________________ पेहिय 1066- अभिधानराजेन्द्रः - भाग-५ पोक्खलाविभाग पेहिय त्रि०(प्रेक्षित) दृष्ट, आचा०२ श्रु०१ चू०५ अ०१उ०। भावेक्तः। / पोंडयन०(पौण्डज) बनीफलादुत्पन्ने कार्यासिके, सूत्रा०१०१ अ० वक्रावलोकने, उत्त० 32 अ०। नि० चू०। 1 उ०नि० चू०। *प्रेक्ष्य अव्य० दृष्ट्वेन्यर्थे , सूत्रा० 1 श्रु०२ अ० 1 उ०। पोंडरीग न० (पुण्डरीक) शताम्बुजे, जी० 3 प्रति० 4 अधि० / प्रज्ञा० / पेहुण न० (पेहुण) पिच्छे, "पिच्छाइंपेहुणाई। पाइ० ना० 126 गाथा। | लोमपक्षिविशेषे, प्रज्ञा० 1 पद / जी० / भगवत ऋषभस्याऽदिगणधरे, देना। व्य०४ उ०। क्षीरवरद्वीपाधिपतौ, स्था० 10 ठा० / पुष्कलावतीविजये पुण्डरीकिणीराजमहापदमपुत्रो, आ० चू० 4 अ०। आव०। आ० म०। पेहुणग न० (पेहुणक) मयूरपिच्छकृतव्यजने, आचा०२ श्रु०१ चू०१ सूत्रकृतागाध्ययनभेदे, आ० चू०१ अ०। सूत्रा०। एकोनविंशे ज्ञाताध्यअ०७ उ०। मयूराङ्गमय्या पिच्छायाम्, बृ०१ उ०३ प्रक० / दश० ज०। यने, स०१६ सम०। सप्तमदेवलोकीये विमानभेदे, स०१८ सम०। पेहुणमिंजिया स्त्री० (पेहुणमिञ्जिका) मयूरपिच्छमध्यवर्तिन्यां मिन्जा पों डरीगतव न० (पुण्डरीकतपस्) चैत्रापौर्णमास्यां पुण्डरीकपूजागुंत याम्, ज०१ वक्ष० / आ० म० / प्रज्ञा०। उपवासाऽऽद्यन्यतरस्मिन् तपसि, पञ्चा० 16 विव०। पेहुणहत्थग पु० (पेहुणहस्तक) मयूराऽऽदिपिच्छसमहे, दश० 4 अ०।। पोंडरीगिणी स्त्री० (पुण्डरीकिणी) पुण्डरीकाणि श्वेतपद्मानि विद्यन्ते मयूर पिच्छकृतव्यजने, आचा०२ श्रु०१चू०१अ०७उ०। यस्यां सा पुण्डरीकिणी। सूत्र०२ श्रु०१ अ०। पुष्करिण्याम्, जम्बूद्वीपे पोअपुं०(पोत) बालके, "डहरो डिभो चुल्लो, सिस् सिलबोय अब्भओ मन्दरस्योत्तरेण लक्ष्मीदेव्यावासभूते, स्था० 3 ठा०४ उ०। आ० चू०। पोओ।" पाइ० ना०५८ गाथा। जलवहनमार्गे, "पोओ वहणं। "पाइ० जम्बूद्वीपे पुष्कलावर्तीविजयक्षेत्रा युगलराजधानीयुगले, "दो पोडना० 273 गाथा। धववृक्षलघुसर्पयोः, दे० ना०६ वर्ग 81 गाथा। रीगिणीओ।" स्था०२ ठा०३ उ०। आचूला आ० म० ज०। आ० क०। पोअंड (देशी) मुक्तभये, षण्डं च। दे० ना०६ वर्ग 61 गाथा। * पोण्डरीकिणी स्त्री० पौण्डरीकाणि-श्वेतशतपत्राणि विद्यन्ते यस्या पोअंत (देशी) शपथे, दे० ना०६ वर्ग 62 गाथा। सा पौण्डरीकिणी प्राचुर्ये मत्वर्थीय इतिः। बहुपदमायाम्, (सूत्रा०२ श्रु० पोअइआ स्त्री० (देशी) निद्रालुतायाम्, “पोअइआ य वयली मयाली 2 अ०) पश्चिमाञ्जनादेरुत्तर दिग्वर्त्तिन्यां पुष्करिण्याम्, ती० 23 य।' पाइ० ना० 