________________ फुडा 1160- अभिधानराजेन्द्रः - भाग 5 फूडिजंत ण फुडास्त्री०(स्फुटा) अतिकायस्य महोरगेन्द्रस्य च महिष्याम्. स्था०४ मच्छो।" स्फुरति-स्पन्दते। ज्ञा०१ श्रु०१७ अ०। प्रश्न०। "पयंति ठा०१उ०। णं णेरइए फुरते।" स्फुरन्त इतश्चेतश्च विहलमात्मानं निक्षिपन्तः। फुडाहोव पुं० (स्फटाऽऽटोप) फणाऽऽडम्बरे, उपा०२ अ०॥ सूत्रा० १श्रु०५ अ०१३०। 'फुरंत्विज्जुञ्जसंतसिहरस्स।नं०। उत्त०। फुडिअत्रि० (स्फुटित) 'फुडिअंफलियं च दूलिअंउद्दरिअं।" पाइ० | फुरण न० (स्फुरण) स्फुर-ल्युट्। ईषत्स्पन्दने, वाच० स्था०२ठा०४ ना०१८१ गाथा। उ०प्रकम्पने ज्ञा० श्रु०५ अ०1 चेष्टने० स्था०१ ठा०।"कणी फुरणं / ' फुडित्ता अव्य० (स्फुटित्वा) स्फुटं कृत्वेत्यर्थे , प्रकाशीभूयेत्यर्थे, स्था० पाइ० ना० 273 गाथा। ७ठा०। फुरफुरतं त्रि० (फुरफुरायमाणा) प्रकम्पमाने, ज्ञा० 1 श्रु०८ अ०। * स्फोटयित्वाअव्य० विशीर्णे कृत्वेत्यर्थे , स्था०२ ठा० 4 उ०। प्रश्न०।पीड्योद्वेल्ले च। पिं०1"ताव णं फुरफुरेजा।" महा०१ अ०। फुडिय त्रि०(स्फुटित) स्फुट-त्कः। विकशिते, व्यक्तीकृते, परिहासिते, फुराविति (देशी) अपहारयतीत्यर्थे, "पव्वइउमणा उ ते फुराविंति।" भिन्ने च। वाच०। स्था० 4 ठा०४ उ०। संजातराजीके, ज्ञा० 1 श्रु०७ "फुराविति त्ति" देशीपदमेतत् / अपहारयन्ति। व्य०३ उ०। अ० / आ० म०। "फुडितच्छविविच्छविया।" स्फुटिता राजिशत- | फुरिअन० (स्फुरित) स्पन्दिते, "चुलुचुलिफंदिअंफुरि।" पाइ० संकुलेति। जी०३ प्रति०१ अधि०२ उ०। विकृते च। "फुड़ितच्छवि न० 160 गाथा। निन्दिते, दे० ना०६ वर्ग 84 गाथा। स्था०। विच्छविया।"विपादिकाविचर्चिकादिभिर्विकृतत्वचः। प्रश्न०२ आश्र० फुरित्ताअव्य० (स्फुरित्वा) स्फुरणं कृत्वेत्यर्थे , स्था०। *स्फोरयित्वा अव्य० (स्फुरन्तं) कृत्वेत्यर्थे , स्था०७ ठा०। स्पन्द द्वार। फुडि (जि)त्ता अव्य० (स्फोटित्वा) स्था० 2 ठा० 4 उ०। (अर्थस्तु कृत्वेत्यर्थे च। स्था०२ ठा०४ उ०। 'आता' शब्दे द्वितीयभागे 166 पृष्ठे गतः) फुरिय त्रि० (स्फुरित) स्पन्दिते, स्था० 2 ठा० 4 उ० / "चिंतासाय ग्मवगाहगाणस्स फुरियं दाहिणलोयणं / " दर्श०१ तत्व / चेष्टिते, न०। फुड्डयन० (फुड्डक) लघुतरगच्छैकदेशे, "फुड्डाफुड्डिअप्पेगइया वायंति।" स्था०। फुङ्गकं-लघुतरो गच्छदेश एव गणावच्छेदकाधिष्ठित इति। औ०। फुलिंग पुं०स्त्री० (स्फुलिङ्ग) स्फुल-इङ्गच्। स्फु इत्यव्यक्त शब्दोलिङ्गिति फुत्ति स्त्री० (स्फूर्ति) स्फुरणे, विकशने, प्रतिभायां च / वाच०। आ०म० -- गच्छति यस्मात् लिगिधा। पृ० वा०। अग्निकणे, वाच०।"