________________ भत्तपरिण्णा 1361 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 5 भत्तपरिण्णा निजामएण गुरुणा, इच्छामि भवन्नवं तरिउं / / 18 / / कारुन्नामयनीसं-दसुंदरो सो वि से गुरू भणइ। आलोयणवयखामण-पुरस्सरं तं पवजेसु / / 16 / / इच्छासु त्ति मणित्ता, भत्तीबहुमाणसुद्धसंकप्पो। गुरुणो विगयावाए, पाए अभिवंदिउं विहिणा // 20 // सल्लं उद्धरिउमणो, सव्वेगुव्वेयतिव्वसद्धाओ। जं कुणइ सुद्धिहेउं, सो तेणाऽऽराहओ होइ॥२१|| अह सो आलोअणदो-सवज्जियं उजुयं जहायरियं / बालु व्व बालकाला-उ देइ आलोअणं सम्मं // 22 // ठविए पायच्छित्ते, गणिणा गणिसंपयासमग्गेण / सम्ममणुपन्निय तयं, अपावभावो पुणो भणइ / / 23 / / दारुण दुहजलयरभी-मभवजलहितारणसमत्थे। निप्फन्नवायपोए, महव्वए अम्हओ खिवसु॥२४॥ जइ वि स खंडियचंडो, अक्खण्डममहव्वओ जई जइ वि। पव्वज्जवतुट्ठावण-मुट्ठावणमरिहइतहावि।।२५।। पहुणो सुकयाऽऽणत्तिं, भिच्चा पञ्चप्पिणंति जह विहिणा। जावजीव पइन्ना-णतिं गुरुणो तहा सो वि।।२६।। जो साइयारचरणो, आउट्टिय दंड खंडियवओ वा। तह तस्स वि सम्ममुव-ट्टियस्स उट्ठावणा भणिया / / 27|| तत्तो तस्स महव्व य-पव्वयभारुन्नमंतसीसस्स। सीसस्स समारोवइ, सुगुरू वि महव्वए विहिणा!|२८|| अह हुज देसविरओ, सम्मत्तरओ रओ अ जिणवयणे। तस्स वि अणुव्वयाइं, आरोविजंति सुद्धाई ||26 / / अनियाणोदारमणो, हरिसवसविसप्पकंचुइयराइ। पूण्य गुरुं संघ, साहम्भियमाह भत्तीए॥३०॥ नियदव्वमईव जिणिं-दभवणजिणविंववरपइट्ठासु। वियरइ पसत्थपुत्थय-सुतित्थतित्थयरपूआसु // 31 // जइ से वि सव्वविरई-कयाणुराओ विसुद्धमणकाओ। छिन्नसयणाणुराओ, विसयविसाओ विरत्तो अ॥३२|| संथारऍ पव्वजं, पडिवज्जइ सो वि नियमनिरवज्जं / सव्वविरईपहाणं, सामाइयचरित्तमारुहइ॥३३॥ अह सो सामाइयधरो, पडिवन्नमहव्वओ अजो साहू। देसविरओ अचरिमं, पञ्चक्खामि त्ति निच्छइओ // 34 // गुरुगुणगुरुणो गुरुणो, पयपंकयनमियमत्थओ भणइ। भयवं भत्तपरिन्नं, तुम्हाणुमयं पवजामि // 35 // आराहणाइखेमं, तस्सेव य अप्पणो अगणिवसहो। दिव्वेण निमित्तेणं, पडिलेहइ इहरहा दोसा॥३६|| तत्तो भवचरिमं सो, पचक्खाइ ति तिविहमाहारं। उक्कोसियाणि दव्वा-णि तस्स सव्वाणि दंसिज्ज // 37 / / पासित्तु ताणि कोइ, तीरं पत्तस्सिमेहिं किं मज्झ। देसं च कोइ भुच्चा, संवेगगओ विचिंतेइ॥३८|| किं चत्तं नोवभुत्तं मे, परिणामासुइं सुई। दिट्ठसारो सुहं झायइ, चोअणे से विसीयओ॥३६।। उदरमलसोहणट्ठा, समाहिपाणं मणुन्नं मे / सो वि मरं पञ्जयव्वो, मंदं च विरेयणं खमओ॥४०॥ एलतयनागकेसर-तमालपत्तं ससक्कर दुद्धं / पाऊण कढिय सीयल, समाहिपाणं तओ पच्छा॥४१॥ महुरविरेयणमेसो, कायव्वो फोफलाइदव्येहिं / निव्वाविओ अ अग्गी, समाहिमेसो सुहं लहइ॥४२॥ जावजीवं तिविहं, आहारं वोसिरइ इहं खवगो। निज्जवगो आयरिओ, संघस्स निवेयणं कुणइ // 43 // आराहणपचइयं,खमगस्सय निरुवसग्गपचइयं / तो उस्सग्यो संघे-ण होइ सव्वेण कायव्वो ||4|| पञ्चक्खाविंति तओ, तं ते खवर्ग चउव्विहाऽऽहारं / संघसमुदायमझे, चिइवंदणपुथ्वयं विहिणा।।४५।। अहवा समाहिहउं, सागारं चयइ तिविहमाहारं। तो पाणियं पि पच्छा, वोसिरियव्वं जहाकालं / / 46|| तो सो नमंतसिरसं, घडतकरकमलसेहरो विहिणा। खामेइ सव्वसंघ, संवेगं संजणेमाणो॥४७॥ आयरिएँ उवज्झाए, सीसे साहम्मिए कुलगणे य। जे मे केइ कसाया, सव्वे तिविहेण खामेमि // 48|| सव्वे अवराहपए, खामेमि अहं खमेउ मे भयवं / अहमवि खामेमि सुद्धो, गुणसंघायस्स संघस्स||४६।। इद वंदणखामणगरि-हणेहिं भवसयसमज्जियं कम्मं / ज्वणेइ खणेण खयं, मिगावईराइपत्ति व्व / / 5 / / अह तस्स महव्वयसु-द्धियस्स जिणवयणभावियमइस्स। पञ्चक्खायाहार-स्स तिव्वसंवेगसुहयस्स।।५१|| आराहणलामाओ, कयत्थमप्पाणयं मुणंतस्स। कलुसकलतरणिलहिँ, अणुसद्धिं देइ गणिवसभो // 52 // कुग्गहपरूढमूलं, मूला उच्छिद वच्छ ! मिच्छत्तं / भावेसु परमततं, समत्तं सुत्तनीईए।।५३|| भत्तिं च कुणसु तिव्वं, गुणाणुराएण वीयरायाणं / तह पंचनमुक्कारे, पवयणसारे रई कुणसु / / 54|| सुविहियहियनिज्झाए, सज्झाए उज्जुओ सया होसु। निच्चं पंचमहव्वय-रक्खं कुण आयपचक्खं / / 5 / / उज्झसु नियाणसल्लं, मोहमल्लं सुकम्मनिस्सल्लं / दमसु अ मुणिंदसंदो-हनिदिए इंदियमइंदे // 56 // निव्वाणसुहावाए, विइन्ननिरयाइदारुणावाए। हणसु कसायपिसाए, विसयतिसाए सयसहाए।।५७।। काले अपहू संते, सामन्ने सावसेसिए इण्हि।