________________ भत्तपरिणा 1362 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 5 भत्तपरिण्णा मोहमहारिउदारण-असिलट्टि सुणसु अणुसद्धिं / / 58|| संसारमूलबीयं, मिच्छत्तं सव्वहा विवजेह। संमत्ते दढचित्तो, होसु नमुक्कारकुसलो अ।।५६।। मियतण्हियाहिँ तोयं, मन्नंति नरा जहा सतण्हाए। सुक्खाइँ कुहम्माओ, तहेव मिच्छत्तमूठमणो / / 60 / / न वितं करेइ अग्गी, नेव चिसं नेव किण्हसप्पो वि। जं कुणइ महादोसं, तिव्वं जीयाण मिच्छत्तं / / 61 / / पावइ इहेव वसणं, तुरुमिणिदत्तु व्व दारुणं पुरिसो। मिच्छत्तमोहियमणो, साउपओसाउ पावाओ॥६२॥ मा कासि तं पमायं, संमत्ते सव्वदुक्खनासणए / जं सम्मत्तपइट्ठा-इँ नाणतवविरियचरणाई॥६३।। भावाणुरायपिम्मा-णुरायसुगुणणुरायरत्तो अ। धम्माणुरायरत्तो, अ होसु जिणसासणे निचं // 64|| दंसणभट्ठो भट्ठो, न हु भट्ठो होइ चरणपब्मट्ठो। दसणमणुपत्तस्स उ, परियडणं नत्थि संसारे // 65 // दसणभट्ठो भट्ठो, दंसणभट्ठस्स नत्थि निव्वाणं / सिज्झंति चरणरहिया, दंसणरहिया न सिझंति॥६६।। सुद्धे सम्मत्ते अवि-रओ वि, अजेइ तित्थयरनाम। जह आगमेसिभद्दा, हरिकुलपहुसेणियाऽऽईया।।६७।। कल्लाणपरंपरयं, लहंति जीवा विसुद्धसम्मत्ता। सम्मईसणरयणं, नग्घइ ससुरासुरे लोए॥६८|| तेल्लुक्कस्स पहुत्तं, लभ्रूण वि परिवडंति कालेणं / सम्मत्ते पुण लद्धे, अक्खयसुक्खं लहइ मुक्खं // 66 / / अरिहंतसिद्धचेइय-पवयणआयरियसव्वसाहूसु। तिव्वं करेसु भत्तिं, तिगरणसुद्धेण भावेणं / / 70 / / एगा वि सा समत्था, जिणभत्ती दुग्गइं निवारेउ। दुलहाइँ, लहावेउँ, आसिद्धि परंपरसुहाई।।७१|| विजा वि भत्तिमंत-स्स सिद्धि मुवयाइ होइ फलया य। किं पुण निव्वुइविज्जा, सिज्झिहि अभत्तिमंतस्स // 72 / / तेसिं आराहणना-भगाण, न करिज जो नरो भत्तिं / धणियं पि उज्जमतो, सालिं सो ऊसरे ववइ / / 73|| वीएण विणा सस्सं, इच्छइ सो वासमब्भएण विणा। आराहणमिच्छंतो, आराहयभत्तिमकरंतो 174|| उत्तमकुलसंपत्तिं, सुहनिप्फत्तिं च फुणइ जिणभत्ती। मणियारसिट्ठिजीव-स्स दडुरस्सेव रायगिहे।७५|| आराहणापुरस्सर-मणन्नहियओ विसुद्ध लेसाओ। संसारक्खयकरणं, तं मा मुंची नमुक्कारं / / 76 / / अरिहंतनमुक्कारो, इक्को वि हविज्ज जो मरणकाले। सो जिणवरेहि दिट्ठो, संसारुच्छेयणसमत्थो / / 77|| मिंठो किलिट्ठकम्मो, नमो जिणाणं ति सुकयपणिहाणो। / कमलदलक्खो जक्खो, जाओ चोरु त्ति सूलिहिओ।।७८|| भावनमुक्काररविव-ज्जियाइँ जीवेण अकयकरणाई। गहियाणि य मुक्काणि य, अणंतसो दव्वलिंगाई // 76 / / आराहणापडागा-गहणे हत्थो भवे नमुक्करो। तह सुगइमग्गमणे, रहु व्व जीवस्स अपडिहओ||८०॥ अन्नाणी वि य गोवो, आराहित्ता मओ नमुक्क्कारं। चंपाए सिट्ठिसुओ, सुदंसणो विस्सुओ जाओ॥८१॥ विज्जा जहा पिसायं, सुटुवउत्ता करेह पुरिसवसं / नाणं हिययपिसायं, सुहवउत्तं तह करेइ / / 2 / / उवसमइ किण्हसप्पो, जह मंतेण विहिणा पउत्तेणं / तह हिययकिण्हसप्पो , सुद्धवउत्तेण नाणेण |83|| जह मक्कडओ खणमवि, मज्झत्थो अत्थिउंन सक्केइ। तह खणमवि मज्झत्थो, विसरहिँ विणा न होइ मणो ||4|| तम्हा उद्विउमाणो, मणमक्कडओ जिणोवएसेण। काउंसुत्तनिबद्धो, रामेयव्वो सुद्दज्झाणे / / 8 / / सूई जहा समुत्ता, न नस्सइ कयवरम्मि पडिया वि। जीवो तहा ससुत्तो, न नस्सइ गओ वि संसारे॥८६॥ संडसिलोगेहँ जवो, जइ ता मरणाउ रक्खिओ राया। पत्तो अ सुसामन्नं,किं पुण जिणवुत्तसुत्तेणं ?||87 / / अहवा चिलाइपुत्तो, पत्तो नाणं तहा सुरतं च। उवसमविवेगसंवर-पयसुमिरण मेत्तसुयनाणो ||| परिहर छज्जीववहं, सम्ममणवयणकाजोगेहिं। जीवविसेसं नाउं, जावजीवं पयत्तेणं / / 8 / जह ते न पियं दुक्खं, जाणिय एमेव सव्वजीवाणं / सव्वायरमुवउत्तो, इत्तो धम्मेण कुणसु दयं / / 10 / / तुंगं न मंदराओ, आगासाओविसालयं नत्थि। जह तह जयस्मि जाणसु, धम्ममहिंसासमं नत्थि / / 61|| सव्वे विय संबंधा; पत्ता जीवेण सव्वजीवेहिं। तो मारंतो जीवं, मारइ संबंधिणो सव्वे ||12|| जीववहो अप्पवहो, जीवदया अप्पणो दया होइ। ता सव्वजीवहिंसा, परिचत्ता अत्तकामेहिं।।६३|| जावइयाइँ दुखाई, हुंति चउगइगयस्स जीवस्स। सव्याई ताइँ हिंसा-फलाई निउणं वियाणहि ||4|| जं किंचि सुहमुयारं, पुहुत्तणं पगइसुंदरं जं च / आरुग्गं सोहग्गं, तं तमहिंसाफलं सव्वं / / 65|| पाणो वि पाडिहेरं, पत्तो बूढो वि सुंमुमारदहे। एगेण वि एगदिण-जिएण हिंसावयगुणेणं / / 6 / / परिहर असच वयणं, सव्वं पिचउव्विहं पयत्तेण / संजमवंतो विजओ भासादोसेण लिप्पंति।।७।। हासेण व कोहेण व, लोहेण भएण वा वि तमसच्चं /