________________ णमोकार 1844 - अभिधानराजेन्द्रः भाग - 4 णमोकार (14) अथाऽत्र द्विविधेऽपि फले पूर्वोपक्षिप्तान् दृष्टान्तानाहइहलोयम्मि तिदंडी, सा दिवं माउलुंगवणमेव / परलोए चंडपिंगल, हुंडिय जक्खो य दिटुंता1३२२४। विशे० / इहलोके नमस्कारार्थमुदाहरणं त्रिदण्डी"एगस्स सावगस्स पुत्तो धम्मन यलेइ। सो य सावगो कालगतो। सो वि बाहिराहओ (विवाहिओ) एवं चेव विहरइ। अन्नया तेसिं घरसमीवे परिवायगो आवासितो।सो तेण समं मेत्तिं करेइ। अन्नया भणइआणेह निरुवहयं अणाहं मडयं, जेण ते ईसरियं करेमि। तेण मग्गिओ, लद्धो उव्वद्धो मणुरसो। सो मसाणं नीतो। जंच तत्थ पाउग्गंतं चनीय। सोय दारगो पियरेण नमोक्कार सिक्खावितो, भणितो य-जाहे वीहेज्जासि, ताहे एवं पढिजासि, विज्जा एसा। सोय तस्स मयगस्स पुरतो ठविओ। तस्स य मयगस्स हत्थे असी दिन्नो / परिव्वायगो विज्ज परियट्टेइ / उद्वेतुमारद्धो वेयालो / सो दारगो भीतो हियए नमोकारं परियट्टेइ / सो वेयालोपडितो। पुणो विजवति / पुणो विउट्टिओ। सुटुतरगं परियट्टेइ। पुणो वि पडितो। तिदंडी भणइ-किं वि जाणसि ? भणइ-न किं पि जाणामि / पुणो वि जवइ / तइयवारं पुणो वि उद्वितो / पुणो नमोझारं परियडूइ। ताहे वाणमंतरेण रूसिऊण तं खग्गं गहाय सो तिदंडी दो खंडा कओ।सुवण्णकोडी (खाडी) जातो। अंगोवंगाणिय से जुत्तजुताई काउं सव्वरत्तिं छूट। इस्सरो नमोक्कारपभावेण जातो। जइन होंतो नमोकारो, तो वेयालेण मारिजंतो सो सुवण्णं होंतो"। कामनिष्फत्ती नमोक्कारतो कह ?" एगा साविगा आसी, तीसे भत्ता मिच्छादिट्ठी अण्णं भज्ज आणेउं मग्गइ, तीसे तणए न लब्भइ त्ति / स सवत्तगं ति चिंतेइ-कहं मारेमि ? अण्णया कण्हसप्पो घडए छुभित्ता आणीतो, संगोवितो य / जिमितो भणइ-आणेह पुप्फाणि अमुगे घडए ठवियाणि। सा पविट्ठा अंधकारं ति नमोक्कारं परियदृती चिंतेइ-जइ वि मे कोइ खाएजा, तो पि मे मरंतीए नमोकारो न नस्सिहिति / ता छूढो हत्थो / सप्पो देवयाए अवहितो पुप्फमाला कया। सा गहिया, दिन्नाय से। सो संभंतो चिंतेइ-अण्णाणि एयाणि / पुच्छइ य / तीए कहियंततो चेव घडातो आणीयाणि एयाणि। गतो तत्थ पेच्छइ घडगं, पुप्फगंधं च / न वि तत्थ कोइ सप्पो / ततो आउदो पाए पडितो सव्वं कहेइ, खामेइ य। पच्छा सा चेव घरसामिणी जाया। एवं कामावहो नमो-क्कारो"। आरोग्गाभिरईए उदाहरणं" एग नगरं नदीतीरे खरकम्मिएण सरीरचिंताएनिग्गएणं नदीए युज्झंत माउलुंगं दिटुं / रायाए उवणीयं / स्ना सूयस्स हत्थे दिन्नं / तेण जिम्मियंतस्स उवणीयं पमाणेणवण्णेण गंधेणय अइरित्तं। तस्समणुसस्स राया तुट्ठो। दिण्णा भोगा।