148 गाथा। निद्राकरलतायाम, दे० ना०६ वर्ग 63 कल्प० / द्वी० / महाविदेहमध्यनगरीभेदे, विपा० 2 श्रु०२ अ०। गाथा। पोक धा० (व्याह्न/वि+ आ+ ह ) कथने, "व्याहगेः कोक पोक्को" पोअलअ (देशी) आश्विनमासोत्सवाऽपूपयोः, बालवसन्त इत्यन्ते / दे० 8476 / / इति व्याहरतेः पोक्काऽऽदेशः / पोझाइ / व्याहरति / प्रा०४ ना०६ वर्ग 81 गाथा। पाद। अग्रे स्थूलोन्नते, उत्त०१२ अ०। पोआअ (देशी) ग्रामप्रधानपुरुषे, दे० ना०६ वर्ग 60 गाथा। पोकनास नि० (पोक्कनास) पोक्का–अग्रे स्थूलोन्नता मध्ये निम्ना नासा यस्य स पोकनासः / चिप्पटनासे, उत्त० 12 अ०। पोआइस्त्री० (पोताकी) शकुन्तिकायाम्, परिव्राजकप्रयुक्ते (आ० चू०१ ! पोक्करिय न० (पूत्कारित) भावे त्कः / आहूते, "तओ मरणभीयाए अ०) विद्याविशेषे च। आ० क०१ अ०। पोक्करिय। दर्श०३ तत्त्व। पोआल (देशी) वृषभे, दे० ना०६ वर्ग 62 गाथा। पोक्काण पुं० (पोक्काण) म्लच्छजातीये मनुष्ये, म्लेच्छभेदे च / प्रश्न०१ पोइअ त्रि० (प्रोत) 'परोवेलु' (गुजराती) "आविअं पोइयं" पाइ० आश्र० द्वार। ना०२६८ गाथा / काविन्दके, खद्योत इत्यन्ते। दे० ना०६ वर्ग 63 | पोक्कार पु० (पूत्कार ) आह्वाने, विशे०। गाथा। पोक्खर न० (पुष्कर)"ष्क स्कयो म्नि" ||24|| इतिष्कस्य पोइआ (देशी) निद्राकरलतायाम्, दे० ना०६ वर्ग 63 गाथा। खः / प्रा०२ पादाखद्वित्वम्। खस्यकः। ओत्संयोगे" ||8/1/116|| पोइय (देशी) पोतित इतस्ततः स्पन्दिते, बृ० 1 0 2 प्रक०। इति उकारस्यौकारः / प्रा० 1 पाद। कमले, नि० चू० 12 उ०। पोई स्त्री० (पोयी) ताम्बूलाऽऽकृतिपणे लघुकलायतुल्यफले शाकत्वेनोप- | पोक्खरिणी स्त्री० (पुष्करिणी) पुष्करवत्यां चतुष्कोणायां वाप्याम्, प्रश्न० युक्तवल्लीभेदे, प्रज्ञा०१ पद। 1 आश्र0 द्वार।"असोगवणियाए आगहा पोक्खरिणी संछन्नयत्तं / " पोउआ (देशी) करीषानौ, दे० ना०६ वर्ग 61 गाथा। आव०६ अ०। स्था०। पोंड न० (पौण्ड) "पोंडा वमणी तस्स फलं" नि० चू० 3 उ० / फले, पोक्खल न० (पुष्कर) पद्मकेसरे, आचा०२ श्रु०१ चू०१ अ०८ उ01 प्रश्न०४ आश्र० द्वार। महा०। पुष्पे च। उत्त० 3 अ०। यूथाधिपती, दे० पोक्खलच्छिल्लय न० (पुष्करच्छिल्लक)। जलरुहभेदे, प्रज्ञा० 1 पद। ना०६ वर्ग 60 गाथा। पोक्खलपाल पुं० (पुष्करपाल) वज्रसेननृपपुत्रो, आ० चू० 1 अ०। पॉडबद्धणिया स्त्री० (पौण्डबर्द्धनिका ) गोदासगणस्य तृतीय शाखायाम, पोक्खलविभाग पुं० (पुष्करविभाग) पद्मकन्दे, आचा०२ श्रु०१ चू०१ कल्प०३ अधि०८ क्षण। अ०८ उ०