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________________ खेत्तकप्प ७६६-अभिधानराजेन्द्रः भाग-३ खेत्तकप्प खेत्ताओ वि य खेत्तं, संकममाणे भुवमसायो। जे णीवत्ते दोसा, गासंते परिवसेण ते चेव // 35 // एवं भासविहारे, मन्नंतो बहुविहे य दोसे य। जो सद्दहति विहारं, ण तु विहरति तस्स आणादी॥ 36 / / मासोवरिंच लहुओ, णीया वासे य जे दोसा। ते सो पावति सव्वं, एते सालंवणेहिं अत्यंतो // 37 // किं एगंतेणेवं, ण विसेसो भन्नती मुणसु। णिकारणम्मि एवं, पडिबंधे कारणम्मि णिद्दोसा // 38 // ते चेव अजयणाए, पुणो वसो पावती दोसो। काणि पुण कारणाणि, जेहिं चिट्ठिज्ज एकठाणम्मि / / 36 // भणंति पुष्बुदिट्ठा, जे खेमसिवादिया दारा। तेसिंचिय पडिवक्खा, अक्खेमे असिव तहयदुभिक्खं॥४०॥ वहुपाणवस्सओ वा, अमणुन्नो जो तु दयमादी। एतेहिं एगट्ठा-णम्मि अ उ अत्थमाणाओ॥४१॥ जदि जयण ण कुव्वंती, तेचिय नीयादिया दोसा। का पुण जयणा तहियं, भन्नति तर्हि कारणेहि तद्वितस्स // अन्नउवस्सयभिक्खा-दिया तु जयणा मुणेयव्वा। अक्खेममादिएसु वि, अक्खेत्तेसु तु कारणवसेणं // 43|| चिट्ठताणं तहियं, इमा तु जयणा मुणेयव्वा। / अक्खे में विसंति पुरं, संवर्ल्ड वा वि आसयंतीओ॥४४॥ अक्खेमं व नत्था, तहि खेमं तो ण णिग्गच्छे। जदि असिवं तु पहिद्धा, ताहे अच्छंति ते तहिं चेव // 45 // दुभिक्खे व ण णीति, अहवा सव्वत्थ दुभिक्खं / दुभिक्खजयण तहियं, अच्छंते वा विजयण तह चेव / / 6 / / बहुपाणे आउत्ता, पचक्कडंते तु जयणा उ। उवस्सए आउत्ता, कुडुमुहभूती नवाविलक्खंति॥४७॥ अन्नाए वसहीए, ठंति य मअंतिय अमिक्खं / जाजत्थ जयण जुन्नति, अमणुने उवस्सयम्मि तं कुवे / / 8 / / कयवरसोहणमादी, दुग्गंधे गंधपकिरती। उदगभए थलगामे, थले व वसही तहिं तु गेण्हंति || 4 || अग्गिभए मालवद्धे, हंमिततलगम्मि व वसंति। रोगवहुले य वत्थाणि, वज्जए चोरकिण्हेण तु विहारे।। 50 // सत्थेण वा वि गच्छे, वायं ति व जत्थ णिरवायं। जहियं सावयदोचा, तहियं एगाणितो ण गच्छेज्जा / / 51 // गेण्ह वसहिं च गुत्तं, गामस्स तु मज्झयारम्मि। विजामंतादीहिं, वाले णीणंतिए तो ण विगच्छे।। 52 / / राया व पनवेती, साहुगुणमजाणमाणं तु। जत्थ जणो न विजाणति, साहुगुणे तहि कहिंति साहुगुणे / / परिभोगे अकालम्मी, रत्तिं कुवंति सज्झायं। दूरेण कुतित्थीए, वळति एस णं व पन्नवए / / 54 // कुलटा इत्थीचारिया-दिया य वर्षेति चरणट्ठा। वजेज अणायतणा,णाणादीण जत्थ उवघातो // 55 // एवं जहसंभवंतु, करेज जयणं णिवसमाणो। एसो तु खेत्तकप्पो, उवसग्गऽवायसंजुत्तो।। 