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________________ णक्खत्त 1762 - अभिधानराजेन्द्रः भाग-४ णक्खत्त (5) केषु नक्षत्रेषु कानि कार्याणि गमनप्रस्थानाऽऽदीनि कर्तव्यानिपुस्सऽस्सिणि मिगसिर रे-वई य हत्थो तहेव चित्ताय। अणुराह जिट्ठ मूलो, नव णक्खत्ता गमणसिद्धा।।११।। मिगसिर महा य मूलो, विसाह तहचेव होइ अणुराहा। हत्थुत्तर रेवइ अ-स्सिणीय सवणे य णक्खत्ते / / 12 / / एएसु य अद्धाणं, पत्थाणं ठाणयं च कायव्वं / जइ य गहुत्थ न चिट्ठइ, संझामुक्कं च जइ होइ।।१३।। उप्पन्नभत्तपाणो, अद्धाणम्मि उ सया उजो होइ। फलपुप्फवग्गुवेओ, गओ वि खेमेण सो एइ / / 14 // सन्ध्यागताऽऽदीनिसंझागयं रविगयं, विड्डेरं सग्गहं विलंबिं च। राहुहयं गहभिन्नं, च वजए सत्त नक्खत्ते / / 15 / / अत्थमणे संझागय, रविगय जह पहिओ उ आइयो / विडेरमविद्यारिय, सग्गह कूरग्गहठियं तु / / 16 / / आइच्चपिट्ठओ जं, विलंबि राहूहयं जहिं गहणं / मज्झेण गहो जस्स उ, गच्छइतं होइ गहभिन्नं / / 17 // संझागयम्मि कलहो, होइ विवाओ विलंबि नक्खत्ते। विड्डेरे परविजओ, आइचगए अणिचाणि / / 18 / / जं सग्गहम्मि कीरइ, नक्खत्ते तत्थ निग्गहो होइ। राहुहयम्मि य मरणं, गहमिन्ने सोणिउग्गालो / / 16 / / संझागयं गहगयं, आइचगयं च दुब्बलं रिक्खं / संझाऽऽइयविमुक्वं, गहमुक्कं चेव बलियाई / / 20 // (6) पादोपगमनलोचकर्माऽऽदीनिपुस्सो हत्थो अभिई य, अस्सिणी भरणी तहा। एएसु य रिक्खेसु य, पाओवगमणं करे // 21 // सवणेण धणिट्ठाई, पुणव्वसू न वि करिज निक्खमणं। सयभिसयस्स न बंभे, विजाऽऽरंभे पवित्तिजा / / 22 // हत्थाइपंच रिक्खा, वत्थुस्स पसत्थगा विणिद्दिट्ठा। उत्तर तिन्नि धणिट्ठा, पुणव्वसू रोहिणी पुस्सो। 23 / द०प०। पुणवसुणा पुस्सेणं, सवणेण धणिट्ठया। एएहिँचउरिक्खेहि, लोयकम्माणि कारए / / 25 // द०प० / विशे० / व्य० / आ० म०। पं०व०। कत्तियाहि विसाहाहिं, मघाहिँ भरणीहि य / एएहिँ चउरिक्खे हिं, लोयकम्माणि वजए।। 26 / / तिहिँ उत्तराहिँ तह रो-हिणीहिँ कुजा उ सेहनिक्खमणं / सेहोवट्ठावणं कुजा, अणुन्ना गणिवायए।। 27 / / गणसंगहणं कुज्जा, गणहरं चेव ठावए। उग्गहं वसहिट्ठाणं, थावराणि पवत्तए।।२८।। (7) स्वाध्यायाऽऽदिनक्षत्राणि क्षिप्रमृदुसंज्ञकानि पुस्सो य हत्थो अभिई, अस्सिणीय तहेव य। चत्तारि खिप्पकारीणि, विजाऽऽरंभेसु सोहणा / / 26 / / विज्जाणं धारणं कुज्जा, बंभलोगे य साहए। सज्झायं च अणुन्नं च, उदिसो य समुचिसो।।३०।। अणुराहा रेवई चेव, चित्ता मिगसिरं तहा। मिऊ णेयाणि चत्तारि, मिउकम्म तेसु कारए॥३१॥ भिक्खाचरणऽमत्ताणं, कुजा गहणधारणं / संगहोवग्गहं चेव, बालबुड्डाण कारए / / 32 / / (8) अहा अस्सेस जिट्ठा य, मूलो चेव चउत्थओ। गुरुणो कारए पडिमं, तवोकम्मं च कारए॥३३ / / दिव्वमाणुस्सतेरिच्छ-उवसग्गेऽहियासए। गुरूसु चरणकरणं, उग्गहोवग्गहं करे / / 34 / / महा भरणि पुव्वाणि, तिन्निओ य वियाहिया। एएसु य तवं कुजा, सभितरयवाहिरं / / 35 / / तिन्नि सयाणि सट्ठाणि, तवोकम्मा य आहिया। उग्गनक्खत्तजोएसु, तेसुमन्नतरं करे / / 36 // कत्तिया य विसाहा य, उण्हा एयाणि दुन्निओ। लिंपणं सिंचणं कुजा, संचारग्गहधारणं // 37 // उवगरणभंडमाईणं, विवायं चीवराण य / उवगरणं विभागं च, आयरियाणं च कारए / / 38 / / धणिट्ठा सयभिसा साई,सवणो य पुणव्वसू / एएसु गुरुसुस्सूसं, चेइयाणं च पूयणं / / 36 / / सज्झायकरणं कुजा, विजाऽऽरम्भे य कारए। चेओवट्ठावणं कुजा, अणुन्नं गणिवायए।। 40 // गणसंगहणं कुजा, सेहनिक्खमणं तहा। संगहोवग्गहं कुजा, गणावच्छेइयं तहा।। 41 / / वव 1 वालवं च 2 तह को-लवं च तेतीलयं 4 गराइं च 5 / वणियं 6 विट्ठी 7 य तहा, सुद्धपडिवए निसाईया।।४२॥ सउणि चउप्पय नागं, किंतुग्धं च करणा धुवा हुंति। किन्हचउद्दसिरत्तिं, सउणी पडिवजए करणं / / 43 / / काऊण तिहिं वि ऊणं, जम्हेगो साहए न पुण काले। सत्तहि हरिज भाग, जं सेसं तं भवे करणं // 44|| द०प०। स० / स्था० / चं० प्र०। (E) ज्ञानवृद्धिकराणि नक्षत्राणिदस नक्खत्ता नाणवुड्डिकरा पण्णत्ता / तं जहा"मिगसिर अहा पुस्सो, तिन्नि अपुव्वाइ मूलमस्सेसा। हत्थो चित्ता य तहा, दस वुड्डिकरा य नाणस्स"॥१॥ स०१० सम०। द०प०।। (10) चन्द्रनक्षत्रयोगःता कहं ते मुहुत्तग्गे आहिते ति वदेजा? ता एते सि णं अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं अत्थि णक्खत्ते, जे णं णव मुहुत्ते,
SR No.016146
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri
PublisherRajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan
Publication Year2014
Total Pages1456
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size
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