________________ दमदंत 2456 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 4 दया अथ दमदन्तसंबन्धो यथा-'अस्थि तिबुहपुरं पि व विबुहजण- दुजोहण एवं निभत्थेइ-अरे कुट्टार ! अंगीकयमायगायार ! समाइगणं उताण व पुन्नागपडिपुन्नपायारोवरि दिप्पंतस्यकविसीस इहभवपरभवदुगछणिज्ज मुणिवरावमाणणं किं तए कय? सइया किं तुम हस्थिसीस नाम नयरं।" "जत्थ धुवं वणियाणं, ववहारपराण अइस- कत्थ वि गओ आसि, किं वा तस्स परक्कम गीयमाणं न तए सुयं, जइया मिद्धाणं / वणियारयाण लीलं, धणओ विन पावए कह वि।।१।।'' तत्थ तेन वेढियं हुत्था हत्थिणाउरं? अणेण य रायरिसिणा पुटिव पंचावि वयं समरचत्तरवरिवारपरियदंतिभग्गदंतो दमदंतो नाम राया। "कित्ती जिया, संपइ पुण पंच वि इंदिया। धरिओ य दुद्धरो महव्ययभारो, अती रणहयरिउवय-संभूया जस्स चंदकरसरिसा / मज्झं करेइ दुजण- को तं निजिणिउं सम्झइ, तओ सो वि रायरिसी तंदुस्सह परिसह सहते जणमणदहण हुयासु च।।१॥ अन्नया सो दमदतराया तिखडभरहेसरं संवेगावेसेण झाणंतरिय पडिवज्जिय गुणसेणिमारुहिय संपत्तकेवलनाणो दुद्धरवैरिरायपडिवासुदेव सेवेउं रायगिहं नगरं गओ / तम्मि समए सिवपुरं गओ। "वुत्तंतमेयं दमदंतसाहुणो, चित्ते निसित्ता सममित्तसत्तुणो। हत्थिणाउराओ नीहरिऊण सपरियणेहि पंडवेहि तरस देसो छल लहिय संवेगरंगंगणनट्टसीलया, हवेह सिद्धिं परिणेह लीलया / / 1 / / ||7|| लूसिओ। इमं सरूवं दगदतरणा रायगि-हाओ वलिए सुणिय परम ग०२अधिका आ००। आ०चूला आ०म०। पओसमुव्वतण नासियदिनेणं निय-सिन्नेण सह हस्थिणाउरं समंतओ, दमदमाय धा०(दमदमाय) नाम / आडम्बरकरणे, अदमद् दमद्भवति! जंबूदीवं पियलवणसायरे, वढियं / तओ सो दूयमुहाग पंडवे विशाइ- "अव्यक्तानुकरणादनेकस्वरात् कृभूस्तिना अनितो द्विश्व" ||72 / अम्ह देसो तुम्हेहिं धीरजणगरहणिजेणछलेण उवडओ, नबलेण। जओ- १४५।।(हैम०) इति डाच् प्रत्ययः, दमवद् द्विर्वचनं च। "डाच्यादी'' "छलमुचियं कीवाणं, कीवाण वधं णियविरहिए ठाणे। बलवताण नराणं, 1:7421146 / / (हैम०) इति तलुक् / 'डित्यन्त्यस्वराऽऽदेः" नएस भग्गो सुवंसाम / / 1 / " ता जइ तुम्हाण पयर्ड भुयदंडवलमन्थि, तो ||2|11114 // (हैम०) इत्यलुक् / “माच लोहिताऽऽदिभ्यःषित्' पुराओ निगंतूण दमपरक्कमपईवसिहाए सलभलीलमुव्वहह / तआएवं विहं // 3 // 4 // 30 // (हेम०) इति क्यच् प्रत्ययः। 'क्यडोर्यलुक्॥८।३।१३८|| दएण तजिया अवि पंडवा भयभीया न नीहरिया सनयराओ जुज्झिउं। इतिक्यजन्तसम्बन्धिनो यस्य लुक् / 'दमदमाइ।' 'दमदमाअइ।' दमदतओबहुदिणरोहणनिविण्णो दमदंतो हत्थिसीसपुरं गओ एवं चिंतिऊण मायति। प्रा०३ पाद। "खत्तियकुलभवाणं, संमुहपत्ताण सिंहपोय व्व। जुज् काउं उचियं, दमय पुं०(द्रमक) कर्मकरे, बृ०१उ०। अन्नह अजसो कुरइ लोए / / 1 / / '' इओ य नाएक रलं पालयतो दमदंतो दमयंती रत्री०(दमयन्ती) भीमपुत्र्यां नलनृपमहिन्याम, ती०। कइबयदिजेहिं यइक तेहिं सिरिनेमिनाहसीससिरिधम्मधाससू रिव (कथाऽन्यव) यणपहसंभूयपभूयसंवेगरसरगततरणीए धम्मदेसणाए हाऊण विगयपा- | दमसायर पुं०(दमसागर) दम इन्द्रियदमोऽर्थात् चारित्रम् / दम एव वसंतावो रजमकर्ज, भमारे कारागार, पेयसीओ रक्खसीओ, विसए दुस्तरन्थात् सागर इव दमसागरः। तरितुमशक्यत्वात् सागरकल्पं दमे, विसे, चउरंगसाहणं दुग्गइसाहणं च मन्नतो संवेभ गओ संसारसुखमुज्झिय उत्त०१६ अग वज्जियसव्यसावजकजमणवज यध्वज पडिवाइ। तओ रायरिसी कमेण दमिड पुं०(द्रविड) देशभेदे, तद्देशस्थे च। वाचा न०1 प्रकला गीयत्थो होतु विहरतो पंडवपालिए हत्थिणाउरे गोउरदुआरे मेरु व्व | दडिल पुं०(दमिल) अनार्यक्षेत्रे, तज्जे मनुष्ये च। प्रज्ञा०१ पद। नि०चूठ निप्पकंपो पडिमं ठिओ तम्मि समए रायवाडियाए निग्गच्छतेहिं पंचहिं / सूत्र० प्र० पंडवेहिं पलोइय वाहणेहिं उत्तरिय नमसिओ भावसारं मुणीसरो। अहो! | दडिला स्त्री०(डिला) अनार्यदशोत्पन्नायां योषिति, भ०६ श०३३उ०। दुकरकारओ एस रायरिसी इय अभिनंदिय पुरओ पस्थिएउ तेसु तत्थ | दडी पुं०(दडिन) दडो विद्यते येषां ते दडिनः। उपशमवत्सुसाधुषु, उत्त० आगओ सपरियणो पयईए दुजणो दुनोहणो, से मुणिंदं पिविखय अणेण / 16 अ० जितेन्द्रिये, उत्त०२२ अ०॥ उद् वृत्तदमनशीले चा उत्त०१६ अ० अम्हाणं पुटवपुरिसागय कित्तिसव्वस्रामवहरियं, पुवाइरमणुसरंतो दडीसर पुं०(दडीश्वर) दडी विद्यते येषां ते दडिनो जितेन्द्रियाः, माउलिंगेण तामेइ, तब्भाव मुणतण तप्परियणेण पाहाणरवंडेहिं आहणि- | तेषामीश्वरोदनीश्वरः। उपशमवतां साधूनामश्चर्यधारिणि, उत्त०१६ अ० ऊण लिट् ठुरासी कओ, रायवाडीए बलिएण जुहिडिररन्ना तत्थ तं | दमेयव्व त्रि०(दमितव्य) वशीकर्तव्ये, उत्त०१ अ०। मुणिम-पिच्छतेण तट्टाणे लिट् ठरासि पलोयंतेण नियपरियणो पुट्टा- | दम्म त्रि०(दम्य) दमनयोग्ये, आचा०२ श्रु०१ चू०४ अ०२ उ०। दशा कहिं विहरिओ रा महप्पा धम्मकप्पद् दुकप्पो? तेणावि दुजोहणवुत्तो आका तपुरओ दुत्तो। तं सुणिय अईव अधिई कुणंतो पायकेहि लिट तुरासिंदूरे द्रम्म पुं०। पणषोडशके, वाचन काराविय अंगसंवाहगेहितो अंग सज्ज निम्माविय सयं तं मुणिवर खामिय दय न०(देशी) जले, शोके, देना०५ वर्ग 33 गाथा। पत्तो पासायं जुहिद्विरनरवरो। दमदंतो बिसंवेग-वेगेण एवं भावेइ-"एस दयपत्त त्रि०(दयाप्राप्त) प्राप्तकरुणागुणे, औ०। दयाकारिणि च। स्था०६ मे सासओ अप्पा, नाणदेसणसंजुओ। सेसा में बाहिरा भावा,सव्वे टाका राम संजोगलक्खणा / / 1 / / '' तओ स कोरवेसु अवकारका रसु. पंडवेसु य दया स्त्री० (दया) दय-भिदा०-अड्। 'यत्नादपिपरक्लेश, उत्क्यारपरेसु समचित्तवित्तिं धारेइ। अह जुहिहिरराओ सेवाऽवसराऽऽगयं / हत्तुं या हृदि जायते / इच्छा भूमिसुर श्रेष्ट ! सा दया परिकी