56 // पं०भा०। (निकारणम्मि गाहा-३८-) निकारणम्मि दोसा निकारणे एएसिं चेव वितियपयं / / कारणं जत्थ वाहिं विहरंताणं अक्खेमं / तत्थ अत्थेज वि तत्थय अक्खेमे जयणा णगरं पविसइ। संवड्डयं वा आसयंति।। अहवाजत्थ अन्हे अच्छं ति तत्थ खेमं तेण न विहरइ / असिवं वा अन्नत्थ वट्टमाणे तत्थ सिवं ताहे अच्छति। अन्नत्थ वा दुभिक्खं ताहे अच्छंति। दुभिक्ख वा पणगपरिहाणाइ जयणा बहुपाण उवस्सए जडमुहाइसु जयंति कीडियासंचारएसु कुंथुमाइपउरे वा अभिक्खं वा मज्जणाइ जयणा छप्पझ्यपयरे अन्हो परिभोगे अन्नासु वा वसहीसु अविजमाणीसु यमणुण्णे उवस्सए गंवे करेंति। सुषमज्जियंच करेंति। उदयभएण वलाणि दहंति। उचे वसहिं गिण्हंति! अग्गिभएण घणकवाडाइसुहम्मि-यतलेसु वा वसंति। रोगे असिवाइअवत्थाणि परिहरंति। लोणनेहाइ सावयभए एगाणियाणि संचरंति। गाममज्झे वसहिं गेण्हंति। सप्पेमं ते हि नीणेति। तेण तक्षभएण सत्थेण संचरति अकालपरिभोगिसुरत्तिं सज्झायं करेंति। अन्ने धम्म कहिति / सज्झायं च गाहेति / अहवा-वसहीए वि एक्कम्मि वसंतस्स मासाइयं वा वासाइ वा अन्नदेसे वा वस-हीओ इत्थिनपुंसएसु दोसा कुलाउ सीयकाले वा मंदोवकरणाणं निवा-या, उण्हकाले वा सीयलप्पवाया, वासासु वा निग्गलनिचिक्खिल्ला घडकवाडदढकुदुपिलवज्जियासु। अग्नेसुयखेत्तेसु एयगुणसमाउत्तावसही नत्थिा संथारगा चम्मरुक्खाइ अहाकुडयामं कुणाइ। दोसवजि-या ते यतेसुखेत्तेसुनत्थि भत्तं पाणं वा सबालवुड्डाउलगच्छे पाउग्गं मणुनं सपक्खपरपक्खोमाणविवज्जियं उग्गमाइसुद्धं पाणगंचसीयलं असंसत्तं पउरं तत्थलब्भइ। अन्नेसु य खेत्तेसु तारिसयं नत्थि / वत्थाय वासत्ताणाइ अहाकडया गुरुमाइया उम्गाणि तत्थ लभंति। पडिग्गहाय (अलथिर) भिक्खुवधारणीया अहाकडया तत्थलब्भंति। सेहाइजाइकुलरूवसंपत्ताइ तत्थ गामे नगरे मेहाविणो तित्थ वोच्छित्तिकरा / सड्डाय तत्थ गामे नगरे देसे वा सेणावइइब्भसेट्ठिसत्थवाहाइ साहू विवज्जिया वरगतित्थुडविजाईहिं विप्परिणामिजंति। पुव्वपच्छ-संथुया वा तम्मि अच्छमाणे सम्मईसणं गेण्हंतिः पव्वयंति वा। एयनिमित्तं अच्छमाणो निद्दोसो निक्कारणे पच्छित्तं अच्छमाणस्स। जइ पुण कारणं अच्छमाणो अजयणाए अच्छइ तत्थ दोसो। का पुण जयणा ? जइसपरिक्खेवो सवाहिरिया तत्थ जइ अंतो मासकप्पो वा वासावासो वा कुओ वाहिरिगा य अपरिभूता तत्थ वाहिरियाए अण्णवसहिं गेहं-ति / अन्नत्तणसंथारगा डगलयकुडमुहउच्चारपासवणमत्ताइ वाहिं चेव भिक्खायरिया वाहिं चेव उच्चारपासवणभूमी / अहवावाहिरिया वि य चित्तभुत्ता वसही वा नत्थि पाउग्गा इत्थिनपुंसगपसुविरहिया धणकुडु-कवाडा ताहे तम्मि चेव वसही एत्तणसंथारगकुममुहउच्चारमत्तयाइ अन्ने गिण्हति / असइत्ते चेव परि जति / वाहिं वा अपरिभूते वाहिं भिक्खा-यरियं हिंडंति / पुटिय पच्छा संथवाइ परिहरंता उग्गममाइसु जयंति। पं० चू०। I....................... .................... / आदी छकनियत्ती, तु वनिता जम्मि जम्मि खेत्तम्मि।१।
SR No.016145
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri
PublisherRajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan
Publication Year2014
Total Pages1388
LanguageHindi
ClassificationDictionary
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