157 / / अब्भुट्टणं जंपकरति सव्वं, सव्वाण चक्कीण नरीसराणं! एवं विचिंतित्तु सरं गहिता, हारं किरीड तुडिए कडे य॥१५८|| सुकुडले वत्थवरे विचित्ते. तित्थोदगं आभरणाइ चित्तं / माणिक्कमुत्तामणिभूसियंगो, सकिंकिणीवत्थनियंसयंगो।।१५६।। जेणेव चक्की भरहो विसालो. तेणेव चाऽऽगम्म नहंगणत्थो। करंजलिं काउ सिरे पहाणं, जएण तं वा विजएण भत्ते / / 160 / / बद्धाहि खेत्तं भरह समत्थं, ममऽजिए सिद्धमणी नरीस ! अहं तु तुझं विसए वसामि, समूद्दमझे निलयं करित्ता / / 161 / / आणाएँ तुभं च ठिओ सयाऽवि, पुविल्लवो ते अहमतिवासी। हाराइते ढोयइ ढोयणीयं, राया वितं इच्छइ सारवत्थो / / 162|| पच्छा तओ तित्थवई कुमार, सक्कारिउं अंजलि काउ सीसे। विसजिय एइ सयं सठाणे, आगंतु पचोरुहई रहाओ / / 163 / / पहाणाऽऽइयं कट्ट तओवयारं, पारेइतो भोयणमंडवंसि। सुहासणत्थो विहिएऽहमते, . उट्ठाणसालाएँ विहंत गंतु।।१६४॥ पुव्वक्कमेणेव महामह तु, कारावई तस्स सुरस्स राया। तयतिए आउहमंडवाओ, तो दिव्यचक्के वरवज्जतुल्ले॥१६५।। सुलोहियक्खे तह हेभनेमी, सुनीलमुत्ताहलभूसियंगे। सणंदिघोसे य सखिखिणीए, ककेल्लिगुजारविमंडलाभे // 166|| नचंतनाणानरनारिरम्मे, सुजायहेमामयखिंखिणिल्ले। सव्वोउयप्पुप्फकआवयारे, नहत्थजक्खस्सहसोवउत्ते / / 167|| सतूरसइब्भरियंतराले, निग्गच्छई तो रयणाण जेहो। सुदसणे दाहिणपच्छिमिल्लं, मज्झेण मज्झेण तु मंगलाणं / / 168 // रायाऽणुगमित्तु पयाणमणे, जेणेव गम्मे वरदामतित्थे। तेणेव पच्छाउपयाइ झत्ति, चक्की वि चक्काणुपएण गंतुं।।१६६॥ कमेण तेणेव-उअद्धमते, सव्विढिए आसवरंसि रूढे।
SR No.016147
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri
PublisherRajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan
Publication Year2014
Total Pages1636
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy