________________ जोगविहि 1643 - अमिधानराजेन्द्रः भाग - 4 जोगविहि एवं कालग्रहणाऽऽदिविधिरप्युत्तराध्ययनाऽऽदिगतो द्रष्टव्यः। उप-धानं च यद्यस्मिन्नङ्गाऽऽदौ भणितं, तत्तद्विधिश्च योगविधिप्रतिपादकग्रन्थतो इति। कालक्रमश्च आचाराङ्गाऽऽदेस्त्रिवर्षाऽऽदिपर्यायः सूत्रोक्तः, तदुल्लइनेन ददतस्तु आज्ञाभङ्गाऽऽदयो दोषा एव। सच कालो यथा" तिवरिसपरिआगस्स उ, आयारपकप्पणाममज्झयणं / चउवरिसस्स उ सम्म, सूत्रगड नाम अंगं ति॥१॥ दसकप्प व्यवहारा, संवच्छरपणगदिविखअस्सेव। ठाण समवाओ त्ति अ, अंगाइं अट्ठवासस्स / / 2 / / दसवासस्स विवाहा, एकारसवासयस्स य इमाओ। खुड्डिअविमाणमाई, अज्झयणा पंच णायव्वा / / 3 / / बारसवासस्स तहा, अरुणुक्वायाइपंच अज्झयणा। तेरसवासस्स तहा, उट्ठाणसुआइआ चउरो॥ 4 / / चउदसवासस्स तहा, आसीविसभावणं जिणा बिति। पण्णरसवासगस्सय, दिट्ठीविसभावणं तह य॥ 5 // सोलसवासाईसुय, एकुत्तरवट्टिएसुजहसंखं। चारणभावणमहसुवि-णभावणा तेअगनिसग्गा / / 6 // एगूणवासगस्स उ, दिट्ठीवाओ दुवालसममंग। तेसु पुण वीसवरिसो, अणुवाई सव्वसुत्तस्स" // 7 // इति। आवश्यकाऽऽदेस्तु योगोद्वहनोत्तरकाल एव काल इत्यवसेयम्। ध०३ अधिक। अहुणा सेससाहूणं जोगविही विपाहिज्जइ। तत्थ पढमं कालग्गहणविही भण्णइ-"दिण 1 वसहि 2 कालवेला 3, दिसि / सोही 5 कालविहि 6 समक्खाया। सज्झायप्पट्ठवणं 7, वुच्छामि जहागमं सुगम" // 1 // दारं / तत्थ चित्तस्स आसोयस्स य सुक्कपंचमीए, आसाढस्स कत्तियस्स य सुक्कचउद्दसीए य मज्झण्हाओ आरडम पडिवयंतेसु दिणेसु लाडेसु पुण सावणपुण्णिमाए महाअसज्झायं ति काउं कालग्गहणं-अज्झयणउद्देसाइयं ण कीरइ, भगवईवज्जं जोगा य ण णिक्खिप्पंति / चित्तसुद्धएगारसीओ आरब्भ पुन्निमंतेसु दिवसेसु अचित्तरजओहडावणत्थं पडिक्कमणाणंतरं चउजोअगरं चिंतयमाणो काउस्सग्गो कीरइ। अह न सुमरियं तो संवच्छरं जाव धूलीए पड़तीए असज्झाओ। सूरग्गहणे मुक्के तं चेव अहोरत्तमसज्झाइयं, अमुक्के तं चेव, अन्नं च / एवं चंदग्गहणे मुक्के सा चेव राई ; अमुक्के सा राई० अन्नं च अहोरत्तं / / यतः" सग्गह निव्वुड एवं, सूराई जेण हुंतिऽहोरत्ता। आइन्नं दिणमुक्के, सो चिय दिवसो य राई य"॥१॥ गंधवनगरदिसिदाहउक्काविजू हिं इकिका पोरिसी अस ज्झाओ / गज्जिए दो पोरिसी। रविजुयअद्दानक्खत्ताओ जाव साइयंता दस नक्खत्ता, ताव विजुगजिएहिं न असज्झाओ। धडहडे भूमिकंपेय अट्ठप्पहरा / मंसरुधिरपभिइवुट्ठिमए सत्तघरअंतरगए य अहोरत्तं / महियाए रओवुट्ठीए महाकलहे आसन्ने पुरिसाणं इत्थीणं वा जुज्झधूलिमाइमहे गाढपलीवणे जचिरं दंडिए कालगए ठवियंते जाव असमंजसं, ताव असज्झाओ। निरंतरं वुव्वुयवुट्ठीए तिन्हं, सामन्नधाराए पंचण्हं, फुसियमित्ताए सत्तण्हं दिणाणं परेण आउक्कायभावियं ति भिन्नमासं असज्झाओ। वसही पुण गीयत्थेण उभयकालं दव्वाइएहिं सोहियव्यातत्थ तेरिच्छं सोणियमंसचम्मअविरूवं अणुद्धियं सत्तट्ठहत्थऽभंतरे पडणकालाओ पोरिसितिगमसज्झाओ। सोणियं पुण भूमिपडियं उट्ठिउंन कप्पइ / मंसे पुण वहि धोए अंतो पक्के कप्पइ / अंडए भिन्ने गवाइपसूयाए तहा जराए पडिए तहेव पोरि-सितिगमसज्झाओ / विरालाइणा महाकायमूसगाइगहिए अंतो सट्ठिहत्थस्स अहोरत्तमसज्झाओ। दगवाहेण वूढे अग्गिणा दड्डे परियावन्ने विवन्ने गिलिओग्गिलिए उभयनिग्गमसगडबाहिए हंतरिए य न असज्झाओ, माणुस्सए वि नवरं हत्थसए तिसु अहोरत्तं / अहिए पुण वारस वरिसाणि / दंते नट्टे पयत्तेण गविटे अदितु तस्सोहडावणटुं अट्ठस्सासो उस्सग्गो कीरइ / इत्थीए मासाविए महाउपत्ताए तिन्नि दिणाणि असज्झाओ; परओतहा पावासुयाए वसवेहिं पन्नवियाए अणत्थंताए तहेव काउ-सम्गो। पसूयाए कवडए जाव सत्तदिणे, कव्वडियाए पुण अट्ठ-दिणं, भगंदलाइएसु बाहिं धोइयभूइखयगाढवंधिए न अस-ज्झाइयं / तह विगलंतेहिं तिन्नि बंधा कायव्वा / अणाहमडए बाहिं नीणियमित्ते विसुज्झइ। "रुद्दाइगिहसुसाणे, असिवोमाऽऽयाएँ बार वरिसाणि। असझाइयं च रुहिरे, मच्छियपाओ जहिं खुप्पे // 1 // असझाइएँ आलोए, कालाईए अणुचरण कुज्जा। घाणामुत्तपुरीसे, चिलिमिलि अन्नत्थ गम्मइ वा / / 2 / / " एवं सुद्धे दिवसे पच्छिमपोरिसीए सोहित्तु गुरुपुरओ वसहीए पवेइयाए आवस्सए कए फिडियाए कालवेलाए जहाकाले उस्सग्गेसु तिसु चउसु वा कएसु कालो सज्झायस्स घेप्पइ, नहि वाघाइओ कालो चित्तव्यो / अडरत्ते पुण फिडणे अड्डरत्तिओ, तइयपहरंतसमयए वेरत्तिओ, तओ वेरत्तियसज्झायपट्ठवणं / तस्सज्झायकरणकालं विलंविय, जहा खलियाइणा अट्ठवेलाइए कालग्गहणवेला, पडिक्कमणवेला य पहुच्चइ, तहा पाभाइओघेत्तव्यो। तहा तिसु तिण्णि तारगाओ ति पाभाइए अदिहे वि वासासु अ तारगा चउरो छन्नम्मि चिट्ठो वि कालग्गहणवेलाए आयरियस्स सवाइकहणविक्खेवाइणा वायणायरियअभावे य कालग्गाहिणो अन्नयराए हिंसाए निरावाहट्ठाणे ठवणायरि