राया भणइ-अणुनदीए मग्गह जाव लद्धं भवे / पत्थयणं गहाय पुरिसा गया। दिह्रो वण-संडो। जो फलाणि गेण्हइ सो मरइ / रण्णो कहियं / भणइ-अवस्सं आणेयव्वाणि, गोलग-(अक्ख) पडिया वचंतु। एवं गया आणेति। तत्थ जस्स गोलगो आगतो सो एगो वणे पविसइ। पविसित्ता फलाणि बहिं छुभइ, ततो अण्णे आणेति। जो छुहइ सो मरइ। एवं काले वचंते सावगस्स परिवाड़ी जाया। तत्थ गतो चिंतेइ मा विराहियसामण्णो को विहोज त्ति निसीहियं भणित्ता नमोक्कारं पढंतो दुक्कइ। वाणमंतरस्स चिंता जायाकत्थ मए एयं सुयपुव्वं? णायं, संबुद्धो, वंदइ, भणइ य-अहं तत्थेव साहरामि / गतो रण्णो कहियं / रण्णा संमाणितो। तस्स उस्सीसए दिणे दिणे ठवेइ। एवं तेण अभिरई, भोगाय लद्धा। जीवियातो य किं अन्नं आरोग्गं? राया वि परितुट्टो ति"। परलोगे वि नमोक्कारफलं" वसंतपुरे नयरे जियसत्तू राया। तस्स गणिया साविया / सा चंडपिंगलेण चोरेण समं वसति।अन्नया कयाइतेण स्नोधरं हयं (खायं), हारो आणीतो, भीएहिं संगोविजइ। अण्णया उजाणियाए गमणं। सव्वाओ विभूसियाओ गणियाओ वचंति। तीए सव्वातो अतिसयामित्ति सो हारो आविद्धो। जीसे देवीए सोहारो, तीए दा-सीए सोनातो। कहियं रणो। सा केण सम वसइ? कहिए चंड-पिंगलो गहितो सूले भिन्नो / तीए वि चिंतियं-मम दोसेण मारिओ त्ति सा से नमोकार देइ, भणइय निदाणं / करेहि जहा एयस्स रण्णो पुत्तो आयासि त्ति। कयं निदाणं। अग्गमहिसीए उदरे उववन्नो / दारगो जातो / सा साविया कीलावणधाती जाया / अन्नया चिंतेइ-कालो समो गडभस्समरणस्सय होजा। कयाइरमावती भणइमा रोव चंडपिंगल ! तिजाईसरिया। संबुद्धो राया सतो। सो राया जातो। सुचिरेण कालेणं दो वि पञ्चइयाणि " / एवं सुकुलप्पच्चायातीतं सग्गगमणं सिद्धिगमणमिति। अह वा द्वितीयं उदाहरणं"महुराए नयरीएजिणदत्तो सावगो।तत्थ हुंडिओचोरो नगरंपरिमुसइ / सो कयाइ गहिओ सूले भिन्नो / रन्ना भणियं-पडिचरह बितिया वि से नजिहिं ति। ततो रायमणूसा पडिचरंति। सो जिण-दत्तो सावगो तस्स नाइदूरे वीतीवयइ / सो चोरो भणइ-सावग ! तुममणुकंपगो सि त्ति साइतोऽहं, देह मम पाणियं, जा मरामि / सावगो भणइ-इमं नमोक्कार पढेजा, ते आणेमि पाणियं। जइ वि-स्सारेसि तो ते आणीयं पि न देमि। सो ताए लोलयाए पढइ / सा-वगो वि पाणियं गहाय आगतो! ता बेला पयाय (पचेलं पाहामि) त्तिणमोकारंधोसंतस्सेव निग्गतो जीवो। जक्खो उववन्नो / सावगो तेहिं मणुस्सेहिं गहितो, चोरभत्तदायगो ति रण्णो निवेइयं / राया भणइ-एयं पि सूले भिंदह / आघायणं दिजइ। जक्खो ओहिं पउं-जइ। पेच्छइ सावगं अप्पणोयसरीरं। ततोपव्वयं उप्पाडेऊण नयरस्स उवरिं ठवेइ। भणइ य-सावर्ग भट्टारयं नयाणह, खामेह, मा भे सव्ये चूरेहामि / ततो मुक्को खामितो विभूईए नयरं पवेसितो। नयरस्स पुय्येण जक्खस्स आययणं कयं / एवं नमोक्कारेण फलं लब्भइ।" उक्ता नमस्कारनियुक्तिः। आ० म० 1 अ०२ खण्ड। अथ भाष्यकारः प्रयोजनफलयोर्विवरणमाहसयओवओगकिरिया-गुणलाभो तप्पओयणमिहेव। कालंतरनिप्फत्तिं, फलमिहपरलोगमोक्खेसु // 3225 // कम्मक्खओऽणुसमयं, तल्लाभे चेव तदुवओगाओ। सव्वत्थेसु य मंगल-मविग्घहेऊ नमोकारो / / 3226 / / तस्य नमस्कारस्य प्रयोजनं तत्प्रयोजनमिहै वेहलोक एव / किमिति? अत्रोच्यते-तद्विषयसततोपयोगक्रियया यः कर्मक्षयक्षयोपशमाऽऽदिगुणस्य लाभः / फलं तु नमस्कारस्य (का /