________________ जोगविहि 1644 - अभिधानराजेन्द्रः भाग - 4 जोगविहि यं ठवित्तु पढमकालकाउस्सगं एयदिसाभिमुहो चेव करिति। तं जहा-"पाउसिअ अहोरत्ते, उत्तरदिसि पुव्व पेहए कालं।। वेरत्तियम्मि भवणा, पुव्वदिसा पव्विसे काले" ||1|| कालग्गाही पुण पुरिसगुणजुत्तो कालं गिण्हइ। " पियधम्मो दढधम्मो, संविग्गो चेवऽवञ्जभीरू य। खेयत्ते य अभीरू, कालं पडिलेहए साहू " // 1 // सामन्नेण ताव कालग्गहणविही भण्णइ"कणगाहणं ति कालं, ति पंच सत्तेव सिसिरवासेसु। उक्का उ सरेहा जा, रेहारहिओ भवे कणगो " // 2 // कणगो सन्नरेहो, पगासविरहिओ य। उक्का महंतरेहा, पगासकारिणीय। अहवा-रेहाविरहिओ विप्फुलिंगो पगासकरो उक्का चेव / काले गिहमाणे कालग्गाहिणो दंडधरस्स वा वचंतस्स णियत्तस्स काललियावणिया, काउस्सग्गो वा वंदणाणंतरं संदिसावणपवेयणसमए वा पावासुयाई रुयंतेहिं अनायासेण रुयंति अजंपिरडिंभगेण जंपिऊण अप्पेणावि वीसरसद्दरुयं-तेण छीयाछित्तयविहसियनिदरपहरणरोसाविद्धस्स छडिं सिद्धिमारिहचाइ अणिट्ठविसरण चउचउविहम्मं ति सव्वत्थ जोइड्डिखलियाइएहि च उण्हविओ पाभाइओ पुण उवहओ इक्किक्कमंडले तिन्नि वारे चित्तुं कप्पइ / अभावे पुण तहिं चेव नववेला धिप्पइ / इमिणा विहिणा जइ संदिनावणपुव्वं भज्जइ, तो मूलाओ धिप्पइ। अह संदिसावणाणंतरं वचंतस्स कालमंडलस्स पडिलेहणाणंतरं पुव्वं वा भज्जइ, तो एमेव नियत्तियकालगिण्हवो ठवणायरियसमीवे खमासमणपुव्वं संदिसावणविहिणा कालमंडलं आगच्छइ / अह कालमंडले पडिलेहणाणंतरं कालकाउस्सग्गेण काउस्सग्गाणंतरं कालमंडले ठियस्स तो तत्थेव ठिओ ठवणायरियसंमुई ठाऊण पंचंगखमासमणपुव्वं संदिसाविय पुणो मूलाओ काउस्सग्गं करेइ / अह कालकाउस्सग्गाणंतरं गच्छतस्स पवेयणसमए भज्जइ, तो मूलाओ घिप्पइ। विसंसेण कालग्गहणविही भण्णइ-तत्थ पाउसिए पढमं कालभूमि पमज्जिय दक्खिणदिसाए ठवणायरियं ठवित्तु कालग्गाही दंडियाहत्थवामपासट्ठियदंडघरसमीवे खमासमणपुवं मणइ-इच्छाकारेण संदिस्सह वाघाइअकालपडियरंउ, इत्थं मत्थएण वंदामि। आवसी इत्थं आसज्ज 3, निसीही 1 आसज्ज 3, निसीही 1 आसज्ज 3, निसीही नमो खमासमणाणं भणिय कालसगासे दो वि चिट्ठति। तओ दंडधरो दिसाऽऽलोयं करिय हत्थट्ठियदंडियासंमुहं मत्थएण वंदामि / आवसी इत्थं इचाइ नमो खमासमणाणं भणिय ठवणायरियसमीचे खमासमणं दाउं एवं भणइ-इच्छाकारेण संदिसह वाघाइयं च कालं वावट्टइ, इत्थं मत्थएण वंदामि / आवसी इत्थं आसज्जइ 