फुलिंग१ अ० / प्रतिक्षणं प्रवर्द्धमानकान्तौ च / "मूर्तिः स्फूर्तिमती सदा जालामालासहस्सेहि।" भ०३ श०२ उ० / हिमे च / गुडविकारभेदे, विजयते।" स्फूर्तिः प्रतिक्षणं प्रवर्द्धमानकान्तिः, संनिहितप्रतिहार्यत्वं स्त्री० वाचा वा, तद्वती। प्रति०। फुल्लन० (फुल्ल) पुष्पे, दश०। फुप्फुसन० (फुप्फुस) उदरान्तर्वर्तिन्यन्त्रविशेषे, प्रश्न०१आश्र० द्वार। पुप्फाणि अकुसुमाणि अ, फुल्लाणि तहेव हॉति पसवाणि। सूत्र०। सुमणाणि असुहुमाणि अ, पुष्फाणं होति एगट्ठा // 36|| फुड धा० (भ्रम) चलने, भ्याल-पर०-सक०-सेट्। "ममेः टिरिटि पुष्पाणि कुसुमानि चैव फुल्लानि प्रसवानिच सुमनांति चैव 'सूक्ष्माणि' ल्ल-तुण्दुल्ल-ढण्ढल्ल-चकम्म- मम्मड-ममड-भमाड सूक्ष्मकायिकानि चेति।।३६।। दश०१ अ०। तलअण्ट-झण्ट, झम्प, भुम-गुम-फुम-फुस-दुम-दुस- फुल्लंघअपुं०(पुष्पंधय) भ्रमरे, "फुल्लंधआ रसाऊ, भिंगा भसलाय परीपराः" // 5 // 169 / / इति प्राकृतसूत्रेण भ्रमेः फुमाऽऽदेशः। महुअरा अलिणो। इंदिंदरा दुरेहा धुअगाया छप्पया भमरा / / 12 / / " फुसइ। भ्रमति। प्रा० 4 पाद। पाइ० ना० 12 गाथा। भ्रमरे, दे० ना०। फुमंत त्रि० (फुमत्) मुखेन फूत्कुर्वतिदश०४ अ०नि० चू०। आचा०। फुसिअ त्रि० (स्पृष्ट) उन्मृष्ट "उम्मुटुं पुंछिअं फुसि।" पाइ० ना० फुमण न० (फुमन) फूत्करणे दश० 4 अ०। 188 गाथा। जे भिक्खू अप्पणोपायं फूमेजवा, रएखवा, मंखेज वा, फूमंतं / फुसित्ताअव्य० (स्पृष्टवा) श्लिष्टवेत्यर्थे , स्था० 4 ठा०४ उ०। वा रयंतं वा मंखेतं वा साइजइ / नि० चू०३ उ०। फुसी स्त्री० (स्पर्शी) फासो' शब्दार्थे, व्य०७ उ०। "इत्थेण वा मुहेण वा फूमेज्ज वा, वीएजवा।" (फूमेज वेति) मुखवायुना फूअ (देशी) लोहकारे, दे० ना०६ वर्ग 85 गाथा। शीतीकुर्यात्। आचा०२ श्रु०१ चू०१ अ०७ उ०। फूमंत त्रि० (फूमत) 'फुमंत' शब्दार्थे, दश० 4 अ०। फुमावंत त्रि० (फुमयत्) फूत्करणे, नि० चू०१७ उ०। फूमण न० (फूमन) 'फुमण' शब्दार्थे , दश० 4 अ०। फुमिजंत शि० (फुम्यमान) फूक्रियमाण्णे, नि० चू०३ उ०। फूमावंत त्रि० (फूमयत्) फूत्करणे, नि० चू०१७ उ०। फुरंत त्रि० (स्फुरत्) इतस्ततः स्पन्दमाने, "फुरइ थलविरल्लिओ | फूमिअंत त्रि० (फूम्यमान) 'फुमिजंत' शब्दार्थे , नि० चू०३ उ०।