________________ ताराचंद 2228 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 4 ताराचंद जा पिच्छइ टसदिसि खणिण // 21 // ताससहरकरसुंदरपसरंतमहंतकंतिदिप्पंत। ईसिं ओणमियतणु, चरणभरेणं व अक्कतं / / 22 / / हिट्टामुहलंबियसुप्पलंबकरनहमऊहरजूहि। नरयाऽवडनिवडियजंतुजायमागरिसयंत व / / 23 / / कणयाचलनिचलचलणअंगुलीविमलपहनहडिसेण। फूडपथमंत पिवखंतिपमुदसविहसमणधम्म / / 24 / / गिरिकंदरगयमुरसम्गसंठियं सो निए वि मुणिमेगं / परमप्पमोयकलिओ, पत्तो मुणिवरसमीवम्मि / / 25 / / तो लद्धिनीरनिहिणो, जियसुरतराकामधेणुमाहप्पं / मुणिणो से पयजुयलं, सिरसा तुट्ठो परामुसइ / / 26 / / अह मुणिमाहप्पेण, तकाल चिय पणट्ट विव रोगो। ताराचंदो जाओ, अब्भहियसुरूवावधरो।।२७।। तं मुणिणो माहप्पं, जा चिट्ठइ दट्टु विम्हिओ कुमरो। ता विजाहरजुयलं गयणतलाओ समोसरियं // 28 // हरिसवसवियसियऽच्छं, पणमिय चलणुप्पलं च से मुणिणो। अगणियगुणगणममलं, थोउ निसन्नं महीपीढे / / 26 / / कुमरेण तओ भणिय, कत्तो तुम्हाण इह समागमण ? केण य कजेण तओ, वुत्त विज्जाहरेण इमं // 30 // वेयड्डगिरिवराओ, मुणिमय नंतु वयमिहं पत्ता। कुमरेणुत्तं को एस मुणिवरो आह इय खयरो॥३१॥ आसी इह वेयड्डे, राया वरखयरविसरनमियकमो। घणवाहणु शि नामेण नामियासेसरिउचक्को // 32 // अन्नदिणे जम्ममरण-रोगकारणयभीमभवभीमो। सो सुचिरप्पदढो मोह वल्लिमुल्लूरिय खणेण / / 33 / / जरचीवरं व चइउं, रजं सज्जो गहेवि पव्वज्ज। अणवरय मासखमणे, करेइ सो एस मुणिवसहो।।३।। इय पभणिय ते खयरा, मुणिं च नमिउं गया सठाणम्मि। हरिसियहियओ कुमरो, भत्तीए इय मुणिं थुणइ / / 35 / / जय जय मुणिंद! खयरिंदविंदवदियपयारविंदजुग! भवदुहहुयवहसंतत्तसत्तपीऊसवरिससम!॥३६॥ निजियतिहुयणजणमयण-सुहमभडवायभंजणपवीर ! अइउग्गरोगभरसप्पदप्पनिट्टवणवरगरुमा||३७।। एवं थुणिय मुणिद, जा किंचि वि विन्नविससए कुमरो। ता उस्सग्ग पारे-वि मुणिवरो गयणमुप्पइओ।।३८।। तो विम्हइओ कुमरो, नमिय जिणे गिरिवराउ ओयरिओ। गच्छतो य कमेणं, रयणउरं नयरमणुपत्तो।।३६।। तत्थ य चिरकालपरूढ-गाढपणएण बालमित्तेण। कुरुचंदेण स दिट्टो, झडि त्ति तह पञ्चभिन्नाओ / / 4 / / आलिगिऊण गाद, ससंभमं पुच्छिओ इमो तेण। अच्छरियमिणं कत्तो, वयंस ! तुह इत्थ आगमणं? // 41 / / कत्थ व इत्तियकालं, सावत्थीओ विणिक्खभित्ता " / भसिओ सि कह व संपई, पुणो नवंगो तुम जाओ।।४२|| ताराचंदेण तओ, सावत्थीनिग्गमाउ आरब्भ। तप्पुरओ परिकहिओ, सव्वो विहु निययवुत्ततो।।