3, इत्यादि नमो खमासमणाणमित्थं भणिय कालग्गाहिसमीवे दक्खिणा-भिमुहो चिट्ठइ / इत्थ गंडकमरुएहिं दिटुंतो नायव्यो / जइ दंड-धरेण महंतसरेण घुटूं, तो जेण्ण न सुयं, तस्स कालो न दिजइ, अहव एहिं न सुयं, तो दंडधरस्स न दिजइ / तओ कालग्गाही दंडियासंमुहं मत्थएण वंदामि, आवसी इत्थं आसज्जइ 3, इचाइ नमो खमासमणाणमित्यन्तम्। तओठवणायरियसमीवे खमासमणपुव्वं इरियं पडिक्कमइ, नमोकारं चिंतेइ. पारित्ता नमुक्कारं भणइ खमासमणाणं पुर्दिव पुति पेहिय वारसावत्तं वंदणं दाउंइच्छाकारेण संदिसह वाघाइअकाललिआवणियं इत्थं मत्थएण वंदामि। आवसी इत्थं आसज्ज 3, नमो खमासमणाणमिच्चाइणा कालमंडले जाइ दंडधरो, तस्संमुहं दंडियं धरेइ, तओ कालम्गाही तयग्गे ओहडिउं मत्थएण वंदामि, इरियावहियं पडिक्कमिउं इत्थं इच्छामि पडिक्कमिउंइरियावहियाए भणिउ काउस्सग्गे नमुक्कारं चिंतइ। पारित्ता नमुक्कारं भणिय संडासए पडिलेहिय दो वि उवविसंति / तओ कालग्गाही दाहिणचलणोवरि संबद्धं कालमंडले रयहरणं ठविय मुहपुत्तिं उवरि कायं च पेहिय वासहत्थेण कालमंडलं संघट्टिय दाहिणहत्थगहियरयहरणेण पाए पमञ्जिय मुहपुत्तिं संगोविय दाहिणजंघमूले रयहरणं वामहत्थेण निवेसिय रयहरणदसियाहिं दाहिणहत्थं तिण्णिवारे हिट्ठोवरि संघट्टिय कालमंडलमंडियकयसंपुडहत्थदुगंगुट्ठएहिं नासाए दाहिणकन्ने वा तिन्नि वारे उवओगं करिय हिट्ठोवरि दोहिं हत्थेहिं एगंतरियं तिन्नि वारे आवत्तेण भूमिं परामुसिय दाहिणहत्थगहियरयहरणेण कालमंडलट्ठियवामकरंगुट्ठअंगुलीणं अंतरे तिन्नि वारे पमज्जिय वामजाणुणा कालमंडलं संघट्टिय दंडधरहत्थाओ दंडियं गहिय पेहिय कडीए निवेसेइ। एवं तिन्नि वारे पुत्तिपेहणपुव्वं मंडलं पडिले हिय दंडियं नमोक्कारपुष्वं दंडधरकरे समप्पेइ / तओ दोहिं हत्थेहिं कालमंडलं संघट्टिय हत्थेसु पाएसु समग्गलाइंतो निसीही नमो खमासमणाणं ति भणतो कालमंडले पविसइ, चोलपट्ट पडिलेहेइ, सागारियस्स भावे उद्घो होऊण रयहरणेणं तं पमज्जिय भणइवाघाइकाललियावणियं करेमि काउस्सग्गं, अन्नत्थूससिएणं० जाव वो सिरामि / कालग्गाहे उद्घट्ठिए दंडधरो वि उद्घो होऊण भणइ-इच्छकारि साहवो ! उवउत्ता होइ / वाधाइयकालं वावट्टइ, दंडियं तस्स रज्जे धरइ, अभिक्खणं कालग्गाहिस्स पाए पमन्जइ य, इयरे काउस्सग्गे नमुक्कारं चिंतिय सणियं वाहाओ समाहट्ट रयहरणसणाहं मुहपुत्तियं मुहे दाउं सत्ताविसुस्सासं चउवीसं थयं चिंतेइ / तओ दुमपुप्फियं