४३|| कुमरेण वि तो पुट्ट, कहेसु कुरुचंद ! मित्त ! नियवत्तं / किं इत्थ तुहाऽऽगमणं, गमणं च पुणो कहिं होहि ! / / 4 / / कह वा ताओ निवसइ, अवि कुसलं सयलरायचक्कस्स। सावत्थी सुत्था सा, सगामपुरजणवया धणियं? ||45 / / कुरुचंदेणं भणियं, रायाऽऽएसेण इत्थ रयणपुरे। अहमागओऽम्हि संपइ, सावत्थीए गमिस्सामि / / 46 / / कुसल चरायचक्कस्स तह य नयरीइजणवयजुयाए। तुह दुसहविरहदुहियं, इक्वं मुत्तु नवरि निवई॥४७।। जप्पभिइ तं न दिट्टो, तप्पमिइ निवेण पेसिया पुरिसा। तुज्झ पउत्तिनिमित्त, सव्वत्थन चेव तलद्धो।।४८|| तो रयणपुरागमण, जायं मे बहुफलं महाभाग ! जं लद्धो तुममिहि, पुण्णेहि अतक्कियागमणो / / 46 / / तो पसिय लहु नरवर-नंदण ! नियदसणामयरसेण। निव्वावसु पिउहिययं, दुस्सहविरहदवतवतवियं / / 50 / / इय सप्पणयं मिलेण पत्थिओ निवसुओ सम तेण। पिउकारियरहसोह, सावत्थिं नयरिमणुवत्तो / / 51 / / पणओ य जणयचलणे, समयम्मि निवेण पुच्छिओ कुमरो। मूला आरब्भ नियं, वुत्तंते जाव साहेइ 52 / / ता विजयसेणसूरी, समोसढो तत्थ भूरिपरिवारो। तव्वदणवडियाए, कुमारजत्तो निधो पत्तो / / 53|| नमिय मणिदं उचिय-ट्राणासीणे निवम्मि कहइ गुरू। मंथिजमाणजलनिहि-उद्दामसरेण धम्मकह / / 54 / / इह जरजमणसलिल,बहमच्छरमच्छकच्छभाऽऽइन्न। उल्लसिरकोववडवा-हुयवहजालोलिदुप्पिच्छ।।५५।। माणगिरिदुग्गमतरं, मायावल्लीवियाणअइगुविलं / अक्खोहलोहपायालपरिगयं मोहआवत्तं / / 5 / / अन्नाणपवणपिल्लियसंजोगविओगरंगितरंग। जइ भवजलनिहिमेयं, तरिउ इच्छेह भवियजणा !!57 / / ता सदसणदढगाढबंधणं सुद्धभावगुरुफलहं। उद्धरसंवरसंरुद्धसयलछिदं अशणग्छ / 58 / / वेरग्गमग्गलग्गं. दुत्तवतवपवणजणियगुरुवेग। सन्नाणकन्नधार, सरेह चारित्तवरपोयं / / 5 / / इय सुणिय निवो निरवजचरणगहणुज्जुओ भणइ सूरि। काऊण रजसुत्थं, पहु ! तुह पासे गहेमि वयं / / 60 / / मा पडिबंधं खणमपि, काही नरनाह ! इय मुर्णिदेण। वुत्तम्मि महीनाहो, पमुइयहियओ गओ सगिहं // 61 / / नीसेसमंतिसाम-तमंडलं पुच्छिऊण सच्छमई। ताराचंदकुमार, रज्जे अहिसिंचिही जाव // 62|| तो विणओणयतणुणा, कयअंजलिणा पयंपियं तेण। वयगहणानुन्नाए, ताय ! पसायं कुण ममावि / / 63 / / जं संसारसमुद्दो, रुद्दो उद्दामदुक्खकल्लोलो। न विणा चरणतरंग, तीरइ तरिउ अइदुरंतो।।६४।। तो रम्ना पडिभणियं, जुत्तमिणं वच्छ ! नायत्तताण। किं तु कमागयमेयं, रज पालेसु कइ वि दिणे॥६५॥ न य विक्कमसंजुत्ते,पुत्ते पच्छा ठवित्तु रज्जभरं / कल्लाणवल्लिजलकुल्लतुल्लदिक्खं गहिज तुम // 66 / / इय भणिय बला वि इम, राया रज्जे ठवित्तु गिण्हेउं / सिरिविजयसेणपासे, दिक्खं वेमाणिएसु गओ // 67 / / अह ताराचंदनिवो, निचं क्यगहणसुद्धपरिणामो। पइसमयमुत्तरुत्तरमणोरहसए विचिंतंतो॥६८|| कारंतो जिणभवणे, सया विजिणपवयणं पभावंतो। अणुकपादाणाऽऽइसु, जहाविहाणेण वट्टतो // 66 // नियगिहसगीवकारिय-पोसहसालाइ पासहुजुत्तो। सचरिएसु पयट्ट, अणुमोयतो य धम्भिजणं / / 7 / /